Science behind Monsoon: मॉनसून का रहस्य क्या है? ये कैसे आता है? आसमान से बरसने वाली बारिश के पीछे की साइंस जानिए 

मॉनसून की कहानी शुरू होती है गर्मी से. मार्च-अप्रैल आते-आते भारत की धरती सूरज की तपिश से तपने लगती है. खासकर उत्तर भारत के मैदान और थार का रेगिस्तान किसी भट्टी की तरह गर्म हो जाते हैं. इस गर्मी से जमीन के ऊपर हवा हल्की होकर ऊपर उठने लगती है, जिससे एक लो प्रेशर एरिया बनता है. दूसरी तरफ, हिंद महासागर और ऑस्ट्रेलिया के आसपास का समुद्र ठंडा रहता है, जहां हवा भारी होती है और हाई प्रेशर एरिया बनता है.

मॉनसून का रहस्य (फोटो- गेटी इमेज)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 24 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:39 PM IST

क्या आपने कभी सोचा कि हर साल जून आते ही आसमान क्यों छाता बन जाता है और बारिश की बूंदें धरती को भिगोने लगती हैं? मॉनसून, भारत की जान, जिसके बिना खेत सूखे, नदियां प्यासी और हमारी थाली अधूरी रह जाए! लेकिन क्या है ये मॉनसून? कैसे आता है ये बादलों का कारवां हजारों किलोमीटर का सफर तय करके? और इसके पीछे का विज्ञान क्या है? 

वहीं मॉनसून कि बात करें, तो ये कोई साधारण बारिश नहीं, बल्कि प्रकृति का एक ग्रैंड फेस्टिवल है! ये हवाओं का वो मौसमी डांस है, जो गर्मी और सर्दी के तापमान के खेल से शुरू होता है. भारत में मॉनसून का मतलब है दक्षिण-पश्चिम मॉनसून, जो जून से सितंबर तक देश को तरबतर करता है. लेकिन ये हवाएं आती कहां से हैं? जवाब है- समुद्र! हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से उठने वाली नमी भरी हवाएं भारत की ओर दौड़ पड़ती हैं. लेकिन रुकिए, ये इतना आसान नहीं है! इसके पीछे है पृथ्वी, सूरज और समुद्र का एक गजब का तालमेल.

मॉनसून का इंजन
मॉनसून की कहानी शुरू होती है गर्मी से. मार्च-अप्रैल आते-आते भारत की धरती सूरज की तपिश से तपने लगती है. खासकर उत्तर भारत के मैदान और थार का रेगिस्तान किसी भट्टी की तरह गर्म हो जाते हैं. इस गर्मी से जमीन के ऊपर हवा हल्की होकर ऊपर उठने लगती है, जिससे एक लो प्रेशर एरिया बनता है. दूसरी तरफ, हिंद महासागर और ऑस्ट्रेलिया के आसपास का समुद्र ठंडा रहता है, जहां हवा भारी होती है और हाई प्रेशर एरिया बनता है.

अब प्रकृति का नियम है- हवा हमेशा हाई प्रेशर से लो प्रेशर की ओर भागती है! बस, यही वो पल है जब समुद्र से नमी भरी हवाएं भारत की ओर दौड़ पड़ती हैं. लेकिन ये हवाएं कोई सीधी लाइन में नहीं चलतीं. इन्हें रास्ता दिखाता है पृथ्वी का घूमना और कोरियोलिस प्रभाव, जो इन हवाओं को दक्षिण-पश्चिम दिशा में मोड़ देता है. नतीजा? दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का जन्म!

बादल कैसे बनते हैं?
जब ये नमी भरी हवाएं हिंद महासागर से चलती हैं, तो रास्ते में ढेर सारा पानी (वाष्प) अपने साथ ले आती हैं. ये हवाएं जब भारत के तट से टकराती हैं- खासकर केरल के तट पर, तो मॉनसून की पहली बूंदें गिरती हैं. यही वो पल है जब पूरा देश “मॉनसून आ गया!” चिल्लाता है. लेकिन रुकिए, कहानी अभी बाकी है!

फोटो- गेटी इमेज

जब ये हवाएं पश्चिमी घाट और हिमालय जैसी ऊंची पहाड़ियों से टकराती हैं, तो उन्हें ऊपर उठना पड़ता है. ऊपर जाकर ठंडी हवा में वाष्प ठंडा होकर छोटी-छोटी बूंदों में बदल जाता है. यही बूंदें मिलकर बादल बनाती हैं, और जब ये बादल इतने भारी हो जाते हैं कि हवा उन्हें संभाल न सके, तो बरस पड़ते हैं- बस, मॉनसून की बारिश शुरू!

भारत में बारिश का नक्शा
मॉनसून भारत में दो रास्तों से घुसता है:

1. अरब सागर शाखा: ये केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र को भिगोते हुए गुजरात और राजस्थान तक जाती है.

2. बंगाल की खाड़ी शाखा: ये अंडमान-निकोबार से शुरू होकर पूर्वोत्तर भारत, बंगाल और गंगा के मैदानों को तर करती है.

दोनों शाखाएं मिलकर पूरे देश को भिगोती हैं, लेकिन बारिश की मात्रा हर जगह अलग होती है. मेघालय का मॉसिनराम, दुनिया की सबसे ज्यादा बारिश वाली जगह, मॉनसून की मेहरबानी से हर साल 11,000 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश पाता है, जबकि राजस्थान के रेगिस्तान में सिर्फ 200-300 मिलीमीटर!

क्यों कभी सूखा, कभी बाढ़?
मॉनसून कोई घड़ी का अलार्म नहीं जो हर साल टिक-टिक बजे! कभी ये देर से आता है, कभी जल्दी. कभी कम बारिश लाता है, तो कभी बाढ़ ले आता है. इसके पीछे हैं कई खिलाड़ी

1. एल नीनो और ला नीना: ये प्रशांत महासागर में होने वाली जलवायु की घटनाएं हैं. एल नीनो मॉनसून को कमजोर करता है, जिससे सूखा पड़ता है. वहीं, ला नीना मॉनसून को ताकत देता है, जिससे ज्यादा बारिश होती है.

2. जेट स्ट्रीम: ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली तेज हवाएं मॉनसून के रास्ते को प्रभावित करती हैं.

3. ग्लोबल वार्मिंग: जलवायु परिवर्तन की वजह से मॉनसून का पैटर्न बदल रहा है. अब बारिश कम दिनों में ज्यादा होती है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ गया है.

भारत में मॉनसून सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि जिंदगी है. 60% से ज्यादा खेती मॉनसून पर निर्भर है. धान, गेहूं, दालें – सब मॉनसून की बूंदों से पनपते हैं. नदियां भरती हैं, बांधों में पानी आता है, और बिजली बनती है. लेकिन अगर मॉनसून कमजोर पड़ जाए, तो सूखा, फसल बर्बादी और महंगाई का खतरा बढ़ जाता है.


 

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