इम्पीरियल कॉलेज लंदन और इम्पीरियल कॉलेज हेल्थकेयर एनएचएस ट्रस्ट के रिसर्चर्स ने एक एड्वांस्ड एआई-इनेबल्ड स्टेथोस्कोप विकसित किया है. यह AI स्टेथोस्कोप सिर्फ 15 सेकंड में तीन जानलेवा दिल की बीमारियों का पता लगा सकता है. द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, यह तकनीक दिल की बीमारियों की जांच और इलाज में बड़ा बदलाव ला सकती है.
सामान्य स्टेथोस्कोप का AI अपग्रेड
पिछले 200 सालों से स्टेथोस्कोप डॉक्टरों का सबसे भरोसेमंद टूल रहा है, लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ इसे फिर से डिज़ाइन किया गया है. यह टूस सिर्फ दिल की धड़कन की आवाज़ नहीं बढ़ाता, बल्कि धड़कन और ब्लड प्रेशर में छोटे से छोटे बदलावों का भी पत लगा सकता है. इसके साथ ही यह इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ECG) भी करता है, जिससे डॉक्टरों को तुरंत और सटीक रिपोर्ट मिलती है.
यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी में प्रेजेंटेशन
इस तकनीक को मैड्रिड में यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी के वार्षिक सम्मेलन में प्रेजेंट किया गया. बताया जा रहा है कि इस AI स्टेथोस्कोप का 200 ब्रिटिश क्लीनिकों में 12,725 मरीजों पर ट्रायल किया गया है और डॉक्टर्स को सामान्य स्टेथोस्कोप की तुलना में इससे ज्यादा बेहतर रिजल्ट मिले हैं.
यह AI स्टेथोस्कोप तीन जानलेवा हार्ट कंडीशन्स जैसे हार्ट फेलियर, एट्रियल फिब्रिलेशन (Atrial Fibrillation) और हार्ट वाल्व रोग (Heart Valve Disease) का तुरंत पता लगाता है.
समय से होगा इलाज
नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर रिसर्च के वैज्ञानिक निदेशक प्रोफेसर माइक लुईस का कहना है कि यह खोज मेडिकल सर्विसेज में बड़ा बदलाव ला सकती है. एआई स्टेथोस्कोप की मदद से लोकल डॉक्टर्स पहली बार में ही बीमारियों का पता लगा सकते हैं और समय रहते इलाज शुरू कर सकते हैं.
इस उपकरण का डिज़ाइन बेहद सरल है. प्लेइंग कार्ड के आकार का मॉनिटर मरीज की छाती पर लगाया जाता है, जो ईसीजी और ब्लड प्रेशर की आवाज़, दोनों रिकॉर्ड करता है. इसके बाद यह डेटा क्लाउड पर अपलोड होता है, जहां हजारों मरीजों के रिकॉर्ड पर ट्रेनिंग ले चुका यह AI तत्काल डायग्नोसिस देता है.
आज की दुनिया का इनोवेशन
ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन (BHF) की क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. सोन्या बाबू-नारायण का कहना है कि आज हमें ऐसे नवाचारों की जरूरत है क्योंकि अक्सर हार्ट फेलियर का पता देर से चलता है, जब मरीज आपातकालीन हालत में अस्पताल पहुंचते हैं. अगर समय रहते पता हो, तो मरीज का बेहतर इलाज कर सकते हैं. रिसर्चर्स की योजना अब दक्षिण लंदन, ससेक्स और वेल्स में इस तकनीक के पायलट प्रोजेक्ट को लागू करने की है.
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