कभी रोजगार की तलाश में पलायन के लिए मशहूर रहा बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड का जरीडीह गांव आज आत्मनिर्भरता की मिसाल बन चुका है. मात्र 1 हजार की आबादी वाले इस गांव ने दूध और गोबर से आर्थिक क्रांति कर दिखाई है. यहां के 72 किसान हर दिन करीब 2,000 लीटर दूध का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे गांव हर महीने लगभग 27 लाख रुपए का बिजनेस कर रहा है.
250 गायों से हो रहा उत्पादन
गांव के कुल 72 किसानों के पास मिलाकर 250 दुधारू गायें हैं. सभी किसान प्रतिदिन मेधा डेयरी को दूध सप्लाई करते हैं. डेयरी किसानों को प्रति लीटर 45 रुपये की दर से भुगतान करती है. इस तरह पूरे गांव में हर महीने लाखों की आमदनी हो रही है.
सरकार की योजनाओं और मेहनत ने बदली तस्वीर
करीब 10 साल पहले राज्य सरकार ने गांव में 90% अनुदान पर दुधारू गायें दी थीं. किसी को दो तो किसी को पांच गायें मिली थीं. मेहनत और अच्छे रख-रखाव की बदौलत आज कई किसानों के पास 10 से 40 तक गायें हैं. यही कारण है कि जरीडीह आज दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में पहचान बना चुका है.
महिलाएं संभाल रहीं बिजनेस
गांव में आत्मनिर्भरता की कहानी में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम रही है. वे न सिर्फ पशुपालन कर रही हैं, बल्कि दूध को खुद मिल्क कलेक्शन सेंटर तक पहुंचा रही हैं. कई महिलाएं आज 30 से 50 हजार रुपये प्रतिमाह की कमाई कर रही हैं.
गोबर से बना रहे गैस, 72 घरों में जल रहा है बायोगैस चूल्हा
जरीडीह गांव के सभी 72 किसानों ने अपने-अपने घरों में मिनी बायोगैस प्लांट स्थापित किया है. इन प्लांट्स से मिलने वाली मीथेन गैस से रसोई में खाना पकाया जा रहा है. इससे रसोई गैस की बचत हो रही है और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग हो रहा है. एक समय था जब इस गांव के 50 से अधिक युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर चुके थे. महिलाएं भी मजदूरी के लिए दूसरे गांवों में जाती थीं लेकिन आज हर घर में दूध उत्पादन हो रहा है, जिससे गांव न सिर्फ पलायन मुक्त हुआ है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की एक सशक्त तस्वीर भी बन गया है.
-संजय कुमार की रिपोर्ट