टाइप-1 डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों के लिए गुड न्यूज है. दुनिया में पहली बार डायबिटीज के एक मरीज में CRISPR तकनीक से जीन एडिट की गई इंसुलिन-प्रोड्यूसिंग कोशिकाएं (cells) ट्रांसप्लांट की गई हैं. खास बात यह है कि ये सेल्स महीनों तक शरीर में इंसुलिन बनाते रहे वो भी बिना किसी दवा या इंजेक्शन की जरूरत के. यह सफल प्रयोग अमेरिका की Sana Biotechnology कंपनी ने किया है.
वैज्ञानिकों ने CRISPR तकनीक की मदद से डेड डोनर से लिए गए पैंक्रियाज सेल्स को इस तरह से एडिट किया कि मरीज का इम्यून सिस्टम उन्हें बाहरी समझकर खत्म न कर सके. आमतौर पर टाइप-1 डायबिटीज में शरीर का इम्यून सिस्टम खुद ही इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स को खत्म कर देता है.
कैसे काम करती है यह तकनीक?
सबसे पहले वैज्ञानिकों ने CRISPR तकनीक की मदद से उन दो खास जीन को हटा दिया, जो शरीर को ये संकेत देते हैं कि कोई बाहरी चीज अंदर आई है.
CD47 नाम के प्रोटीन का जेनेटिक इंस्ट्रक्शन इन सेल्स में डाला गया, जो इम्यून सिस्टम की 'नेचुरल किलर सेल्स' को मैसेज देता है कि इन्हें खत्म न करें.
इन सेल्स को मरीज के शरीर में इम्प्लांट किया गया और महीनों तक उन्होंने बिना किसी दवा के इंसुलिन बनाया.
इस तकनीक से सबसे बड़ी राहत ये है कि मरीज को इम्यून सिस्टम को दबाने वाली दवाएं नहीं लेनी पड़ीं, जो आमतौर पर संक्रमण और कैंसर जैसे जोखिम बढ़ाती हैं.
फिलहाल एक ही मरीज पर हुआ है ट्रायल
हालांकि अभी यह ट्रायल सिर्फ एक मरीज पर ही हुआ है और सीमित मात्रा में ही सेल्स ट्रांसप्लांट किए गए, इसलिए इस पर शोधकर्ता आखिरी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के प्रोफेसर टिम कीफर का कहना है कि भले ही यह मरीज अभी पूरी तरह से इंसुलिन-फ्री नहीं हुआ हो, लेकिन इम्यून क्लोकिंग की प्रक्रिया एक बड़ी उपलब्धि है.
इम्यून क्लोकिंग क्या होती है?
इम्यून क्लोकिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसमें शरीर के इम्यून सिस्टम को धोखा दिया जाता है, ताकि वह किसी बाहरी चीज जैसे ट्रांसप्लांट किए गए सेल्स या टिश्यू पर हमला न करे. आसान भाषा में समझें तो शरीर में ऐसे बदलाव करना कि इम्यून सिस्टम को बाहरी सेल्स भी अपने जैसे लगें, और वह उन्हें नजरअंदाज कर दे.
दुनिया में डायबिटीज के इलाज को लेकर हो रहे प्रयोग
इस बीच अन्य कंपनियां भी डायबिटीज के इलाज में स्टेम सेल्स का इस्तेमाल कर रही हैं. अमेरिका की Vertex Pharmaceuticals कंपनी ने हाल ही में एक ट्रायल में 12 मरीजों में स्टेम सेल्स से बने इंसुलिन-प्रोडयूस सेल्स ट्रांसप्लांट किए, जिनमें से 10 मरीजों को एक साल बाद इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ी.
चीन की Reprogenix Bioscience कंपनी भी मरीज की अपनी फैट टिश्यू से स्टेम सेल्स बनाकर इंसुलिन सेल्स तैयार कर रही है. हालांकि इन सभी तकनीकों में अभी भी मरीजों को इम्यून सप्रेस करने वाली दवाएं लेनी पड़ती हैं.
Sana की तकनीक क्यों है खास?
Sana की CRISPR बेस्ड तकनीक बाकी सभी मेथड से इसलिए अलग है क्योंकि इसमें इम्यून सिस्टम को धोखा देकर बिना दवा के ही ट्रांसप्लांट किए गए सेल्स को जिंदा और एक्टिव रखा जा रहा है.
इस तकनीक की मदद से भविष्य में यह संभव हो सकता है कि डायबिटीज के मरीजों को न तो रोजाना इंसुलिन लेना पड़े और न ही उन्हें इम्यून सप्रेस करने वाली खतरनाक दवाओं का सहारा लेना पड़े. Sana अब इस ट्रायल को और मरीजों पर लागू करने की योजना बना रही है.