Sambhav Foundation: मेकअप आर्टिस्ट की मुफ्त ट्रेनिंग लेकर महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, अपने बिज़नेस से कमा रहीं लाखों... जानिए क्या है संभव फाउंडेशन का Entrepreneurship Development Program

भारत का ब्यूटी और वेलनेस क्षेत्र 2018 और 2022 के बीच 18.2% की कंपाउंड वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा, जो इस अवधि के दौरान वैश्विक सीएजीआर (17.6%) से ज्यादा है. अब इस क्षेत्र के 2030 तक पांच लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें 70% कार्यबल महिलाओं का होगा. 

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gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 15 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:54 PM IST

मुंबई की रहने वाली नग़मा सिद्दीक़ी बारहवीं का इम्तेहान देने के बाद पशोपेश में थीं. लकवे की मरीज़ मां बिस्तर पर पड़ी थीं. बुज़ुर्ग नानी भी काम करने के लायक नहीं थीं. नग़मा के मसअलों का सिर्फ एक ही हल था. आत्मनिर्भर बनना. साल 2019 में लिए गए उनके एक फैसले ने इसे संभव बना दिया. यह वही साल था जब नग़मा ने संभव फाउंडेशन से असिस्टेंट ब्यूटी थेरेपिस्ट का कोर्स करने का फैसला किया. 

संभव फाउंडेशन की शुरुआत बौद्धिक रूप से अक्षम लोगों को सहारा देने के लिए हुई थी. लेकिन इस एनजीओ ने धीरे-धीरे अपना फ़ोकस समाज के वंचित हिस्सों से आने वाली महिलाओं पर बढ़ा दिया. साल 2006 में शुरू हुए इस एनजीओ ने सिर्फ बीते 10 सालों में नग़मा जैसे 13,000 से ज़्यादा उद्यमियों को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद की है. यह संभव हो पाया है आंत्रेप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम (Entrepreneurship Development Program) के ज़रिए.
 

संभव की चीफ़ इम्पैक्ट ऑफिसर (CIO) गायत्री वासुदेवन जीएनटी टीवी के साथ खास बातचीत में कहती हैं, "हम शुरुआत में स्पेशल लोगों के साथ काम कर रहे थे. तब हमने पाया कि फुल टाइम नौकरियां उनके लिए ठीक नहीं हैं. उन्हें उद्यमी बनाना सही विकल्प था. जब हमने महिलाओं के साथ काम करना शुरू किया तो उनके साथ भी यही बात पाई. महिलाओं का ज्यादातर समय घर में जाता था, इसलिए उनके लिए फुल टाइम रोज़गार मुश्किल था."  

यही वजह थी कि संभव ने उद्यमियों के लिए अपना प्रोग्राम शुरू किया. गायत्री बताती हैं कि उन्होंने समाज के पिछड़े हिस्सों से आने वाली महिलाओं के लिए ब्यूटी सेक्टर को चुना. केपीएमजी की एक रिसर्च के अनुसार, भारत का ब्यूटी और वेलनेस क्षेत्र 2018 और 2022 के बीच 18.2% की कंपाउंड वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ा, जो इस अवधि के दौरान वैश्विक सीएजीआर (17.6%) से ज्यादा है. अब इस क्षेत्र के 2030 तक पांच लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें 70% कार्यबल महिलाओं का होगा. 

सात शहरों में महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर
गायत्री बताती हैं कि वह इस समय सात शहरों में 30 ट्रेनिंग सेंटर चला रही हैं. फ़िलहाल उनका फ़ोकस मुंबई, दिल्ली और कोलकाता पर है लेकिन वह दूसरे शहरों की महिलाओं को भी अपने प्रोग्राम से जोड़ने के रास्ते तलाशते हैं. 

