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Iran Nuclear Programme: अमेरिका ने शुरू किया था ईरान का परमाणु कार्यक्रम, जानें अब तक कैसा रहा न्यूक्लियर प्रोग्राम का सफर?

ईरान के परमाणु प्रोग्राम की शुरुआत अमेरिका ने की थी. 1960 के दशक में अमेरिका ने ईरान को एक छोटा परमाणु रिएक्टर गिफ्ट किया था. शाह रजा पहलवी ने परमाणु कार्यक्रम को जोरशोर से बढ़ाया. लेकिन साल 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद सत्ता में आए अयातुल्ला खोमैनी ने शुरुआत में इसपर रोक लगा दिया. लेकिन इराक के साथ 8 साल तक चले युद्ध के बाद खोमैनी को परमाणु कार्यक्रम का महत्व समझ में आया. इसके बाद खोमैनी ने परमाणु कार्यक्रम के लिए पाकिस्तान का रूख किया.

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ईरान और इजरायल युद्ध के बीच अमेरिका ने बड़ा कदम उठाया. अमेरिका के बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स ने ईरान के परमाणु ठिकानों को तबाह कर दिया. लेकिन ये जानकर आपको हैरान होगी कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत अमेरिका ने ही की थी. अमेरिका ने सबसे पहले ईरान को छोटा परमाणु रिएक्टर गिफ्ट किया था. चलिए आपको ईरान के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत से लेकर बमबारी तक की पूरी कहानी बताते हैं.

ईरान में कैसे शुरू हुआ था परमाणु सफर?

साल 1953 में अमेरिका के राष्ट्रपति डी. आइजनहावर ने यूएन में ऐतिहासिक भाषण 'एटम्स फॉर पीस' दिया था. इसका मकसद परमाणु तकनीक को शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए बांटना था. इस दौरान सीआईए ने ईरान में तख्तापलट किया और शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता सौंपी. 1960 के दशक में सबसे पहले ईरान ने एक छोटा परमाणु रिएक्टर गिफ्ट किया था. इसको तेहरान रिसर्च रिएक्टर नाम दिया गया. इसके साथ ही ईरान में परमाणु सफर शुरू हुआ था. उस दौर में ईरान में परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए अरबों डॉलर खर्च किए गए.

ईरान के परमाण सफर में शाह रजा पहलवी रोल?

शाह मोहम्मद रजा पहलवी ने कई समझौते किए, ताकि परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा सके. साल 1974 में रजा पहलवी ने पेरिस में 1000 मेगावाट के 5 रिएक्टर का सौदा किया. इसके साथ ही उन्होंने जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका से यूरेनियम की आपूर्ति और रिएक्टर निर्माण के समझौते किए. पहलवी ने परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए अरबों डॉलर खर्च किए. शाह पहलवी के तेजी से बढ़ते कदम से अमेरिका को शक हो गया. अमेरिका को शक था कि पहलवी परमाणु हथियार बना सकते हैं. इसके बाद साल 1978 में अमेरिका ने 8 रिएक्टरों के सौदे में ईंधन पुन: प्रसंस्करण पर रोक लगा दिया.

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खोमैनी ने कैसे परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया?

साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई. इसमें शाह रजा पहलवी को सत्ता से बेदखल कर दिया गया. सत्ता अयातुल्ला खोमैनी के हाथों में आई. खोमैनी ने शुरूआत में परमाणु कार्यक्रम को कोई भाव नहीं दिया. इस बीच साल 1980 में इराक से युद्ध छिड़ गया. ये युद्ध 8 साल तक चला. इसके बाद खोमैनी को परमाणु हथियारों का महत्व समझ में आया. इसके बाद अयातु्लला खोमैनी परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक्टिव हुए. लेकिन अमेरिका से दोस्ती दुश्मनी में बदल गई थी, ऐसे में ईरान के पास परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ईरान ने पाकिस्तान को रूख किया.

ईरान के परमाणु प्रोग्राम में पाकिस्तान ने क्या मदद की-

ईरान के परमाणु प्रोग्राम को पाकिस्तान के वैज्ञानिक ए क्यू खान ने मदद की. आपको बता दें कि पाकिस्तान को भी एटम्स फॉर पीस योजना का फायदा मिला था. अब्दुल कादिर खान ने ईरान को यूरेनियम को बम-ग्रेड शुद्धता के लेवल तक समृद्ध करने के लिए सेन्ट्रिफ्यूज तकनीक दी. इसके बदले में ए क्यू खान ने पैसे लिए. इस तकनीक से यूरेनियम को हथियार के लेवल तक संवर्धित किया जा सकता था. ईरान ने पाकिस्तानी तकनीक के आधार पर अपने सेंट्रीफ्यूज विकसित किए.

परमाणु मिशन के बारे में दुनिया को कब जानकारी मिली?

ईरान ने अपने परमाणु प्रोग्राम को कई सालों तक छिपाए रखा. लेकिन साल 2002 में ईरान की गुप्त परमाणु केंद्रों के बारे में पता चलने के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने दबाव डाला और परमाणु प्रोग्राम रोकने की बात कही. इस दौरान ईरान पर कई प्रतिबंध भी लगाए गए. ईरान के साथ अमेरिका की परमाणु वार्ता भी हुई. लेकिन ईरान के परमाणु प्रोग्राम को रोकने में कामयाबी नहीं मिली. आखिरकार 24 जून 2025 को अमेरिका ने ईरान के परमाणु स्थलों पर बमबारी की.

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