
जापान के तोयोआके शहर के मेयर मसाफुमी कोउकी ने एक अनोखा कदम उठाया है. उन्होंने देखा कि शहर के लोग, खासकर बच्चे, मोबाइल और गेम्स में बहुत समय बिता रहे हैं. इस कारण बच्चों के स्कूल न जाने की दर भी बढ़ रही थी. इसी वजह से उन्होंने नागरिकों के लिए डिजिटल टूल्स के इस्तेमाल पर सीमा तय करने का प्रस्ताव रखा.
नया नियम क्या है?
समर्थन और विरोध
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शहर परिषद ने इस प्रस्ताव को 12-7 वोटों से पास किया. समर्थक मानते हैं कि इससे बच्चों को परिवार के साथ समय बिताने और पर्याप्त नींद लेने का अवसर मिलेगा. लेकिन कई नागरिकों और नेताओं ने इसका विरोध किया है. आलोचकों का कहना है कि यह लोगों की निजी ज़िंदगी में दखल है. कुछ नेताओं ने कहा कि यह वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं है और बच्चों के अधिकारों को नज़रअंदाज़ करता है.
नागरिकों की राय
कुछ माता-पिता इसे जागरूकता बढ़ाने वाला कदम मानते हैं. एक मां ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि अब वह अपने बेटे से कह सकती हैं, "देखो, नियम है, ज़्यादा मत खेलो." वहीं, कुछ युवा कहते हैं कि स्मार्टफोन से दूरी बनाना लगभग असंभव है. एक छात्र ने कहा, “मेरा दिमाग और फोन एक ही जड़ से जुड़े हैं.”
जापान में पहले भी प्रयास
यह पहली बार नहीं है जब जापान में स्क्रीन टाइम को लेकर बहस हुई हो. 2020 में कागावा प्रान्त ने बच्चों के गेम खेलने पर समय सीमा लगाई थी. हालांकि इस पर विरोध और मुकदमा भी हुआ. सरकारी अध्ययन बताते हैं कि जापानी छात्र औसतन 5 घंटे प्रतिदिन मोबाइल पर बिताते हैं.
मेयर कोउकी का मानना है कि लोग परिवार और नींद को समय दें. उन्होंने खुद भी खाने की मेज़ पर फोन का इस्तेमाल बंद कर दिया है. उनका कहना है, “ट्रेन में लोग बाहर का नज़ारा देखने के बजाय केवल फोन देखते हैं, यह असामान्य है.”
मेयर ने संकेत दिया कि भविष्य में और नियम भी लाए जा सकते हैं, जैसे चलते समय मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक. उनका संदेश साफ है कि परिवारों में बातचीत बढ़े और लोग अच्छी नींद ले सकें."
यह नियम कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, लेकिन जापानी समाज में सरकारी सुझावों का गहरा असर होता है. इसलिए उम्मीद है कि यह कदम लोगों की आदतों में बदलाव ला सकेगा.
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