क्या आपने कभी सुना कि कोई दृष्टिबाधित शिक्षक बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रोशनी भर रहा हो? अगर नहीं, तो नवगछिया के कंचन पोद्दार की कहानी आपके रोंगटे खड़े कर देगी! अपनी आंखों की रोशनी खोने के बावजूद, कंचन सर बच्चों के भविष्य को चमकाने में जुटे हैं. उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय भवानीपुर टोला में उनका पढ़ाने का अंदाज इतना कमाल का है कि बच्चे और शिक्षक सभी उनके कायल हो गए हैं! ब्रेल लिपि के जरिए वह बच्चों को हिंदी की कहानियां पढ़ाते हैं, और बच्चे उनकी बातों को ऐसे समझते हैं जैसे कोई साधारण शिक्षक पढ़ा रहा हो.
अंधेरे में जिंदगी, फिर भी शिक्षा की रोशनी
कंचन पोद्दार की जिंदगी बचपन से ही चुनौतियों से भरी रही. बिहपुर, नवगछिया के रहने वाले कंचन चार भाइयों और तीन बहनों के परिवार से हैं. जन्म से ही दोनों आंखों से दिव्यांग होने के कारण उनके परिजन परेशान रहते थे, लेकिन कंचन ने हार नहीं मानी. उन्होंने ठान लिया कि वह न सिर्फ पढ़ेंगे, बल्कि दूसरों को भी पढ़ाएंगे. उनकी इस जिद ने उन्हें भागलपुर के राजकीय दृष्टिबाधित मध्य विद्यालय से लेकर पटना, मध्यप्रदेश, और चित्रकूट तक की यात्रा कराई.
कंचन ने बीएड, एमएड, और डीएलएड जैसी डिग्रियां हासिल कीं. इतना ही नहीं, देवघर में संगीत की शिक्षा और बांका के करझौसा में बतौर नियोजित शिक्षक काम करने का अनुभव भी लिया. बीपीएससी TRE 2 पास कर वह पीरपैंती के रानिदियारा में डेढ़ साल तक पढ़ाने के बाद अब भवानीपुर टोला, नवगछिया में बच्चों को पढ़ा रहे हैं.
स्कूल में कंचन सर का जलवा
जब कंचन सर पहली बार उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय भवानीपुर टोला पहुंचे, तो बच्चों और शिक्षकों को लगा कि दृष्टिबाधित शिक्षक कैसे पढ़ाएंगे? लेकिन जैसे ही उन्होंने नौवीं और दसवीं कक्षा में हिंदी की क्लास शुरू की, सबके होश उड़ गए. ब्रेल लिपि के जरिए वह शिवपूजन सहाय की कहानियां पढ़ाते हैं, और बच्चे उनकी बातों को इतने ध्यान से सुनते हैं कि क्लास में सन्नाटा छा जाता है.
सुभाष कुमार, स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य, बताते हैं, “कंचन सर बच्चों से अच्छे से कनेक्ट करते हैं. वे कॉपी चेक नहीं करते, लेकिन उनकी पढ़ाई का अंदाज इतना शानदार है कि बच्चे आसानी से समझ जाते हैं.” सुभाष सर खुद कंचन को दो किलोमीटर दूर उनके किराए के मकान से स्कूल लाते हैं, ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो.
कंचन की प्रेरक यात्रा
कंचन पोद्दार की जिंदगी आसान नहीं थी. उन्होंने बताया, “बचपन से पढ़ने और पढ़ाने का शौक था. शुरुआती दिनों में आने-जाने में परेशानी होती थी, और आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. लेकिन सरकार का सहयोग मिला, जिससे पढ़ाई पूरी हुई.” कंचन ने भागलपुर से प्रारंभिक शिक्षा ली, फिर पटना के कदमकुआं दृष्टिबाधित उच्च विद्यालय में पढ़ाई की. मध्यप्रदेश से 11वीं और 12वीं, देवघर से संगीत की शिक्षा, और चित्रकूट के जगतगुरु श्री रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय से बीएड और एमएड किया. इसके बाद पश्चिम चंपारण से डीएलएड और देवघर में 3 साल तक प्राइवेट जॉब भी की.
बीपीएससी पास करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग पीरपैंती में हुई, और अब वह नवगछिया में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. कंचन कहते हैं, “मैं ब्रेल लिपि से पढ़ता हूं, और बच्चे देवनागरी लिपि से समझते हैं. अनुभव के जरिए मैं उन्हें आसानी से पढ़ा लेता हूं.” उनका यह जज्बा बच्चों के लिए ही नहीं, पूरे समाज के लिए प्रेरणा है.
बच्चों के लिए मसीहा
कंचन सर का पढ़ाने का तरीका इतना अनोखा है कि बच्चे उनकी क्लास में खो जाते हैं. वह कहानियों, कविताओं, और नैतिक शिक्षा के जरिए बच्चों को न सिर्फ किताबी ज्ञान देते हैं, बल्कि जिंदगी के सबक भी सिखाते हैं. स्कूल के बच्चे बताते हैं, “कंचन सर की क्लास में मजा आता है. वे हमें कहानियां सुनाते हैं, और हमें सब समझ में आता है.” स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य सुभाष कुमार कहते हैं, “कंचन सर को थोड़ा-बहुत सपोर्ट चाहिए, जैसे स्कूल लाना-ले जाना, लेकिन वह अपने काम में पूरी तरह सक्षम हैं.”
समाज के लिए प्रेरणा
कंचन पोद्दार की कहानी उन लोगों के लिए मिसाल है जो अपनी कमियों को बहाना बनाते हैं. उन्होंने न सिर्फ अपनी जिंदगी को संवारा, बल्कि सैकड़ों बच्चों के भविष्य को भी रोशन कर रहे हैं. उनकी मेहनत और लगन ने यह साबित कर दिया कि हौसले के आगे कोई अंधेरा नहीं टिक सकता. नवगछिया के इस स्कूल में कंचन सर की मौजूदगी बच्चों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं. उनकी कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, और लोग उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं.
(सुजीत कुमार की रिपोर्ट)