
पिछले हफ्ते, इजरायल ने "ऑपरेशन राइजिंग लायन" के तहत ईरान पर हमलों की शुरुआत की, जिसका मकसद था ईरान के परमाणु कार्यक्रम और लंबी दूरी की हमले की क्षमताओं को पंगु करना. इजरायल का दावा है कि ईरान जल्द ही नौ परमाणु हथियार बना सकता है, जो उसके लिए पूरी तरह अस्वीकार्य है. जवाब में, ईरान ने तेल अवीव और यरुशलम पर 200 बैलिस्टिक मिसाइलों और 200 ड्रोन्स के साथ भीषण हमला किया.
जैसे-जैसे यह संघर्ष तेज होता जा रहा है, आबादी वाले इलाकों को निशाना बनाया जा रहा है. लेकिन इजरायल का मशहूर एयर डिफेंस सिस्टम, जिसे दुनिया "आयरन डोम" के नाम से जानती है, लगातार ईरान के हमलो को रोकने की कोशिश कर रही है.
सिर्फ आयरन डोम नहीं, एक मल्टी-लेयर कवच!
जब बात इजरायल की वायु रक्षा की आती है, तो लोग अक्सर "आयरन डोम" का नाम लेते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आयरन डोम इस रक्षा तंत्र का सिर्फ एक हिस्सा है? इजरायल की वायु रक्षा प्रणाली एक मल्टी-लेयर कवच की तरह काम करती है, जो अलग-अलग दूरी और खतरे से निपटने के लिए डिज़ाइन की गई है. यह दुनिया की सबसे एडवांस और युद्ध-परीक्षित प्रणालियों में से एक है.
छोटे खतरों का बड़ा हथियार
आयरन डोम छोटी दूरी के खतरों, जैसे रॉकेट और तोपखाने के गोले, को रोकने के लिए बनाया गया है. यह प्रणाली रडार, कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर और विशेष इंटरसेप्टर मिसाइलों का एक जटिल नेटवर्क है. जैसे ही कोई रॉकेट या गोला इजरायल की सीमा में प्रवेश करता है, रडार उसे तुरंत पकड़ लेता है. कमांड सेंटर यह तय करता है कि कौन सा खतरा सबसे बड़ा है, और फिर इंटरसेप्टर मिसाइलें उस रॉकेट को हवा में ही नष्ट कर देती हैं. यह सब कुछ सेकंड में होता है!
डेविड्स स्लिंग और एरो सिस्टम
आयरन डोम छोटी दूरी के लिए है, लेकिन लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों के लिए इजरायल के पास डेविड्स स्लिंग और एरो 2 व एरो 3 जैसे सिस्टम हैं. ये सिस्टम वायुमंडल के अंदर और बाहर (एक्सोएटमॉस्फेरिक इंटरसेप्शन) दोनों जगह काम करती हैं.
ईरान के पास बैलिस्टिक मिसाइलों और लंबी दूरी के ड्रोन्स का विशाल भंडार है. ये मिसाइलें गुरुत्वाकर्षण के सहारे एक निश्चित रास्ते पर चलती हैं और क्रूज मिसाइलों की तरह रास्ता बदलने में सक्षम नहीं होतीं. ईरान और इजरायल के बीच करीब 1,000 किलोमीटर की दूरी है, इसलिए ईरान मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें, जैसे फतह-1 और इमाद, इस्तेमाल कर रहा है. ये मिसाइलें तेज़ गति से आती हैं और इन्हें रोकना बेहद मुश्किल होता है.
क्यों मुश्किल है बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकना?
बैलिस्टिक मिसाइलें छोटे, तेज और ऊंचाई पर उड़ने वाले टारगेट होती हैं. लॉन्च होने से लेकर टकराने तक का समय बहुत कम होता है. जितनी लंबी दूरी की मिसाइल, उतनी ही तेज़ और ऊंची वह उड़ती है. इसका मतलब है कि रक्षा प्रणाली के पास प्रतिक्रिया देने का समय बहुत कम होता है. यह किसी सुई को हवा में तैरते धागे से पकड़ने जैसा है!
अमेरिका का साथ
इजरायल की रक्षा प्रणाली को अमेरिका का भी मजबूत समर्थन प्राप्त है. अमेरिका के पास पैट्रियट पीएसी-3 (डेविड्स स्लिंग के काउंटरपार्ट) और थाड (एरो 2 के काउंटरपार्ट) जैसे सिस्टम हैं. इसके अलावा, अमेरिकी नौसेना का एजिस सिस्टम और एसएम-3 मिसाइलें भी इजरायल की मदद कर रही हैं. 2024 में भी अमेरिका ने इजरायल की रक्षा के लिए अपने युद्धपोत तैनात किए थे, और अब भी ऐसा ही करने की तैयारी है.
हालांकि, इजरायल के पास इंटरसेप्टर मिसाइलों की संख्या सीमित है. दूसरी ओर, हमलावर (ईरान) भी अपनी मिसाइलों की संख्या से सीमित है. लेकिन रक्षा करने वाले को अक्सर एक हमलावर मिसाइल को रोकने के लिए कई इंटरसेप्टर मिसाइलें दागनी पड़ती हैं, ताकि कोई चूक न हो. हमलावर यह जानता है कि कुछ मिसाइलें नष्ट हो जाएगी, इसलिए वह इतनी मिसाइलें दागता है कि कुछ तो रक्षा को भेद सकें.
बैलिस्टिक मिसाइलों का फायदा हमलावर को होता है. ये मिसाइलें बड़े विस्फोटक या यहां तक कि परमाणु हथियार ले जा सकती हैं. अगर एक भी मिसाइल रक्षा को भेद देती है, तो यह भारी तबाही मचा सकती है.