बोझ समझकर 7 साल की बच्ची को लावारिस छोड़ गए थे मां-बाप, आज अमेरिका में कर रही है ओलंपिक की तैयारी

वैसे तो समाज धीरे-धीरे काफी बदल रहा है, लेकिन अभी भी कई लोग बेटियों को बोझ ही समझते हैं. उन्हें लगता है कि अगर बेटी होगी तो उन्हें उसकी जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी. लेकिन मध्य प्रदेश के विदिशा में रहने वाली इन बेटियों की किस्मत ऐसे चमकी, जिसके बारे में इन्होंने भी खुद आशा नहीं की होगी. जिन बेटियों को बोझ समझकर मां-बाप कचरे के ढेर पर भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ गए थे आज वो इस मुकाम पर हैं कि हर कोई उनकी तारीफ करते नहीं थक रहा है.

Vidisha girls forlorn by parents
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:05 PM IST
  • विदिशा शिशु गृह से लिया गया था गोद
  • बोझ समझकर कचरे में फेक गए थे मां-बाप

वैसे तो समाज धीरे-धीरे काफी बदल रहा है, लेकिन अभी भी कई लोग बेटियों को  बोझ ही समझते हैं. उन्हें लगता है कि अगर बेटी होगी तो उन्हें उसकी जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी. लेकिन मध्य प्रदेश के विदिशा में रहने वाली इन बेटियों की किस्मत ऐसे चमकी, जिसके बारे में इन्होंने भी खुद आशा नहीं की होगी. जिन बेटियों को बोझ समझकर मां-बाप कचरे के ढेर पर भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ गए थे आज वो इस मुकाम पर हैं कि हर कोई उनकी तारीफ करते नहीं थक रहा है. इन बच्चियों की जिंदगी ऐसे बदली कि एक बच्ची अमेरिका में ओलपिंक की तैयारी कर रही है तो दूसरी बच्ची कनाडा में पढ़ाई करके डाक्टर बनना चाहती है. विदिशा की रहने वाली इन लड़कियों को इनके मां-बाप स्टेशन पर लावारिस छोड़कर चले गए थे.  

दुनिया में अब भी मानवता जिंदा है. अपनों के छोड़ जाने के बाद इन बेटियों को विदेशी दंपतियों ने अपना लिया. कुछ साल पहले जिन बच्चियों के भविष्य को लेकर कोई कुछ नहीं कह सकता था, आज वो अपने दम पर अपनी कहानी लिख रही हैं. विदेशी दंपतियों ने चार बेटियों को अपनाया है. ये लड़कियां अमेरिका,कनाडा और माल्टा में रहकर पढ़ाई कर रही हैं. अब वो फर्राटेदार इंग्लिश बोलती हैं. 
 
7 दिन की बच्ची को सड़क पर छोड़ गए थे मां-बाप

भारत सरकार के माध्यम से इन बच्चियों की हर 6 महीने में फालोअप रिपोर्ट आती है. इस रिपोर्ट में उनकी रुचि, पढ़ाई और स्वास्थ्य संबंधी पूरी जानकारी होती है. विदेशों में गई बेटियों की जानकारी वीडियो कालिंग के जरिए समय-समय पर ली जाती है. सिरोंज में लावारिस मिली सुमन अब अमेरिका ओलपिंक की तैयारी कर रही है. 7 दिन की बच्ची को माता-पिता सड़क पर कचरे के ढेर पर छोड़ गए थे जिसे बाद में विदिशा के शिशु गृह में छोड़ दिया गया. इसके बाद इस बच्ची को सुमन नाम दिया गया. अमेरिका के न्यूबर्ग में रहने वाले पेंटर मिंगुई और फायर ब्रिगेड में इंस्पेक्टर किली कैली ने इस बच्ची को विदिशा आकर गोद लिया.

सुमन के पिता पेंटर हैं इसलिए वह पेंटिंग भी सीख रही है. नवंबर 2019 में सुमन को अमेरिकन दंपति अपने साथ ले गए थे. अब ये बच्ची न्यूबर्ग में रहकर स्पोर्ट्स गतिविधियों में बहुत सक्रिय है. सुमन अब अभी से ओलंपिक की तैयारी कर रही है. माता-पिता का कहना है कि बेटी की रुचि खेलों में है. सुमन अब अंग्रेजी भी फर्राटेदार बोलती है. 

कनाडा में रहकर पढ़ाई कर रही है राधा
वहीं 15 दिन की राधा को उसके परिजन नाले के पास छोड़ गए थे. राधा अब कनाडा में रहती है. उसके माता-पिता उसे डाक्टर बनाना चाहते हैं. पठारी क्षेत्र में 15 दिन की बच्ची को 2017 में उसके मां-बाप नाले के पास लावारिस छोड़ गए थे. उसे कनाडा के टोरंटो में रहने वाली भारतीय मूल की अमृता दफ्तरी और कनाडा मूल के केविन हवर्ड ने गोद ले लिया. पिता केविन हवर्ड टोरंटो में वकील हैं और मां अमृता फार्मासिस्ट हैं. राधा अब स्कूल जाने लगी है और उसने बहुत अच्छी अंग्रेजी भी सीख ली है. मां का सपना है कि राधा बड़ी होकर डाक्टर बने इसलिए वो उसे अभी से उसकी तैयारी करा रहे हैं.

दोनों बहनों को गोद लेने के लिए तैयार नहीं था कोई
2015 मे रेलवे स्टेशन पर मिली दोनों बहनें अब माल्टा (यूरोपीय महाद्वीप में स्थित एक विकसित द्वीप ) में पढ़ाई कर रही हैं. दोनों सगी बहने हैं, जिन्हें 2015 में इनके मां-बाप लावारिस छोड़कर चले गए थे. माल्टा में लाइफ साइंस सेंटर के एचओडी इटिनी विला और फार्मासिस्ट मरियम जैमिन ने इन दोनों बहनों को गोद लिया है. एडोप्शन सेंटर के डायरेक्टर राम रघुवंशी ने बताया कि दोनों बहनों को एक ही कपल ने नवंबर 2017 में गोद लिया था. दोनों बहनें अब अंग्रेजी और माल्टी बोलती हैं. नंदिनी जब शिशु गृह में आई थी तब उसकी उम्र 2 साल थी, जबकि पूजा की उम्र 3 साल थी. अब पूजा 10 साल की हो चुकी है और नंदिनी 9 साल की है. शुरुआत में इन दोनों बहनों को एक साथ गोद लेने के लिए कोई तैयार नहीं था. आखिर में माल्टा के रहने वाले दंपति ने इन्हें गोद लिया. माता-पिता ने पूजा को पिप्पा और नंदिनी को नीना नाम दिया है.


 

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