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Gen Z Protest: जानिए कौन हैं सुदान गुरुंग... 2015 से भूकंप ने बदल दी जिंदगी... आज जेन-ज़ी आंदोलन का जाना-माना चेहरा

38 वर्षीय सुदान गुरुंग कभी काठमांडू के थमेल इलाके के क्लब, डीजे और पार्टी सर्किट का जाना-माना चेहरा थे. लेकिन 2015 के भूकंप के बाद पूरी तरह बदल गए.

 Hami Nepal, under Gurung's guidance, has used platforms like Instagram and Discord to mobilise protests across the capital, Kathmandu. Hami Nepal, under Gurung's guidance, has used platforms like Instagram and Discord to mobilise protests across the capital, Kathmandu.

नेपाल में चल रहे ‘Gen-Z आंदोलन’ ने यहां की राजनीति को हिला कर रख दिया है. बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ सड़कों पर उतरे युवा अब सत्ता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं. लेकिन इस आंदोलन की जड़ें किसी राजनीतिक दल से नहीं, बल्कि 2015 के विनाशकारी भूकंप से जुड़ी हैं. इसी आपदा ने सुदान गुरुंग जैसे एक आम युवक को वह पहचान दी, जो आज नेपाल के जेन-ज़ी आंदोलन का सबसे प्रभावशाली चेहरा बन चुका है.

2015 का भूकंप और सुदान गुरुंग
38 वर्षीय सुदान गुरुंग कभी काठमांडू के थमेल इलाके के क्लब, डीजे और पार्टी सर्किट का जाना-माना चेहरा थे. लेकिन 2015 के भूकंप के बाद पूरी तरह बदल गए. गुरुंग ने उस समय कहा था कि उनकी बांहों में एक बच्चा दम तोड़ गया था. वह उस क्षण को कभी नहीं भूल सकते.  उस बेबसी से ही ‘हामी नेपाल’ की शुरुआत हुई. यह एक वॉलंटियर ग्रुप था जो सिर्फ चावल के दान से शुरू हुआ था.

‘हामी नेपाल’ से जन्मा एक आंदोलन
भूकंप के तुरंत बाद गुरुंग ने सोशल मीडिया पर मदद की अपील की. कुछ ही घंटों में लगभग 200 वॉलंटियर्स पहुंच गए. उन्होंने गांवों में चावल पहुंचाया, स्कूलों में टेंट लगाए और उधार की मोटरसाइकिलों से घायलों को अस्पताल पहुंचाया. इसी तात्कालिक नेटवर्क से ‘हामी नेपाल’ (हम नेपाल हैं) की नींव पड़ी.

2020 तक इसे आधिकारिक तौर पर NGO के रूप में रजिस्टर्ड कर लिया गया. आज इसके 1,600 से अधिक सदस्य हैं. प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक डॉ. संदुक रुइट ‘हामी नेपाल’ के मेंटर हैं. उनका कहना है कि सुदान गुरुंग की खासियत यह है कि वे भाषणों से ज्यादा लॉजिस्टिक्स और मैनेजमेंट पर ध्यान देते हैं. इसी वजह से युवा उन पर भरोसा करते हैं.

सोशल मीडिया बैन ने भड़काई आग
हाल के विरोध प्रदर्शनों की चिंगारी तब भड़की जब नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर बैन लगा दिया. छात्रों को लगा कि यह आवाज़ दबाने की कोशिश है. सुदान गुरुंग ने सोशल मीडिया पर युवाओं को स्कूल यूनिफॉर्म और किताबों के साथ सड़कों पर उतरने का आह्वान किया. हज़ारों युवा किताबें हाथों में लेकर और यूनिफॉर्म पहनकर काठमांडू की सड़कों पर उतरे.

‘वन पीस’ के झंडे तले जेन-ज़ी की बगावत
इन आंदोलनों में एक दिलचस्प प्रतीक उभरा- जापानी एनीमे ‘वन पीस’ का स्ट्रॉ हैट जोली रोजर फ्लैग. यह झंडा मंकी डी. लूफी के विद्रोह का प्रतीक है. युवाओं ने इसे भ्रष्ट सत्ता के खिलाफ प्रतिरोध के रूप में अपनाया. किताबों और झंडों के साथ-साथ यह आंदोलन संस्कृति और पहचान की भी लड़ाई बन गया.

सुदान गुरुंग अब न तो भीड़ में खड़े एक सामान्य छात्र हैं और न ही सत्ता के समझौते का हिस्सा. वे मोनार्की और विद्रोह दोनों के दौर को जानते हैं. उनकी सोच आज़ादी और जवाबदेही की नई परिभाषा तय कर रही है.

आज ‘हामी नेपाल’ सिर्फ एक NGO नहीं, बल्कि जेन-ज़ेड आंदोलन की आधारशिला बन चुका है. गुरुंग के नेतृत्व में युवा व्यवस्थित, संगठित और आत्मविश्वासी हैं. वे राजनीतिक दलों से अलग, एक सांस्कृतिक और सामाजिक क्रांति की दिशा में बढ़ रहे हैं.

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