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पहले ऑस्ट्रेलिया तो अब कनाडा पहुंचेंगे इस किसान के मिलेट्स, खुद प्रोसेसिंग करके बनाते हैं प्रोडक्ट्स

कनाडा में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक पंजाबी प्रवासी समुदाय को ध्यान में रखते हुए रेडी-टू-ईट मिलेट्स की एक नई खेप भेजने की तैयारी कर रहे हैं.

Dilpreet Singh to export millet products to Canada (Photo: Instagram) Dilpreet Singh to export millet products to Canada (Photo: Instagram)

संगरूर के राजपुरा गांव के रहने वाले दिलप्रीत सिंह ने पिछले साल सफलतापूर्वक नौ तरह से मिलेट्स ऑस्ट्रेलिया निर्यात किए थे. इस साल वह कनाडा में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक पंजाबी प्रवासी समुदाय को ध्यान में रखते हुए रेडी-टू-ईट मिलेट्स की एक नई खेप भेजने की तैयारी कर रहे हैं. दिलप्रीत के रेडी-टू-ईट मिलेट्स की मांग लोकल लेवल पर भी बढ़ रही है. 

ऑस्ट्रेलिया से लौटकर शुरू की खेती 
पांच साल पहले ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद दिलप्रीत सिंह ने पारंपरिक गेहूं-धान की खेती को छोड़कर मिलेट्स की खेती की ओर रुख किया. उन्होंने अपने खुद के मानक स्थापित करते हुए रासायन-मुक्त खेती को अपनाया. दिलप्रीत का कहना है कि उनका वैल्यू चेन पर पूरा कंट्रोल है. वह प्राइमरी और सेकंडरी प्रोसेसिंग से लेकर अंतरराष्ट्रीय क्वालिटी की पैकिंग तक सब कुछ अपनी ही यूनिट में करते हैं. 

मिलेट्स का निर्यात शुरू करना आसान नहीं था. ऑस्ट्रेलिया के कड़े ‘जीरो जर्मिनेशन’ मानदंडों को पूरा करने के लिए दिलप्रीत को अपने खेत पर एक कस्टमाइज्ड स्टीमिंग प्लांट बनवाना पड़ा. यहां तक कि पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी भी उन्हें कोई समाधान नहीं दे पाई थी. इस प्रक्रिया में उन्हें एक साल तक ट्रायल करन पड़े. 

ऑस्ट्रेलिया भेजे थे 14.3 टन मिलेट्स
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया को 14.3 टन बाजरे की सफल खेप भेजने के बाद अब कनाडा को निर्यात की तैयारियां जोरों पर हैं. उन्होंने बताया कि पंजाबी प्रवासी आमतौर पर रागी, ज्वार और बाजरे को आटे के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जबकि दक्षिण भारतीय समुदाय इन्हें चावल के विकल्प के रूप में अपनाता है. खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) और संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष (IYM2023) घोषित किया था ताकि मिलेट्स के स्वास्थ्य, पोषण और पर्यावरणीय फायदों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके. 

कई तरह की चुनौतियों का सामना किया 
स्थानीय बाजार में मिलेट्स की कीमतों में उतार-चढ़ाव एक चुनौती है. दिलप्रीत ने टीओआई को बताया, “अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष के दौरान ब्राउन टॉप की कीमत ₹85 प्रति किलो तक पहुंच गई थी, जो बाद में कच्चे माल के रूप में ₹28 प्रति किलो पर आ गई.” इसका समाधान निकालते हुए उन्होंने अपने बाजरे को पहले से भिगोकर, सुखाकर और छीलकर खास तरह से तैयार किया, जिससे उसकी शेल्फ लाइफ सामान्य तीन महीने की बजाय दो साल तक हो गई. उन्होंने बताया कि इस वैल्यू एडिशन से मिलेट्स पचाने में आसान होते हैं. 

यहां भी जाते हैं उनक मिलेट्स 
दिलप्रीत अपने उगाए हुए मिलेट्स को सीधे ऑनलाइन खरीदारों को बेचते हैं, जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं. साथ ही मार्कफेड, पंजाब एग्रो, मिलेट्स आधारित रेस्टोरेंट्स और मिलेट-बिस्कुट फैक्ट्रियों को भी आपूर्ति करते हैं. मिलेट्स निर्यात करने के लिए वे अपने 14 एकड़ के खेत के अलावा उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) से भी मिलेट्स मंगवाते हैं.