यह प्रोग्राम बेहद आसान तरीके से लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है. सबसे पहले वह अपने प्रोग्राम से जुड़ने वाली लड़कियों को ट्रेनिंग देती हैं ताकि वे अपने लिए आय का एक ज़रिया तैयार कर सकें. इसके बाद उन्हें अपने हुनर को बिज़नेस में बदलना सिखाया जाता है. संभव का लक्ष्य होता है कि हर नई महिला उद्यमी को सालाना छह लाख रुपए आमदनी कमाने के लिए सक्षम बनाया जाए. गायत्री का मानना है कि अगर एक उद्यमी यहां तक पहुंच जाए, तो आगे का सफर वह ख़ुद तय कर सकता है.

महिलाओं को उद्यमी बनाने की दिशा में एक अहम काम है कि उन्हें बिज़नेस में नेटवर्क बनाना सिखाया जाए. नए उद्यमियों को सिखाया जाता है कि वे कैसे एक शख्स को लंबे वक्त तक के लिए अपना ग्राहक बनाकर रख सकते हैं, यानी अपनी अच्छी सर्विस से उसे बार-बार आने के लिए राज़ी कर सकते हैं. इसके अलावा यहां महिलाओं को अर्बन कंपनी और येस मैडम जैसे स्टार्टअप्स पर खुद को रजिस्टर करना और उनके ज़रिए आगे बढ़ना भी सिखाया जाता है. 

मुंबई की एक नई उद्यमी की मिसाल देते हुए गायत्री बताती हैं कि उन्होंने पहले अपने घर में ही पार्लर शुरू किया था. जब उनका बिज़नेस बढ़ने लगा तो उन्होंने एक और पार्लर खोलकर वहां दूसरे लोगों को भी रोज़गार दिया. 

संभव की राह में रोड़े अनेक
गायत्री बताती हैं कि संभव एक ओर जहां महिलाओं को आत्मनिर्भरता की राह पर चला रहा है, वहीं दूसरी ओर इनके सामने कई चुनौतियां भी हैं. कई भारतीय परिवार अब भी अपने घर की महिलाओं को नया हुनर सिखाने से हिचकिचाते हैं. कभी चिंताएं सामाजिक रूढ़ियों से जुड़ी होती हैं तो कभी सुरक्षा से. इसके अलावा अगर कोई महिला संभव से ट्रेनिंग हासिल कर भी लेती है तो एक छोटा व्यवसाय शुरू करने के लिए बैंक से क्रेडिट लेना बड़ी चुनौती होती है. 

ट्रेनिंग प्रोग्राम में पर्याप्त ट्रेनी न होने के कारण संभव को कुछ समय पहले भुवनेश्वर और कोयंबटूर में अपने ट्रेनिंग सेंटर बंद करने पड़े थे. लेकिन इन सब चुनौतियों के बावजूद संभव एक एनजीओ के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारियां निभा रहा है.

नग़मा अब एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बन गई हैं और अपना सफ़र बाक़ी दुनिया से साझा करती हैं. (Photo: Special Arrangement)

संभव के साथ जुड़ने वाले ट्रेनीज़ को न सिर्फ हाथ का हुनर दिया जाता है, बल्कि उन्हें अनुभव भी दिया जाता है. ट्रेनिंग के दौरान महिलाओं को असाइनमेंट दिए जाते हैं. गायत्री कहती हैं, "एक बार जब वे पैसे कमाना शुरू कर देती हैं, तो ट्रेनिंग खत्म होने के बाद खुद ही काम करने के लिए प्रेरित हो जाती हैं." 

साल 2024 में मेकअप और हेयर आर्टिस्ट की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद नग़मा भी इसी प्रेरणा के साथ संभव से निकलीं. आज न सिर्फ वह एक आत्मनिर्भर ब्यूटीशियन हैं, बल्कि एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी हैं. संभव अपने ट्रेनिंग कार्यक्रमों के ज़रिए कई अन्य महिलाओं के लिए यह संभव बना रहा है. 

(संभव फाउंडेशन के सेंटर और दूसरी जानकारी यहां पाई जा सकती है.) 

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