एक नई स्टडी बताती है कि एक साधारण सा ब्लड टेस्ट यह संकेत दे सकता है कि अगले 5 से 10 साल में किसी व्यक्ति को मौत का खतरा कितना है. यह टेस्ट किसी खास बीमारी की पहचान नहीं करता, बल्कि शरीर के अंदर चल रही उन प्रक्रियाओं की ओर इशारा करता है, जो आगे चलकर गंभीर खतरा बन सकती हैं.
क्या कहती है नई स्टडी
यह रिसर्च ब्रिटेन के UK Biobank डेटा पर आधारित है, जिसमें 39 से 70 साल के करीब 38 हजार लोगों को शामिल किया गया. इन लोगों के ब्लड सैंपल लिए गए और उनमें मौजूद लगभग 3,000 प्रोटीन का विश्लेषण किया गया. इसके बाद कई साल तक यह देखा गया कि इनमें से कौन लोग जीवित रहे और किनकी मौत हुई.
शोधकर्ताओं ने पाया कि खून में मौजूद कुछ खास प्रोटीन पैटर्न ऐसे हैं, जो अगले 5 या 10 साल में किसी भी कारण से मौत के खतरे से जुड़े हुए नजर आते हैं, चाहे वह कैंसर हो, हार्ट डिजीज या कोई दूसरी गंभीर बीमारी.
उम्र और वजन से आगे की जानकारी
अब तक डॉक्टर किसी व्यक्ति के भविष्य के स्वास्थ्य का अंदाजा लगाने के लिए उम्र, वजन, बीएमआई, स्मोकिंग और लाइफस्टाइल जैसे फैक्टर्स पर निर्भर रहते थे. लेकिन ये सिर्फ मोटा-मोटा अनुमान देते हैं.
जब इन जानकारियों के साथ खून में मौजूद खास प्रोटीन पैनल को जोड़ा गया, तो अनुमान थोड़ा बेहतर हुआ. शोधकर्ताओं ने 10 साल के खतरे के लिए 10 प्रोटीन और 5 साल के खतरे के लिए 6 प्रोटीन का एक पैनल तैयार किया.
प्रोटीन क्यों हैं खास
खून में मौजूद प्रोटीन शरीर के अंदर चल रही गतिविधियों की लाइव तस्वीर दिखाते हैं. कुछ प्रोटीन शरीर में धीरे-धीरे हो रही सूजन, अंगों पर दबाव या ऊतकों के टूटने का संकेत देते हैं. वहीं कुछ प्रोटीन दिल, इम्यून सिस्टम या ब्लड वेसल्स से जुड़ी समस्याओं की ओर इशारा करते हैं. स्टडी के मुताबिक, इन्हीं छिपे संकेतों के जरिए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में कौन कितना हेल्दी रहने वाला है.
क्या यह टेस्ट मौत की तारीख भी बता सकता है?
नहीं. वैज्ञानिकों ने भी साफ किया है कि यह कोई फाइनल या पक्की भविष्यवाणी नहीं करता. यह सिर्फ एक चेतावनी की तरह है, जो बताती है कि किसी व्यक्ति में दूसरों की तुलना में खतरा थोड़ा ज्यादा हो सकता है. इसका मतलब यह नहीं कि मौत नजदीक है, बल्कि ये टेस्ट बताता है कि आपको एक्स्ट्रा केयर की जरूरत है.
आम लोगों को क्या फायदा होगा
अगर भविष्य में यह टेस्ट आम इस्तेमाल में आता है, तो डॉक्टर ज्यादा सावधानी बरत सकते हैं. ऐसे मरीजों को ज्यादा फॉलो-अप, जल्दी जांच, लाइफस्टाइल में बदलाव या समय पर इलाज की सलाह दी जा सकती है. बढ़ती उम्र और बढ़ती बीमारियों के दौर में ऐसे टेस्ट हेल्थ सिस्टम पर दबाव कम करने में भी मदद कर सकते हैं, क्योंकि इलाज बीमारी होने के बाद नहीं, उससे पहले शुरू हो सकेगा.