उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की एक महिला जब अपने पेट दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंची तो डॉक्टर उसकी जांच करके हैरान रह गए. दरअसल जब पेटदर्द की शिकायत दवाओं से दूर नहीं हुई तो डॉक्टरों ने महिला का एमआरआई स्कैन करने का फैसला किया. इस स्कैन से पता चला कि महिला गर्भवती है. लेकिन वह 12 हफ्ते का बच्चा महिला के गर्भ में नहीं, बल्कि उसके लीवर में पल रहा है.
मेरठ के रेडियोलॉजिस्ट डॉ केके गुप्ता के अनुसार, यह भारत का ऐसा पहला मामला हो सकता है. इस स्थिति को 'इंट्राहेपाटिक एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी' (Intrahepatic Ectopic Pregnancy) कहा जाता है.
क्या होती है इंट्राहेपाटिक एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी?
इंट्राहेपाटिक एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी एक बेहद दुर्लभ और गंभीर स्थिति है. इसमें निषेचित अंडा गर्भाशय के बाहर लीवर के ऊतकों या सतह पर विकसित होने लगता है. सामान्य गर्भावस्था में भ्रूण गर्भाशय की अंदरूनी परत में विकसित होता है, लेकिन एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी में यह असामान्य स्थान पर होता है. इंट्राहेपाटिक एक्टॉपिक प्रेग्नेंसी में भ्रूण यकृत की सतह पर या उसके आसपास के क्षेत्र में स्थापित हो सकता है.
इस तरह की प्रेग्नेंसी खून बहने (Internal Bleeding) और लिवर को नुकसान होने जैसी जटिलताओं का कारण बन सकती है. इसके लक्षणों में पेट में तेज दर्द, असामान्य रक्तस्राव और कभी-कभी बेहोशी या सदमे की स्थिति शामिल हो सकती है. अल्ट्रासाउंड, एमआरआई या अन्य इमेजिंग तकनीकों के जरिए इसका इलाज किया जाता है.
एक बार स्कैन सामने आ जाए तो लैपरोस्कोपी या लैपरोटॉमी जैसी सर्जरी की जरूरत होती है ताकि भ्रूण और प्रभावित सेल्स को हटाया जा सके. यह स्थिति मां के लिए जीवन-घातक हो सकती है, इसलिए फौरन मेडिकल हस्तक्षेप की जरूरत होती है. जोखिम कारकों में पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज, पिछले एक्टॉपिक गर्भधारण, या गर्भनिरोधक उपकरणों का उपयोग शामिल हो सकता है.
क्या बोले डॉक्टर?
डॉ गुप्ता के अनुसार, पूरी दुनिया में अब तक इस तरह के 18 ही केस दर्ज किए गए हैं. यह संभवतः भारत का पहला ऐसा मामला है. डॉ गुप्ता के अनुसार यह प्रेग्नेंसी 14 हफ्ते तक ही रखी जा सकती है. यानी अगले दो हफ्ते में उन्हें ऑपरेशन के जरिए महिला के पेट से यह बच्चा निकालना होगा. अगर बच्चे को सर्जिकली मां से अलग नहीं किया गया तो महिला की जान को खतरा हो सकता है. जानकारी मिलते ही महिला को दिल्ली के एम्स अस्पताल में रेफर कर दिया गया है.