क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप रोज़ाना ठीक से ब्रश या फ्लॉस नहीं करते तो इसका असर सिर्फ दांतों तक सीमित नहीं रहता? जी हां, मुंह में पनपने वाले हानिकारक बैक्टीरिया और फंगस आपके लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी (NYU) स्कूल ऑफ मेडिसिन की एक नई रिसर्च के मुताबिक, मुंह में मौजूद कुछ बैक्टीरिया और फंगस पैंक्रियाज कैंसर का खतरा तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं.
इस स्टडी में क्या है खास
वैज्ञानिकों का मानना है कि मुंह के माइक्रोब्स यानी बैक्टीरिया और फंगस लार के जरिए पैंक्रियाज तक पहुंच सकते हैं और कैंसर की शुरुआत कर सकते हैं. ये रिसर्च जामा ऑन्कोलॉजी मेडिकल जर्नल में छपी है. इसमें पहली बार यह पाया गया कि कैंडिडा नाम का एक फंगस, जो सामान्य तौर पर शरीर और स्किन पर पाया जाता है पैंक्रियाज कैंसर के खतरे से जुड़ा हो सकता है.
स्टडी के राइटर डॉ. रिचर्ड हेज कहते हैं, अब यह और भी साफ हो गया है कि दांतों को ब्रश और फ्लॉस करना सिर्फ पेरियोडॉन्टल डिजीज से बचाने के लिए जरूरी नहीं है, बल्कि यह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी सुरक्षा दे सकता है.
कैसे हुई रिसर्च?
यह अब तक की सबसे बड़ी स्टडी है, जिसमें करीब 900 अमेरिकी प्रतिभागियों का डेटा लिया गया. इसमें दो बड़े हेल्थ ट्रायल्स शामिल थे.
American Cancer Society Cancer Prevention Study II
Prostate, Lung, Colorectal and Ovarian Cancer Screening Trial
शुरुआत में सभी प्रतिभागियों ने माउथवॉश से कुल्ला किया और अपना लार का सैंपल दिया. इसके बाद लगभग 9 साल तक इन लोगों को ट्रैक किया गया कि किसे कैंसर हुआ और किसे नहीं.
नतीजे चौंकाने वाले थे. 445 लोगों में पैंक्रियाज कैंसर पाया गया और उनकी लार में मौजूद बैक्टीरिया-फंगस की तुलना उन 445 स्वस्थ लोगों से की गई जिनमें कैंसर नहीं था. रिसर्चरों ने पाया कि 24 तरह के बैक्टीरिया और फंगस या तो खतरा बढ़ाते हैं या कम करते हैं. इनमें से 3 बैक्टीरिया ऐसे भी थे जो मसूड़ों की गंभीर बीमारी (पीरियोडॉन्टल डिजीज) का कारण बनते हैं.
मतलब साफ है. मुंह के हानिकारक कीटाणु पैंक्रियाज कैंसर का रिस्क तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं. अगर डॉक्टर मरीजों के मुंह का बैक्टीरियल और फंगल प्रोफाइल जान लें तो जिन लोगों में सबसे ज्यादा रिस्क है, उन्हें समय रहते स्क्रीनिंग के लिए चुना जा सकता है.
पैंक्रियाज कैंसर क्यों माना जाता है साइलेंट किलर?
पैंक्रियाज यानी अग्न्याशय पेट के पीछे स्थित 25 सेंटीमीटर लंबा अंग है. यह खाने को पचाने वाले एंजाइम और हार्मोन (जैसे इंसुलिन) बनाने का काम करता है. इस कैंसर को साइलेंट किलर इसलिए कहा जाता है क्योंकि शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं और अक्सर किसी दूसरी बीमारी समझ लिए जाते हैं.
पैंक्रियाज कैंसर के लक्षण
आंखों और त्वचा का पीला होना (जॉन्डिस)
खुजली और गहरा मूत्र
भूख न लगना और अचानक वजन कम होना
कब्ज या पेट फूलना
अगर यह कैंसर शुरुआती स्टेज में पकड़ लिया जाए तो आधे मरीज कम से कम एक साल तक जीवित रहते हैं. लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देर से पकड़ा जाता है, जब तक यह शरीर में फैल चुका होता है. उस स्थिति में सिर्फ 10% मरीज ही साल भर से ज्यादा जी पाते हैं.
युवा महिलाओं में बढ़ रहे मामले
ब्रिटेन में 1990 के दशक से अब तक पैंक्रियाज कैंसर के मामलों में करीब 17% की वृद्धि हुई है. खास बात यह है कि 25 साल से कम उम्र की महिलाओं में इसके केस 200% तक बढ़ गए हैं. पुरुषों में ऐसा इजाफा नहीं देखा गया. इसका कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन मोटापा और पर्यावरणीय फैक्टर जिम्मेदार माने जा रहे हैं.
भारत और दुनिया भर में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है. हर साल करीब 10,000 मौतें सिर्फ पैंक्रियाज कैंसर से होती हैं, यानी हर घंटे एक मौत. 2040 तक इसके मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की आशंका है और तब तक लगभग 2 लाख 1 हजार नए केस सामने आ सकते हैं.
किन कारणों से बढ़ता है पैंक्रियाज कैंसर का खतरा?
कैंसर रिसर्च यूके के आंकड़े बताते हैं कि 22% मामले स्मोकिंग से जुड़े होते हैं और 12% मामले मोटापे से. यानी सिगरेट और गुटखा जैसी आदतें न सिर्फ दांत और मसूड़े खराब करती हैं बल्कि सीधे कैंसर का खतरा भी बढ़ाती हैं.
आम लोग इस स्टडी से क्या सीख सकते हैं?
दिन में दो बार ब्रश करें और फ्लॉस की आदत डालें.
माउथवॉश का उपयोग करें ताकि बैक्टीरिया कम हो.
धूम्रपान और तंबाकू से दूर रहें.
मोटापा नियंत्रित रखें और हेल्दी डाइट लें.
अगर पैंक्रियाज कैंसर जैसे लक्षण 4 हफ्ते से ज्यादा समय तक बने रहें तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.