
डॉनल्ड ट्रम्प ने सऊदी अरब के अपने दौरे पर कई बातों का ज़िक्र किया. उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच पिछले हफ्ते बढ़े तनाव से लेकर सीरिया से उठने वाली पाबंदियों का ज़िक्र किया. लेकिन उनकी एक बात जो पश्चिमी एशिया की अंतरराष्ट्रीय राजनीति को बदल सकती है, वह सऊदी अरब से ही जुड़ी हुई थी. ट्रम्प ने उम्मीद जताई है कि सऊदी अरब जल्द ही 'अब्राहम समझौते' का हिस्सा बनेगा और इसराइल के साथ संबंध सामान्य करेगा.
ट्रम्प ने कहा है कि वह ग़ज़ा में जल्द ही युद्ध रोकने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन सऊदी अरब इसराइल के साथ संबंध सामान्य करने के लिए अपना समय ले सकता है. ट्रम्प की यह बात अंदेश दे रही है कि सऊदी-इसराइल के बीच संबंध सामान्य होना अब समय की बात है. अगर सऊदी अरब इसराइल के साथ संबंध सामान्य कर लेता है तो वह अब्राहम अकॉर्ड स्वीकार करने वाला चौथा अरब देश बन जाएगा. यह समझौता क्या है और इतना अहम क्यों है, यह जानने से पहले हमें इसराइल और सऊदी अरब के रिश्तों को समझना होगा.
कैसे रहे हैं सऊदी-इसराइल के रिश्ते?
सऊदी अरब और इसराइल के रिश्ते का खुलासा समझते हैं. जब 1948 में इसराइल की स्थापना हुई तो सऊदी अरब ने उसे मान्यता नहीं दी. इसकी वजह यह थी कि सऊदी अरब फिलिस्तीन के बंटवारे पर राज़ी नहीं था. जब 1973 में अक्टूबर युद्ध छिड़ा तो सऊदी अरब ने सभी पश्चिमी देशों में तेल का निर्यात बंद करने का फैसला किया. ताकि इसराइल के समर्थकों को कमज़ोर किया जा सके. बहरहाल, 1974 में यह बैन हटा लिया गया. दोनों देशों के बीच कभी भी रिश्ते सामान्य नहीं हुए लेकिन 2002 में सऊदी अरब ने इसराइल के सामने एक बड़ा प्रस्ताव रखा.
सऊदी अरब के तत्कालीन क्राउन प्रिंस अब्दुल्लाह ने अरब शांति पहल के तहत इसराइल के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वह 1967 से पहले की सीमाओं को मानकर फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना कर दे तो दोनों देशों के बीच अमन बहाल हो सकता है. ऐसा नहीं हो सका. यह और बात है कि दोनों देशों के बीच धीरे-धीरे हालात सुधरे ही हैं. साल 2020 में सऊदी अरब ने इसराइल से संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जाने वाली फ्लाइट्स के लिए अपना एयरस्पेस खोल दिया था.
फिर तस्वीर में आया अब्राहम अकॉर्ड्स
अब्राहम अकॉर्ड वह समझौता है जिसे अरब देशों और इसराइल के बीच संबंध सामान्य करने के लिए अस्तित्व में लाया गया. इस समझौते का नाम 'अब्राहम' रखा गया क्योंकि इब्राहीम को मुसलमान, ईसाई और यहूदी तीनों ही पैगंबर माना जाता है. विचार था कि इब्राहीम को पैगंबर मानने वाले तीनों समूह एक साथ आ सकेंगे. डॉनल्ड ट्रम्प की अगुवाई में यूएई, बहरीन और इसराइल ने इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए.
बाद में सुडान और मोरक्को ने भी अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर किए. हालांकि सऊदी अरब ने अभी भी इसराइल को मान्यता नहीं दी है. अब सऊदी अरब की मांग है कि जब तक इसराइल एक स्वतंत्र फिलिस्तानी राज्य की स्थापना नहीं करता, तब तक वह इसराइल को मान्यता नहीं देगा. साल 2023 में दोनों देशों के बीच हालात सामान्य होने के करीब आए भी, लेकिन ग़ज़ा में इसराइल की सैन्य कार्रवाई शुरू होने के कारण एक बार फिर पॉज़ बटन दब गया.
अब ट्रम्प ने कहा है कि वह ग़ज़ा में सीज़फायर की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि वह सऊदी अरब और इसराइल के बीच रिश्ते सामान्य होते हुए देखना चाहेंगे. हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि वह सऊदी अरब पर किसी तरह का दबाव नहीं डाल रहे और यह देश अपना समय ले सकता है.