
दिल्ली के 37 साल के महेश गौतम कुछ महीने से कंधे में दर्द से परेशान थे. एक एक्सीडेंट के दौरान उनके कंधे में चोट लग गई थी. इलाज के बाद भी उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और वह अपने रोजाना के काम भी नहीं कर पा रहे थे.
ऐसे में महेश गौतम जब बीएलके‑मैक्स पहुंचे तो आर्थ्रोस्कोपी एवं स्पोर्ट्स मेडिसिन सेंटर के प्रिंसिपल डायरेक्टर और HOD, डॉ. दीपक चौधरी की टीम ने उनकी जांच की. रिपोर्ट में सामने आया कि महेश को रोटेटर कफ का टियर हो चुका था. यानी ऐसी स्थिति जहां टेंडन पूरी तरह फट गए होते हैं और उन्हें दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता.
आम इलाज से ठीक नहीं होता ‘रोटेटर कफ टियर’
अब तक अगर किसी का कंधा बुरी तरह से टूट जाए तो आमतौर पर डॉक्टर आखिरी उपाय के तौर पर शोल्डर रिप्लेसमेंट सर्जरी का सुझाव देते थे लेकिन दिल्ली के बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के डॉ. दीपक चौधरी की टीम ने पहली बार बिना कंधा बदले सिर्फ एक डोनर की स्किन (त्वचा) की मदद से कंधे को दोबारा काम करने लायक बना दिया. ऐसा भारत में पहली बार हुआ.
डॉ. दीपक चौधरी की टीम ने महेश का इलाज डोनर स्किन (डर्मल एलोग्राफ्ट) और SCR यानी सुपीरियर कैप्सुलर रिकंस्ट्रक्शन तकनीक से किया. यह एक मिनिमल इनवेसिव (छोटे चीरे वाली) सर्जरी है जिसमें कंधे को फिर से स्थिर बनाया जाता है.
क्या होता है रोटेटर कफ टियर?
डॉ. दीपक चौधरी ने कहा, “रोटेटर कफ टियर उस स्थिति को कहते हैं, जब कंधे को जोड़कर रखने वाली मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. युवाओं में अक्सर किसी चोट के कारण या उम्रदराज लोगों में बढ़ती उम्र के कारण ऐसा होता है. कंधे का जोड़ बॉल और सॉकेट की तरह काम करता है. जब कफ टेंडन पूरी तरह फट जाता है और उसे ठीक नहीं किया जा सकता, तो बॉल अपनी जगह से खिसकने लगती है, जिससे दर्द और कमजोरी होती है.
ज्यादातर मामलों में फिजियोथेरेपी, इंजेक्शन या स्टैंडर्ड आर्थ्रोस्कोपिक रिपेयर से इसे ठीक कर लिया जाता है, लेकिन कभी-कभी टेंडन पूरी तरह जगह से हट चुके होते हैं और उन्हें दोबारा जोड़ पाना संभव नहीं होता. ऐसी स्थिति में डर्मल एलोग्राफ्ट की मदद से आर्थ्रोस्कोपिक सुपीरियर कैप्सुलर रीकंस्ट्रक्शन से समाधान मिलने की उम्मीद रहती है.
मरीज को चीरा नहीं लगाना पड़ता
इस उपलब्धि को लेकर बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में सेंटर फॉर स्पोर्ट्स मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. शिव चौकसी ने कहा, “इस नई तकनीक से अब मरीज को बड़ा चीरा नहीं लगाना पड़ता, और इलाज के बाद जल्दी ठीक भी हो जाते हैं. खासतौर पर जवान लोगों के लिए, जिनका कंधा चोट या गिरने से ठीक से काम नहीं कर पाता, ये तरीका बेहद फायदेमंद है. इससे कंधा दोबारा पहले जैसा सामान्य हो जाता है.''
सर्जरी के बाद महेश को सिर्फ दो दिन में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और उन्होंने जल्दी ही काम पर लौटना भी शुरू कर दिया. अब वह पहले की तरह स्वस्थ और सामान्य जीवन जी रहे हैं.