बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बाद वोटों की गिनती जारी है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में एनडीए (NDA) प्रचंड जीत की तरफ बढ़ रहा है. सुशासन बाबू के नाम से फेमस नीतीश कुमार के M (महिला) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के Y (युवा) के आगे तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण फेल हो गया है. बिहार के लोगों ने तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को बड़ा झटका दिया है.
एनडीए को क्यों मिला फायदा
नीतीश सरकार ने बिहार में महिलाओं के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. जीविका दीदी से लेकर महिला रोजगार योजना तक का फायदा इस चुनाव में एनडीए को मिल रहा है. केंद्र सरकार ने भी महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रखी है.बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश सरकार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना से जुडीं महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए दिए थे. इसका लाभ भी एनडीए को मिला है. महिलाओं ने बढ़-चढ़कर चुनाव में हिस्सा लिया और एनडीए को मतदान किया है. महिलाएं साफ-साफ बोलती थीं कि 'जिसका खाते हैं, उसी को वोट देंगे.' रुझानों में बढ़त देख जदयू और बीजेपी दोनों पार्टियां गदगद हैं. बिहार में पीएम मोदी के चुनाव प्रचार का भी बड़ा फायदा एनडीए को मिला है. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान युवाओं (Y) में पीएम मोदी का असर दिख रहा था.
तेजस्वी यादव का MY समीकरण क्यों हुआ फेल
तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी को अपने MY समीकरण पर भरोसा था लेकिन यह समीकरण इस चुनाव में फेल हो गया है. आरजेडी को यादवों का पूरा साथ नहीं मिला. एनडीए ने यादवों में सेंधमारी कर दी है. टुडेड चाणक्य के अनुसार यादवों का 23 प्रतिशत वोट NDA के उम्मीदवारों को मिला है. कुछ सीटों पर मुस्लिमों ने भी एनडीए में शामिल घटक दलों को मतदान किया है. इतना ही नहीं मुस्लिमों ने एआईएमआईएम और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी को भी अपना मत दिया है. इससे आरजेडी को नुकसान हुआ है. आपको मालूम हो कि मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने की वजह से भी मुस्लिमों में भी नाराजगी देखने को मिली थी.
चुनाव प्रचार से दूर नजर आए लालू यादव
हर विधानसभा चुनाव के प्रचार में लालू प्रसाद यादव बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे लेकिन इस चुनाव में लालू बैकएंड पर ही काम करते दिखे. वह चुनाव प्रचार से दूर नजर आए. लालू के चुनाव प्रचार नहीं करने से समर्थकों में नाराजगी दिखी और इसका असर मतदान पर भी हुआ. तेजस्वी यादव ने लालू के सामाजिक न्याय एजेंडे को तो अपनाया, लेकिन जंगलराज छवि से डरकर दूरी बनाई. उधर, एनडीए में शामिल दल जंगलराज का जिक्र करके लालू फैक्टर की बात कर रहे थे और उसने भी आरजेडी को नुकसान पहुंचाया.
यह भी रही तेजस्वी की पार्टी की हार की बड़ी वजह
इस विधानसभा चुनाव में आरजेडी को भारी नुकसान की वजह परिवार में कलह भी मानी जा रही है. तेज प्रताप यादव अलग पार्टी बनाकर चुनावी मैदान उतरे. तेज प्रताप ने कई सीटों पर आरजेडी को नुकसान पहुंचाया है. महागठबंधन में शामिल पार्टियों के बीच सीटों का विवाद अंतिम समय तक नहीं सुलझा. करीब एक दर्जन सीटों पर फ्रेंडली फाइट हुई. यह भी आरजेडी को नुकसान की वजह बनी.
नीतीश और मोदी की जुगलबंदी काम आई. नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी जब मंच पर एक साथ नजर आए तो वोटरों में भरोसा पैदा हुआ. उधर, महागठबंधन बिखरा दिखा. प्रचार में भी महागठबंधन के नेता और कार्यकर्ता अलग-अलग नजर आए. आरेजीडी द्वारा 52 यादव प्रत्याशियों को टिकट देना भी गलत साबित हुआ. आरजेडी ने इस विधानसभा में कुल 144 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, जिनमें 52 यादव जाति के उम्मीदवार थे. आरजेडी का यह फैसला न केवल जातिवादी छवि को मजबूत कर गया, बल्कि गैर-यादव वोट बैंक को दूर भगा दिया. तेजस्वी यादव ने हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. कई और बड़े वादे किए थे. तेजस्वी के इन वादों पर नीतीश की 10 हजार रुपए देने की स्कीम भारी पड़ी.