
भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ जारी देशव्यापी प्रदर्शन, हिंसा और 19 लोगों की मौत के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है. वह फिलहाल नेपाल में ही हैं, लेकिन जल्द ही अन्य राष्ट्रीय नेताओं की तरह फरार हो सकते हैं. नेपाल की राजनीति में अगर किसी नेता ने हाल के वर्षों में सबसे ज़्यादा चर्चा बटोरी है तो वह हैं खड्ग प्रसाद शर्मा ओली. ओली कभी अपनी बेबाकी, कभी राष्ट्रवादी छवि तो कभी विवादित बयानों के लिए पहचाने गए. आइए जानते हैं कैसा रहा ओली का उदय और पतन.
कम उम्र में माता-पिता को खोया
केपी शर्मा ओली का जन्म 22 फरवरी 1952 को नेपाल के पूर्वी जिले झापा में हुआ. उनका परिवार साधारण कृषक परिवार था. कम उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया, जिससे जीवन में कठिनाइयां बढ़ गईं. लेकिन इन्हीं संघर्षों ने उनके व्यक्तित्व को गढ़ा और उनमें आत्मनिर्भरता तथा नेतृत्व क्षमता का बीज बोया. उन्होंने स्थानीय विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और युवावस्था में ही सामाजिक गतिविधियों से जुड़ गए.
राजनीतिक सफर की शुरुआत
ओली का राजनीतिक सफर छात्र राजनीति से शुरू हुआ. 1960 और 70 के दशक में नेपाल में राजशाही का दबदबा था, लेकिन कम्युनिस्ट विचारधारा धीरे-धीरे युवाओं को आकर्षित कर रही थी. ओली ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाई और लोकतंत्र बहाली के आंदोलनों से जुड़े. उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा, जहां उन्होंने लगभग 14 साल बिताए. इसी दौरान उनकी राजनीतिक सोच और भी परिपक्व हुई.
मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश
1990 के जनआंदोलन के बाद नेपाल में बहुदलीय व्यवस्था की बहाली हुई और ओली पहली बार संसद सदस्य बने. धीरे-धीरे वे कम्युनिस्ट राजनीति में मजबूत नेता के रूप में उभरे. पार्टी संगठन, चुनावी रणनीति और जनसम्पर्क में उनकी पकड़ गहरी होती गई.
2006 की जनक्रांति के बाद जब नेपाल राजशाही से गणतंत्र की ओर बढ़ा, तब ओली राष्ट्रीय राजनीति में और प्रभावशाली हुए. उन्होंने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया जो राष्ट्रीय एकता, संप्रभुता और पड़ोसी देशों के साथ संतुलित संबंधों पर जोर देता था.
प्रधानमंत्री बनने का सफर
ओली पहली बार 2015 में नेपाल के प्रधानमंत्री बने. यह समय नेपाल के लिए ऐतिहासिक था, क्योंकि उसी साल देश ने नया संविधान अपनाया था. ओली ने संविधान के कार्यान्वयन और स्थिरता पर जोर दिया, हालांकि उसी दौरान भारत-नेपाल संबंधों में तनाव बढ़ा और नेपाल ने भारत द्वारा कथित नाकेबंदी का सामना किया. इसी वक्त ओली ने चीन की ओर झुकाव दिखाया और दोनों देशों के बीच कई समझौते किए.
इसने उनकी छवि एक राष्ट्रवादी और मजबूत नेता के रूप में बना दी. 2018 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत माओवादी और यूएमएल के विलय से बनी) को भारी जीत मिली और ओली फिर प्रधानमंत्री बने. इस बार उन्होंने “समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली” का नारा दिया और बुनियादी ढांचे के विकास, सड़क, बिजली और व्यापार को बढ़ावा देने पर काम किया.
ओली ने हमेशा अपनी छवि एक राष्ट्रवादी के तौर पर दिखाई. मिसाल के तौर पर, उन्होंने भारत-नेपाल सीमा विवाद में दृढ़ रुख अपनाया और नेपाल का नया नक्शा संसद में पारित करवाया, जिसमें विवादित क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल किया गया. इसी के साथ-साथ वह चीन के करीब भी होते गए. उन्होंने चीन के साथ रेल और व्यापारिक समझौतों को बढ़ावा दिया, जिससे नेपाल के भू-राजनीतिक महत्व को रेखांकित किया.
विवादों से घिरे रहे ओली
ओली की राजनीति विवादों से भी घिरी रही. उन पर पार्टी में तानाशाही रवैया अपनाने, आलोचना को न सुनने और सहयोगियों को दरकिनार करने के आरोप लगे. आखिर भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी सरकार गिरा दी. भविष्य में ओली की राजनीति किस ओर करवट लेगी, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन फिलहाल उनके राजनैतिक करियर पर पूर्ण विराम लग गया है.