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SCO Summit 2025 India China: जानिए क्या है Panchsheel Doctrine... भारत-चीन के संबंधों में क्या है इसका महत्व

चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, “पंचशील के पांच सिद्धांत, जो 70 साल पहले भारत और चीन के नेताओं द्वारा प्रस्तावित किए गए थे, उन्हें संरक्षित और बढ़ावा देना चाहिए.”

PM Narendra Modi with Chinese President Xi Jinping during the SCO Summit at Tianjin Meijiang Convention Centre (PTI Photo) PM Narendra Modi with Chinese President Xi Jinping during the SCO Summit at Tianjin Meijiang Convention Centre (PTI Photo)

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात रविवार (31 अगस्त) को तियानजिन में हुई. इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने सीमा विवादों से आगे बढ़कर आपसी सहयोग और विकास पर जोर देने का संदेश दिया.

दोनों देशों के बीच सकारात्मक माहौल
विदेश मंत्रालय (MEA) के बयान के अनुसार, “दोनों नेताओं ने अक्टूबर 2024 में कज़ान में हुई पिछली मुलाकात के बाद से भारत-चीन संबंधों में आई सकारात्मक प्रगति का स्वागत किया. उन्होंने दोहराया कि भारत और चीन विकास सहयोगी हैं, प्रतिद्वंदी नहीं, और मतभेदों को विवाद में नहीं बदलना चाहिए.”

चीन ने दिया पंचशील सिद्धांत पर जोर
चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, “पंचशील के पांच सिद्धांत, जो 70 साल पहले भारत और चीन के नेताओं द्वारा प्रस्तावित किए गए थे, उन्हें संरक्षित और बढ़ावा देना चाहिए.”

पंचशील सिद्धांत क्या हैं?
भारत की आज़ादी (1947) और चीन में People’s Republic of China के गठन (1949) के बाद, दोनों देशों ने आपसी संबंधों की रूपरेखा तय करने के लिए कई दौर की बातचीत की. 29 अप्रैल 1954 को भारत-चीन तिब्बत व्यापार समझौता हुआ, जिसमें पंचशील के पांच सिद्धांत शामिल थे:

  • एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान
  • आपसी आक्रामकता न करना
  • एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
  • समानता और पारस्परिक लाभ
  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

नेहरू और चाउ एनलाई की भूमिका
हालांकि,  पंचशील का श्रेय अक्सर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया जाता है, लेकिन कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे पहली बार औपचारिक रूप से चीन के प्रधानमंत्री चाउ एनलाई ने प्रस्तुत किया था.

नेहरू ने सितंबर 1955 में लोकसभा में पंचशील की व्याख्या करते हुए कहा था, “हम अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को अहंकार से नहीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक विरासत के प्रति वफादारी से अपनाते हैं. हम दुनिया से मित्रता चाहते हैं, लेकिन अपना मार्ग चुनने का अधिकार भी सुरक्षित रखते हैं. यही पंचशील का सार है.”

पंचशील का अंतरराष्ट्रीय महत्व

  • 1955 में बांडुंग सम्मेलन में पंचशील को अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग के 10 सिद्धांतों में शामिल किया गया.
  • 1957 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पंचशील सिद्धांतों को अपनाया.
  • 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) ने पंचशील को अपना मूल सिद्धांत घोषित किया.

भारत-चीन संबंधों में पंचशील की भूमिका 
पंचशील का उल्लेख अक्सर भारत-चीन संबंधों में सुधार के समय होता रहा है. 2003 में चीन दौरे पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजिंग विश्वविद्यालय में कहा था, “जब तक हम अपनी सीमा संबंधी मतभेद हल नहीं करते, तब तक हम सच्चे पड़ोसी नहीं बन सकते. पंचशील के सिद्धांतों पर कायम रहकर हम एक-दूसरे की चिंताओं का सम्मान कर सकते हैं और संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं.”

तियानजिन में मोदी-शी मुलाकात से यह स्पष्ट है कि भारत और चीन अब सीमा विवाद से आगे बढ़कर सहयोग, शांति और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं. पंचशील सिद्धांत इस नई दिशा में एक मार्गदर्शक दर्शन की तरह सामने आ रहे हैं.

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