

क्या आपने कभी सोचा कि भारत का मौसम विभाग (IMD) कैसे बता देता है कि इस बार मानसून जल्दी आएगा या देर से? कैसे वो आसमान की हरकतों को पढ़कर बता देता है कि बारिश कितनी होगी? मानसून, जो भारत की खेती, पानी, और अर्थव्यवस्था की जान है, उसका अनुमान लगाना कोई जादू नहीं, बल्कि विज्ञान और तकनीक का कमाल है! 2025 में IMD ने भविष्यवाणी की है कि मानसून 27 मई को ही केरल में दस्तक दे सकता है, जो सामान्य से पहले है. लेकिन ये अनुमान कैसे लगाया जाता है?
IMD का मानसून भविष्यवाणी का जादुई फॉर्मूला
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) मानसून की भविष्यवाणी के लिए दुनिया की सबसे आधुनिक तकनीकों और पुराने अनुभवों का मिश्रण करता है. 1875 में स्थापित IMD आज भारत का मौसम गुरु है, जो हर साल जून से सितंबर तक मानसून की हर हलचल पर नजर रखता है. लेकिन ये अनुमान कोई आसान खेल नहीं! सैटेलाइट से लेकर समुद्र की गहराइयों तक, IMD हर छोटी-बड़ी जानकारी को खंगालता है.
मानसून का अनुमान कैसे लगता है?
IMD की भविष्यवाणी सिर्फ मशीनों का खेल नहीं. इसके पीछे वैज्ञानिकों की दिन-रात की मेहनत है. IMD हर साल दो बार मानसून का अनुमान लगाता है. पहला, अप्रैल में जो सीजन का पहला लॉन्ग-रेंज फोरकास्ट होता है. और दूसरा जून में, ये अपडेटेड फोरकास्ट, जिसमें जुलाई की बारिश का अनुमान भी शामिल होता है.
क्या IMD की भविष्यवाणी हमेशा सही होती है?
IMD की भविष्यवाणियां ज्यादातर सटीक होती हैं, लेकिन मौसम की अनिश्चितता के चलते कभी-कभी चूक भी हो जाती है. 2002 में गलत अनुमान के बाद IMD ने 2003 में दो-चरण वाली रणनीति अपनाई, जिससे सटीकता बढ़ी. आज सुपरकंप्यूटर और सैटेलाइट ने इसे और भरोसेमंद बनाया है.
मानसून सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि भारत की जिंदगी का हिस्सा है. IMD की भविष्यवाणियां न सिर्फ किसानों, बल्कि हर उस शख्स के लिए जरूरी हैं, जो बारिश का इंतजार करता है.