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Gen Z की जिद के आगे झुका ईरान... बदलना पड़ा कट्टरपंथी रुख... युवाओं ने बदली तस्वीर

ईरान की मार्केट्स में मां-बेटियां अब जींस और टी-शर्ट जैसे आधुनिक कपड़ों में सहज रूप से दिखती हैं.

Women Protest in Iran (Photo: Wikipedia/X) Women Protest in Iran (Photo: Wikipedia/X)

16 सितंबर 2022 को 22 वर्षीय महसा अमीनी की मोरल पुलिस की हिरासत में हुई मौत ने पूरे ईरान को हिला दिया था. उनकी मौत के बाद देशभर में व्यापक विरोध-प्रदर्शन हुए. सरकार ने सख्ती दिखाई, सैकड़ों लोगों की जान गई, हजारों गिरफ्तार हुए. लेकिन तीन साल बाद हालात बिल्कुल बदल चुके हैं.

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आज तेहरान और अन्य शहरों की सड़कों, कैफे, एयरपोर्ट और बाजारों में महिलाएं बिना हिजाब के आमतौर पर नजर आती हैं. लड़कियां स्कूलों में पुराने सख्त नियमों से मुक्त हैं. मार्केट में मां-बेटियां अब जींस और टी-शर्ट जैसे आधुनिक कपड़ों में सहज रूप से दिखती हैं. 

जनरेशन-ज़ी की बेखौफ़ सोच और सामाजिक बदलावों ने सरकार को हिजाब के मुद्दे पर पीछे हटने को मजबूर कर दिया है. फिलहाल, हिजाब सिर्फ सरकारी दफ्तरों तक सीमित होकर रह गया है, आम जीवन में यह वैकल्पिक हो गया है.

महिलाएं बेखौफ़, मोरल पुलिस की पकड़ ढीली
तेहरान की 40 वर्षीय निवासी सेपीदेह ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनकी पीढ़ी हिजाब और ड्रेस कोड की सख्ती में पली-बढ़ी थी, लेकिन उनकी 14 साल की बेटी उस माहौल से पूरी तरह मुक्त है. स्कूलों में लड़कियां यूनिफॉर्म सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए पहनती हैं और प्रशासन चुप रहता है. मेट्रो में मां-बेटियों को अलग-अलग पहनावे में देखना अब आम बात हो गई है. मोरल पुलिस मौजूद तो रहती है, नाराज़गी जताती है, लेकिन सख्त कार्रवाई करने से बचती है.

नए अंदाज़ में दिख रही हैं ईरानी महिलाएं
राजधानी तेहरान में आज महिलाएं रंगीन परिधानों, खुले बालों और आधुनिक हेयरस्टाइल में नजर आती हैं. पहले जहां स्कूटर और मोटरसाइकिल चलाना महिलाओं के लिए लगभग वर्जित था, अब यह आम हो चुका है. निजी स्तर पर डांस क्लासेस और मिक्स्ड एक्टिविटीज का चलन भी बढ़ रहा है, भले ही कानून अभी भी इन्हें प्रतिबंधित मानता हो.

कट्टरपंथी कानून रोके गए
दिसंबर 2024 में ईरान की संसद ने 74 धाराओं वाला कड़ा हिजाब कानून पारित किया था, जिसमें उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर सजा का प्रावधान था. लेकिन राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने इसे आगे बढ़ने से रोक दिया. विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई की भी सहमति रही होगी.

जून 2025 में इजराइल के खिलाफ हुए 12 दिन के युद्ध ने भी सरकार को महिलाओं के लिए रियायतें देने पर मजबूर किया. अंतरराष्ट्रीय दबाव और युद्धकालीन हालात ने महिलाओं की सामाजिक-राजनीतिक भागीदारी को और ज़रूरी बना दिया.

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