फूड डिलीवरी का फॉयल बॉक्स और रेनकोट बन रहे आपके दिमाग के लिए खतरा? सनसनीखेज स्टडी ने खोला बड़ा राज!

रोचेस्टर की स्टडी में पाया गया कि छोटी उम्र में इन केमिकल्स के संपर्क में आने से नर चूहों में चिंता (एंग्जाइटी) और मेमोरी लॉस की समस्या बढ़ गई. ये रसायन ब्लड-ब्रेन बैरियर को पार कर लेते हैं, जो दिमाग को हानिकारक तत्वों से बचाता है. इस बैरियर को तोड़ने के बाद, ये डोपामाइन (मूड और मोटिवेशन को कंट्रोल करने वाला) और ग्लूटामेट (लर्निंग और मेमोरी के लिए ज़रूरी) जैसे न्यूरोट्रांसमीटर्स को बिगाड़ देते हैं.

Food Delivery foil box (Photo/Social Media)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 08 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 3:54 PM IST

क्या आपने कभी सोचा कि रोजमर्रा की चीजें, जैसे फूड डिलीवरी का फॉयल बॉक्स, नॉन-स्टिक बर्तन, या रेनकोट, आपके दिमाग को नुकसान पहुंचा सकते हैं? रोचेस्टर यूनिवर्सिटी के डेल मॉन्टे न्यूरोसाइंस इंस्टीट्यूट की ताजा रिसर्च में एक नया खुलासा हुआ है. इसके मुताबिक, फॉरएवर केमिकल्स (PFAs) चूहों में तनाव और याददाश्त की कमी पैदा कर सकते हैं. ये खतरनाक केमिकल्स हमारे घर में मौजूद हर सामान में छिपे हैं और चुपके से हमारी सेहत को बर्बाद कर रहे हैं! 

फॉरएवर केमिकल्स क्यों हैं खतरनाक?  
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पेर और पॉलीफ्लोरोएल्काइल सब्सटांस (PFAs) ऐसे केमिकल हैं, जो पानी, तेल, और गर्मी को आसानी से झेल लेते हैं. ये नॉन-स्टिक पैन, वॉटरप्रूफ कपड़े, फायरफाइटिंग फोम, और खाने की पैकेजिंग में इस्तेमाल होते हैं. मारेंगो एशिया हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम के न्यूरोसाइंस प्रमुख डॉ. प्रवीण गुप्ता बताते हैं, "ये केमिकल न तो पर्यावरण में नष्ट होते हैं और न ही हमारे शरीर से बाहर निकलते हैं. इन्हें फॉरएवर केमिकल्स इसलिए कहते हैं, क्योंकि ये सालों तक हमारे शरीर में जमा रहते हैं. ये खाने, पानी, और हवा के जरिए हमारे अंदर पहुंचते हैं." लेकिन सबसे डरावनी बात? ये हमारे दिमाग को निशाना बनाते हैं और लंबे समय तक नुकसान पहुंचाते हैं!

दिमाग पर कैसे पड़ता है असर?  
रोचेस्टर की स्टडी में पाया गया कि छोटी उम्र में इन केमिकल्स के संपर्क में आने से नर चूहों में चिंता (एंग्जाइटी) और मेमोरी लॉस की समस्या बढ़ गई. ये रसायन ब्लड-ब्रेन बैरियर को पार कर लेते हैं, जो दिमाग को हानिकारक तत्वों से बचाता है. इस बैरियर को तोड़ने के बाद, ये डोपामाइन (मूड और मोटिवेशन को कंट्रोल करने वाला) और ग्लूटामेट (लर्निंग और मेमोरी के लिए ज़रूरी) जैसे न्यूरोट्रांसमीटर्स को बिगाड़ देते हैं. इसका नतीजा? नींद की गड़बड़ी, तनाव, और दिमागी कमजोरी. यही नहीं, ये रसायन न्यूरोइन्फ्लेमेशन को बढ़ावा देते हैं और नर्व सेल्स को नष्ट कर सकते हैं, जिससे अल्जाइमर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

सेहत पर और क्या खतरे?  
ये फॉरएवर केमिकल्स सिर्फ दिमाग तक सीमित नहीं हैं. ये हार्मोन सिस्टम को बिगाड़कर प्रजनन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. रिसर्च में इनका कनेक्शन लिवर डैमेज, थायरॉयड की गड़बड़ी, और कमज़ोर इम्यूनिटी से भी पाया गया है. नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार, कुछ PFAs किडनी और टेस्टीकुलर कैंसर का जोखिम बढ़ाते हैं. बच्चों में ये ADHD और पढ़ाई में कमज़ोरी जैसी समस्याएँ पैदा कर सकते हैं. सबसे खतरनाक बात? इनका असर लंबे समय तक रहता है, भले ही आप इनके संपर्क में न आएं.

इस खतरे से बचने के लिए क्या करें?  

-नॉन-स्टिक बर्तनों को अलविदा कहें; स्टील या कास्ट आयरन के बर्तन इस्तेमाल करें.  

-फूड डिलीवरी के बजाय घर का खाना खाएं और कांच के बर्तनों में स्टोर करें.  

-वॉटरप्रूफ प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कम करें और RO वॉटर पिएं.  

-PFA-फ्री लेबल वाले कॉस्मेटिक्स चुनें.  

-घर को धूल-मुक्त रखने के लिए नियमित सफाई करें.  

कैसे घुसते हैं ये हमारे शरीर में?  
आपके घर में मौजूद नॉन-स्टिक बर्तन, फूड डिलीवरी के फॉयल बॉक्स, वॉटरप्रूफ जैकेट्स, और कॉस्मेटिक्स तक में PFAs छिपे हो सकते हैं. ये त्वचा, खाने, और सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. धूल और पानी भी इनका बड़ा ज़रिया हैं. डॉ. गुप्ता कहते हैं, "ये केमिकल इतने छोटे हैं कि इन्हें देखना नामुमकिन है, लेकिन इनका असर दशकों तक रहता है." स्टडी में देखा गया कि चूहों में इनके प्रभाव तब भी बने रहे, जब उनका एक्सपोजर खत्म हो गया था.

 

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