क्या आपने कभी सोचा कि कैब बुक करने से पहले टिप देना अनिवार्य हो सकता है? जी हां, Uber का नया ‘एडवांस टिप’ फीचर अब सुर्खियों में है, और इसने केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) का गुस्सा भी खींच लिया है. केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने इस प्रथा को “गहरी चिंता” का विषय बताते हुए इसे अनुचित व्यापारिक प्रथा करार दिया है. CCPA ने Uber को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है, लेकिन सवाल यह है कि टिपिंग की यह परंपरा आखिर शुरू कहां से हुई, और भारत में यह कैसे पहुंची?
Uber का ‘एडवांस टिप’ फीचर
Uber की ऐप में अब एक प्रॉम्प्ट दिखता है, जो यूजर्स को राइड बुक करने से पहले 50 रुपये, 75 रुपये या 100 रुपये की टिप देने का सुझाव देता है. प्रॉम्प्ट कहता है: “जल्दी पिकअप के लिए टिप जोड़ें. टिप देने से ड्राइवर इस राइड को स्वीकार करने के लिए ज्यादा प्रेरित हो सकता है.” साथ ही यह भी बताया जाता है कि टिप का 100% ड्राइवर को जाता है, और एक बार टिप जोड़ने के बाद इसे बदला नहीं जा सकता.
यह फीचर यूजर्स को डराता है कि बिना टिप दिए उनकी राइड में देरी हो सकती है या ड्राइवर उनकी बुकिंग रिजेक्ट कर सकता है. इसे ‘पे-टू-प्रायोरिटाइज’ मॉडल कहकर आलोचना हो रही है, और यूजर्स इसे “डिजिटल जबरदस्ती” तक बता रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने X पर इसकी कड़ी निंदा की. उन्होंने लिखा, “यूजर्स को तेज सर्विस के लिए पहले से टिप देने के लिए उकसाना अनैतिक और शोषणकारी है. यह अनुचित व्यापारिक प्रथा है. टिप सेवा के बाद आभार के तौर पर दी जाती है, न कि तेज सर्विस की शर्त के रूप में.”
जोशी ने कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की निष्पक्षता और पारदर्शिता बरकरार रहनी चाहिए. टिपिंग को स्वैच्छिक और सेवा के बाद का भाव होना चाहिए, न कि सर्विस की शर्त. CCPA ने मंत्री के निर्देश पर Uber को नोटिस जारी किया है, और कंपनी को इस फीचर पर सफाई देनी होगी.
टिपिंग की कहानी शुरू हुई?
टिपिंग की परंपरा सदियों पुरानी है, और इसका इतिहास उतना ही रोचक है जितना विवादास्पद. टिपिंग की शुरुआत 16वीं-17वीं सदी के यूरोप, खासकर इंग्लैंड में मानी जाती है. उस समय, अमीर लोग नौकरों, मजदूरों या छोटे-मोटे काम करने वालों को अतिरिक्त पैसे देते थे, जिसे ‘टिप’ कहा जाता था. यह शब्द संभवतः ‘to insure promptness’ (तेज सेवा सुनिश्चित करने के लिए) से आया, जो बाद में ‘tip’ बन गया. उस समय यह एक स्वैच्छिक इशारा था, जो आभार या दया के तौर पर दिया जाता था.
18वीं सदी तक, टिपिंग ब्रिटेन और फ्रांस के रेस्तरां और कॉफी हाउस में आम हो गई. हालांकि, इसे हमेशा सकारात्मक रूप में नहीं देखा गया. कई लोगों का मानना था कि यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देता है, क्योंकि यह अमीरों को गरीबों पर अपनी श्रेष्ठता दिखाने का मौका देता था.
अमेरिका में टिपिंग का चलन
टिपिंग का असली बूम 19वीं सदी में अमेरिका में हुआ. गृहयुद्ध के बाद, जब दास प्रथा खत्म हुई, रेस्तरां और होटल मालिकों ने अपने कर्मचारियों को कम वेतन देना शुरू किया, यह उम्मीद करते हुए कि ग्राहक टिप देकर उनकी आय बढ़ाएंगे. 20वीं सदी तक, टिपिंग अमेरिकी संस्कृति का हिस्सा बन गई, खासकर रेस्तरां, टैक्सी और हेयर सैलून में. आज अमेरिका में 15-20% टिप देना सामान्य है, और कई बार यह ग्राहकों पर अनिवार्य-सा लगता है.
हालांकि, अमेरिका में भी टिपिंग विवादों से अछूती नहीं रही. कई लोग इसे कर्मचारियों को उचित वेतन न देने का बहाना मानते हैं. फिर भी, टिपिंग वहां के सर्विस कल्चर का अटूट हिस्सा बन चुकी है.
एशिया और अन्य देशों में टिपिंग
एशिया में टिपिंग की परंपरा पश्चिमी देशों जितनी मजबूत नहीं रही. जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में टिप देना असामान्य या यहां तक कि अपमानजनक माना जाता है, क्योंकि वहाँ सेवा को नौकरी का हिस्सा समझा जाता है. चीन में भी टिपिंग का चलन सीमित है, और यह ज्यादातर पर्यटक क्षेत्रों तक ही सीमित है.
मध्य पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में टिपिंग धीरे-धीरे बढ़ रही है, खासकर पर्यटन उद्योग में, लेकिन यह अभी भी स्वैच्छिक और सीमित है.
भारत में टिपिंग का इतिहास
भारत में टिपिंग की परंपरा औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुई. उस समय, होटलों और रेस्तरां में काम करने वाले कर्मचारियों को छोटी-मोटी रकम दी जाती थी, जिसे ‘बख्शीश’ कहा जाता था. यह शब्द फारसी मूल का है, जिसका अर्थ है ‘उपहार’ या ‘दान’. ‘बख्शीश’ की परंपरा भारत में पहले से मौजूद थी, लेकिन यह ज्यादातर धार्मिक या सामाजिक संदर्भों में थी, जैसे भिखारियों या मंदिरों में दान देना.
स्वतंत्रता के बाद, टिपिंग का चलन भारत के शहरी क्षेत्रों, खासकर रेस्तरां, होटलों और टैक्सी सेवाओं में बढ़ा. 20वीं सदी के अंत तक, रेस्तरां में 5-10% टिप देना आम हो गया, लेकिन यह पूरी तरह स्वैच्छिक था. डिजिटल युग में, जब Ola और Uber जैसी कैब सेवाएं आईं, तो टिपिंग का ऑप्शन ऐप में शामिल हुआ, लेकिन इसे कभी अनिवार्य नहीं माना गया.
टिपिंग को अनिवार्य बनाने की कोशिश?
Uber का यह फीचर टिप को सर्विस की शर्त बना रहा है, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं का गुस्सा भड़का है. सोशल मीडिया पर यूजर्स ने इसे “डिजिटल ब्लैकमेल” कहा है. एक यूजर ने लिखा, “पहले सर्ज प्राइसिंग, अब टिपिंग? Uber हमारी जेब खाली कर देगा!” एक अन्य ने कहा, “यह तो ऐसा है जैसे रेस्तरां में खाना परोसने से पहले टिप माँग लिया जाए.”
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब Uber विवादों में है. जनवरी 2025 में, CCPA ने Uber और Ola को नोटिस भेजा था, जब शिकायत आई कि ये कंपनियां iOS यूजर्स से Android यूजर्स की तुलना में ज्यादा किराया वसूल रही थीं. यह डिफरेंशियल प्राइसिंग का मामला भी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा था.