UNICEF Report: मोटापे ने पीछे छोड़ा कुपोषण! दुनिया में पहली बार कुपोषित बच्चों से ज्यादा हैं मोटे बच्चे

UNICEF की रिपोर्ट ने यह धारणा तोड़ी है कि सिर्फ अमीर देशों में मोटापा और गरीब देशों में भूख होती है. साल 2000 से अब तक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मोटे बच्चों की संख्या दोगुनी हो गई है, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह बढ़ोतरी 20% के आसपास रही.

One in 10 children worldwide is now living with obesity, UNICEF warns.
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 12 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:12 PM IST

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में पहली बार मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या कुपोषित (अंडरवेट) बच्चों से ज़्यादा हो गई है. साल 2000 में जहां 13% बच्चे कुपोषित थे, वहीं अब यह संख्या घटकर 9.2% रह गई है. दूसरी ओर, मोटापे और अधिक वज़न वाले बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है. आज हर 10 में से 1 बच्चा मोटापे से ग्रस्त है और हर 5 में से 1 का वज़न सामान्य से ज़्यादा है.

गरीब देशों में भी तेजी से बढ़ रहा मोटापा
रिपोर्ट ने यह धारणा तोड़ी है कि सिर्फ अमीर देशों में मोटापा और गरीब देशों में भूख होती है. साल 2000 से अब तक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मोटे बच्चों की संख्या दोगुनी हो गई है, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह बढ़ोतरी 20% के आसपास रही. 2022 के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 81% अधिक वज़न वाले बच्चे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं.

स्वास्थ्य पर गंभीर असर
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बचपन का मोटापा ज़िंदगीभर की कई बीमारियों का कारण बन सकता है. मोटापा टाइप-2 डायबिटीज़, दिल की बीमारियों और 200 से ज़्यादा गंभीर रोगों का खतरा बढ़ा देता है. यही नहीं, इससे उम्र घटने और समय से पहले मौत का भी जोखिम बढ़ जाता है.

जंक फूड और विज्ञापन बड़ा कारण
यूनिसेफ रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के जीवन में सस्ता और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड जंक फूड लगातार बढ़ रहा है. चीनी, नमक और तेल से भरपूर ये उत्पाद बच्चों के लिए लगभग नशे जैसे हो जाते हैं. 2024 में हुए एक वैश्विक सर्वे में पाया गया कि 171 देशों के 75% युवाओं ने सर्वे के एक हफ्ते पहले जंक फूड और शुगर ड्रिंक्स के विज्ञापन देखे थे. निम्न आय वाले देशों में भी 65% बच्चे स्कूलों, सोशल मीडिया और खेल आयोजनों के ज़रिए इन विज्ञापनों की चपेट में आते हैं.

नीतियों की कमी 
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई भी देश बच्चों को अनहेल्दी फूड प्रोडक्ट्स से बचाने के लिए ठोस नीति नहीं बना पाया है. फूड और ड्रिंक इंडस्ट्री सरकारों पर दबाव डालकर, पॉलिसीज को लेट कराती हैं  और रिसर्च को प्रभावित करके अपनी पकड़ बनाए हुए है.

दोहरी चुनौती: भूख और मोटापा
कई देशों में हालात इतने बिगड़ गए हैं कि एक ही समुदाय में भूख और मोटापा दोनों मौजूद हैं. गरीब देशों में मोटापा अमूमन अमीर घरों में दिखता है. अमीर देशों में गरीब तबके के बच्चे ज़्यादा मोटे होते हैं, क्योंकि वे “फूड डेजर्ट” (जहां पोषणयुक्त खाना नहीं मिलता) और “फूड स्वैम्प” (जहां सिर्फ जंक फूड उपलब्ध है) में रहते हैं.

विशेषज्ञों की राय और समाधान
यूनिसेफ की निदेशक कैथरीन रसेल ने सरकारों से अपील की है कि:

  • स्कूलों में जंक फूड पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जाए.
  • सेहतमंद विकल्पों को सब्सिडी दी जाए.
  • फूड और ड्रिंक इंडस्ट्री की नीति-निर्माण में पकड़ को कम किया जाए.

विश्व मोटापा महासंघ की सीईओ जोहाना राल्स्टन ने कहा कि मोटापे की समस्या हर जगह है, लेकिन इसे नजरअंदाज किया जाता है. इस पर नियंत्रण के लिए पोषण नीति, शारीरिक गतिविधि और मेडिकल सुविधाओं की उपलब्धता पर एक साथ काम करने की ज़रूरत है.

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