मानसून की बारिश देश के ज्यादातर इलाकों में हो रही है. कई फसलों की तरह गन्ने को भी इस बारिश से खूब फायदा मिलता है. लेकिन साथ ही कई बीमारियों और कीड़ों को भी बारिश पैदा करती है जिससे समय रहते बचाव बेहद जरूरी है. ऐसे ही कीड़ों में प्रमुख गुलाबी मिलीबग (Pink Mealybug) और कॉटन मिलीबग (Cotton Mealybug) गन्ना उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाले कीट हैं. इनका वैज्ञानिक नाम Maconellicoccus hirsutus और Phenacoccus solenopsis है. ये गन्ने की फसल को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाते हैं.
गन्ने का रस चूस रहे मिलीबग
दोनों मिलीबग गन्ने के पौधे के कोमल भागों जैसे पत्तियों, तनों और गांठों से रस चूसते हैं. इससे पौधा कमजोर हो जाता है, और उसका विकास रुक जाता है. रस चूसने से पौधे की फोटोसिंथेसिस (Photosynthesis) यानि प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है. इससे गन्ने की वृद्धि और मिठास कम हो जाती है.
पौधों पर छोड़ रहा फंगस
मिलीबग रस चूसने के दौरान एक चिपचिपा पदार्थ (honeydew) निकालते हैं, जिस पर कालिख मोल्ड (sooty mold) नामक फंगस पनपता है. यह पत्तियों को काला कर देता है और फ़ोटोसिंथेसिस को और ज्यादा प्रभावित करता है. इससे पौधे की गुणवत्ता और उपज दोनों कम हो जाती हैं.
पौधे की संरचना पर असर
गुलाबी मिलीबग पौधे की गांठों और पत्तियों को सिकोड़ देता है, जिससे पौधा खराब हो जाता है. कॉटन मिलीबग पत्तियों और तनों पर सफेद मोम जैसी परत बना देता है जिसकी वजह से पौधा ठीक से सांस नहीं ले पाता.
उपज में कमी
इन कीटों के प्रकोप से गन्ने की उपज में 20-50% तक की कमी हो सकती है. खास तौर पर तब जबकि रोकथाम समय पर न किया जाए. इससे चीनी की मात्रा और गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है.
कैसे करें इन कीटों पर समय पर नियंत्रण
खेत की नियमित सफाई और खरपतवार नियंत्रण से शुरुआती रोकथाम होती है. कई बार किसान प्रभावित पौधों के हिस्सों को काटकर नष्ट कर देते हैं. वहीं उचित दूरी पर बुवाई और जल निकास की व्यवस्था से भी रोकथाम संभव है. स्वयं-छीलने वाली किस्मों का इस्तेमाल भी बचाव करता है क्योंकि ऐसी वेराइटी कम संक्रमित होती हैं. बुवाई से पहले बीज को कीट-मुक्त करना भी एक कारगर उपाय है.
कैसे करें जैविक नियंत्रण?
इन कीड़ों को इनके प्राकृतिक 'दुश्मनों' के इस्तेमाल से मारा जा सकता है. किसान अपने खेतों में लेडी बर्ड बीटल (साइंटिफिक नाम Cryptolaemus montrouzieri) और ऐनिसियस नाम की ततैया (Aenasius bambawalei) छोड़कर इन मिलीबग्स का खात्मा कर सकते हैं. नीम आधारित कीटनाशकों, जैसे नीम तेल (0.5-1%), का छिड़काव भी इन कीटों को मारता है.
रासायनिक कीटनाशकों के जरिए नियंत्रण
इमिडाक्लोप्रिड (Imidacloprid 17.8 SL) या थियामेथोक्साम (Thiamethoxam 25 WG) जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करने से इन मिलीबग्स को नष्ट किया जा सकता है. इसके लिए इन्हें सही अनुपात में पानी में मिलाना जरूरी है. क्लोरपिरिफोस (Chlorpyrifos 20 EC) का उपयोग भी होता है लेकिन इसमें सावधानी बरतनी जरूरी है.
हॉर्टिकल्चरल ऑयल, सफेद तेल (3 चम्मच खाना पकाने का तेल और ½ चम्मच डिटर्जेंट साबुन 4 लीटर पानी में), या साबुन-आधारित घोल (5 चम्मच शुद्ध साबुन या 2 चम्मच डिशवॉशिंग लिक्विड 4 लीटर पानी में) का छिड़काव भी काम आता है. स्पिनोसैड (ऑर्गेनिक) और सिंथेटिक पाइरेथ्रॉइड्स का उपयोग भी बचाव करता है.
निगरानी और जागरूकता बेहद जरूरी
खेत की नियमित जांच और मिलीबग के शुरुआती लक्षण (सफेद मोम जैसी परत, चिपचिपापन) पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से संपर्क और सही समय पर सलाह लेना भी जरूरी है. स्टिकी ट्रैप्स का उपयोग आबादी की निगरानी के लिए सही तरीका है.