कहते हैं, अगर कुछ ठान लिया जाए तो पूरी कायनात उसे हकीकत बनाने में लग जाती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया सूरत के मयूर वघासिया ने, जिन्होंने एक छोटे से कमरे में शुरू हुई आटा चक्की को मेहनत, जुनून और सरकारी योजना के सहारे इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया.
आटा चक्की से फैक्ट्री तक का शानदार सफर
सूरत के एक कमरे में शुरू हुआ फ्लोर मिल कारोबारी अब विदेशों तक पहुंच चुका है. PMFME सरकारी योजना का लाभ मिलने के बाद आटा चक्की से फैक्ट्री तक सफर तक पहुंच चुका है. सूरत के मयूर वघासिया ने जो सपना देखा था, वो अब हकीकत बन चुका है. 1998 में उनके पिता घनश्याम भाई वघासिया ने मात्र 10x10 वर्ग फुट की किराए की दुकान में तीन लोगों के साथ एक आटा चक्की से "घनश्याम फ्लोर मिल" की शुरुआत की थी. तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन यही छोटा व्यवसाय न केवल फैक्ट्री बनेगा, बल्कि विदेशों में भी प्रोडक्ट भेजेगा.
पीएमएफएमई योजना बनी बदलाव की नींव
मयूर वघासिया बताते हैं कि PMFME (Pradhan Mantri Formalisation of Micro Food Processing Enterprises) योजना ने उनके कारोबार को नई दिशा दी. सरकारी सहायता मिलने के बाद उन्होंने आधुनिक मशीनें लगाईं और प्रोडक्शन बढ़ाया. पिछले दो सालों में उनका टर्नओवर 400% बढ़कर डेढ़ करोड़ से आठ करोड़ रुपये हो गया है.
अब बना चुके हैं तीन फैक्ट्री, 8 आउटलेट
आज "घनश्याम फ्लोर मिल" के पास तीन मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स और आठ रिटेल आउटलेट्स हैं. करीब 40 से अधिक लोगों को स्थायी रोजगार मिल रहा है. मयूर का मानना है कि किसी भी काम की शुरुआत छोटी हो सकती है, लेकिन अगर सोच बड़ी हो और मेहनत निरंतर हो तो सफलता दूर नहीं रहती.
52 प्रकार के आटे का उत्पादन, विदेशों तक पहुंच
घनश्याम फ्लोर मिल आज सिर्फ गेहूं का आटा ही नहीं, बल्कि ज्वार, बाजरा, मक्का, इडली, ढोकला, पोहा, बेसन सहित 52 प्रकार के उत्पाद तैयार कर रही है. दिलचस्प बात ये है कि ये सारे प्रोडक्ट अब विदेशों तक एक्सपोर्ट किए जा रहे हैं. घनश्याम फ्लोर मिल की सफलता सिर्फ एक कारोबारी परिवार की कहानी नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि सरकारी योजनाएं अगर सही हाथों में पहुंचें तो वे देश को आत्मनिर्भर बना सकती हैं.
-संजय सिंह की रिपोर्ट