
डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेते ही कई बड़े किए हैं. इनमें से एक फैसला अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन से जुड़ा था. इस संशोधन की पहली पंक्ति के अनुसार, अमेरिकी सरज़मीन पर जन्म लेने वाला हर इंसान अमेरिकी नागरिक होगा. चाहे उसके माता-पिता कहीं के भी रहने वाले हों. ट्रम्प ने इसी 'बर्थराइट सिटिजनशिप' (Birthright Citizenship) को खत्म करने का फैसला किया है.
राष्ट्रपति ट्रम्प लंबे समय से अमेरिकी सीमाओं को सुरक्षित करने पर जोर देते रहे हैं. और बर्थराइट सिटिजनशिप को खत्म करने का उनका फैसला अवैध इमिग्रेशन पर शिकंजा कसने की कोशिश है. ट्रम्प के इस फैसले पर फिलहाल सिएटल की एक अदालत ने रोक लगा दी है. लेकिन ट्रम्प के इस कदम के बाद अमेरिका में रह रहे कई भारतीय फूहड़पन पर उतर आए हैं.
प्री-मैच्यूर डिलिवरी के लिए जोर बना रहे भारतीय
दरअसल ट्रम्प का यह फैसला अगर अदालत की आलोचनाओं से सही समय पर पार पा लेता है तो 20 फरवरी को लागू हो जाएगा. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में रह रहे भारतीय इस बात को लेकर चिंतित हैं और अपनी होने वाली संतानों को अमेरिकी नागरिकता दिलवाना चाहते हैं. इस कोशिश में कई भारतीय डॉक्टरों से 'प्री-मैच्योर' डिलिवरी का अनुरोध कर रहे हैं.
टाइम्स की ओर से गुरुवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अपनी प्रेग्नेंसी के नौंवे, आठवें और यहां तक कि सातवें महीने में जोड़े डॉक्टर से संपर्क कर रही हैं. ये जोड़े सी-सेक्शन सर्जरी के जरिए अपनी संतान को दुनिया में लाना चाहते हैं. रिपोर्ट न्यू जर्सी के डॉक्टर एस डी रामा के हवाले से बताती है, "एक सात महीने की गर्भवती महिला अपने पति के साथ प्री-टर्म डिलिवरी के लिए हमारे पास आई. उनकी डिलिवरी का समय मार्च के करीब है."
रिपोर्ट टेक्सस के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एस जी मुक्कला के हवाले से कहती है, “मैं जोड़ों को यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि भले ही समय से पहले डिलिवरी संभव हो, लेकिन मां और बच्चे के लिए जोखिम भरा हो सकता है. पिछले दो दिनों में मैंने 15 से 20 जोड़ों से इस संबंध में बात की है.”
मां-बच्चे के लिए कैसे खतरनाक है प्री-टर्म डिलिवरी?
डॉ मुक्कला के अनुसार, समय से पहले डिलिवरी करने से बच्चे के फेफड़ों में समस्याएं आ सकती हैं. जन्म के समय उसका वजन बेहद कम हो सकता है और उसके पोषण से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं. इसे विस्तार से समझने के लिए हमें यह समझना जरूरी है कि प्री-टर्म डिलिवरी क्या होती है.
दरअसल जब कोई महिला अपनी गर्भावस्था के 37वें हफ्ते से पहले बच्चे को जन्म देती है तो उसे प्री-टर्म डिलिवरी कहा जाता है. जो महिलाएं सातवें या आठवें महीने में बच्चे को जन्म देने पर जोर दे रही हैं, वे 28 या 32 हफ्तों में ऐसा करना चाह रही हैं. इससे न सिर्फ बच्चे की बल्कि उनकी सेहत को भी बड़ा नुकसान हो सकता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, समय से पहले पैदा होने के कारण आने वाली जटिलताएं पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मौत का सबसे बड़ा कारण होती हैं.
इस विषय पर रोशनी डालते हुए बेंगलुरु के ऐस्टर विमेन एंड चिल्ड्रन हॉस्पिटल में स्त्रिरोग विभाग की डॉक्टर संध्या रानी कहती हैं कि डॉक्टरों को ऐसे विचार रखने वाले जोड़ों की मांग को स्वीकार नहीं करना चाहिए क्योंकि यह जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है. और इससे होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं जीवनभर साथ रह सकती हैं.
इंडिया टुडे डिजिटल के साथ विशेष बातचीत में डॉ रानी कहती हैं, "सबसे पहले तो हम प्री-टर्म डिलिवरी के लिए लेबर पेन (प्रसव वेदना) नहीं पैदा कर सकते. डिलिवरी का समय नहीं होता इसलिए महिला का शरीर इसके लिए तैयार नहीं होता. अगर हम इसके लिए सीज़ेरियन/सी-सेक्शन सर्जरी करते हैं तो बच्चे की डिलिवरी से जुड़ा खतरा बढ़ जाता है. हमें शरीर पर बड़ा चीरा लगाना होता है. इससे महिला के लिए भविष्य में गर्भवती होना भी मुश्किल हो जाता है."
वह कहती हैं, "पेट में चीरा लगने के कारण कभी-कभी खून ज्यादा बह सकता है. इस वजह से कभी-कभी महिला को खून देने की जरूरत भी पड़ती है." डॉक्टर का कहना है कि बिना किसी वाजिब कारण के दंपत्तियों को यह रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.
फिलहाल अमेरिका में कानून लागू नहीं हुआ है. ट्रम्प ने कहा है कि वह सिएटल में न्यायाधीश की ओर से लगाए गए अस्थायी बैन के खिलाफ अपील करेंगे. यह कानून लागू होने से भारतीय मूल के शिशुओं को अमेरिकी नागरिकता तो नहीं मिलेगी, लेकिन फिलहाल उनकी जान पर बना जोखिम ज्यादा बड़ी समस्या है.