Bangladesh Violence
Bangladesh Violence बांग्लादेश में हिंसा की आग में झुलस रहा है. देश में बड़ा सियासी संकट खड़ा हो गया है. शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. इसके बाद हसीना ने देश छोड़ दिया. बताया जा रहा है कि शेख हसीना ने भारत में शरण ली है. वो बांग्लादेश की सेना के विशेष विमान से दिल्ली आई हैं. 49 साल पहले साल 1975 में इसी अगस्त महीने में बांग्लादेश में सेना ने तख्तापलट किया था. उस दौरान शेख हसीना की फैमिली को मार डाला गया था. तब भारत ने शेख हसीना को शरण दी थी. चलिए उस पूरे तख्तापलट की कहानी बताते हैं.
15 अगस्त 1975 की वो काली सुबह-
साल 1971 में 16 दिसंबर को भारत ने बांग्लादेश को आजाद कराया था. उसके बाद शेख मुजीबुर रहमान राष्ट्रपति बने थे. लेकिन बांग्लादेश में शांति का काल ज्यादा वक्त तक नहीं चल पाया और आजादी के 4 साल बाद साल 1975 में 15 अगस्त की सुबह सेना ने राष्ट्रपति मुजीबुर रहमान के खिलाफ बगावत कर दी. सेना कुछ अफसरों ने शेख मुजीबुर के आवास पर हमला बोल दिया. चारों तरफ गोलियां की तड़तड़ाहट सुनाई देने लगी. गोली की आवाज सुनकर शेख घर से बाहर की तरफ निकले. तभी उनपर गोलियों की बौछार कर दी गई. वो मुंह के बल गिर पड़े. उसके बाद उनको फिर गोली मारी गई. इसके बाद उनके बेटे जमाल और दोनों बहुओं को मार डाला गया. उनके 10 साल के छोटे बेटे को भी नहीं छोड़ा गया.
कैसे बच गईं शेख हसीना-
बागी सेना ने राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान के बांग्लादेश के मौजूद परिवार के 18 लोगों को मार डाला था. शेख हसीना और उनकी बहन इस हमले में बच गई थीं, क्योंकि वो उस वक्त देश से बाहर थीं. तख्तापलट से 15 दिन पहले ही दोनों बहनें जर्मनी चली गई थीं. शेख हसीना अपने पति एमए जावेद के साथ थीं. वहीं पर उनकी फैमिली की हत्या की जानकारी मिली. इसके बाद शेख हसीना सालों तक बांग्लादेश नहीं गईं.
भारत ने दी थी शरण-
जर्मनी में रहने के दौरान शेख हसीना ने भारत से राजनीतिक शरण देने की मांग की. इसके बाद भारत की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने शेख हसीना और उनकी बहन को भारत बुला लिया. उनकी फैमिली को दिल्ली के पंडारा रोड पर घर दिया गया था. उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. करीब 6 साल बाद साल 1981 में शेख हसीना बांग्लादेश गईं.
उसके बाद उन्होंने बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली के लिए आवाज उठाना शुरू किया. साल 1991 के चुनाव में शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने संघर्ष जारी रखा और साल 1996 के चुनाव में पार्टी को जीत मिली. शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं.
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