Benefits Of Walking: 10 हज़ार कदम नहीं, केवल 100 मिनट ही हैं काफी... जाने क्या निकलेगा नतीजा

आमतौर लोग लोवर बैक पेन को दूर करने के लिए तरह तरह कि दवाइयों का सेवन करते हैं. लेकिन एक स्टडी से खुलासा हुआ है कि इसके लिए वॉकिंग करना ही है काफी.

gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 17 जून 2025,
  • अपडेटेड 10:41 AM IST

अकसर दफ्तर में घंटों पर बैठकर काम करने वालों को लोवर बैक पेन की समस्या से जूझना पड़ता है. यह कोई आम दर्द नहीं होता. बल्कि ऐसा दर्द होता है जिसमें उठने-बैठने में काफी दिक्कत होती है. कई बार लोग इस दर्द को दूर करने के लिए कई दवाइयां खाते हैं, महंगे फिजियोथेरेपी से सेशन लेते है या फिर योगा को अपनी रूटीन में शामिल करते हैं. लेकिन इसको बावजूद भी उनको इस दर्द से छुटकारा नहीं मिल पाता है.

JAMA Network Open की एक स्टडी से खुलासा हुआ है कि केवल वॉकिंग से लोवर बैक में पेन होने की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है. लेकिन अगर आपको वॉक करने से लोवर बैक में पेन को कम करना है, तो आपको एक बात का जरूर ध्यान रखना होगा.

किस बात का रखें ध्यान?
Norwegian University of Science and Technology के रिसरचर्स ने एक स्टडी की. जिसमें उन्होंने सैंपल के तौर पर 11000 एडल्ट्स को लिया. साथ ही उनके हाथ में कुछ गैजेट बांधा. जिसके बाद उन्हें वॉक करने के लिए कहा गया.

क्या निकला स्टडी का नतीजा?
रिसर्च में सामने आया कि जो लोग 101-124 मिनट तक एक दिन में चले, उनमें लोवर बैक पेन होने की संभावना 23 फीसद तक घट गई. तो वहीं, जो लोग 125 मिनट तक चले, उनमें इन पेन की संभावना 24 फीसद तक घटी. 

साथ ही इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना तेज़ चलते हैं या कितना धीमा. फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता हैं कि आप एक दिन में कितना चल रहे हैं.

क्या हर मामले में वॉकिंग करेगी काम?
वॉकिंग से लोवर बैक पेन को कुछ हद तक ही कम किया जा सकता है. अगर आपकी स्थिति पहले ही काफी बिगड़ चुकी है. तो आपको मेडिकल ट्रीटमेंट लेने की जरूरत पड़ ही जाती है. कई बार यह लोवर बैक पेन शरीर के अन्य अंगों तक भी पहुंच जाता है. चेस्ट पेन, चक्कर, सांस लेने में तकलीफ यहां तक की हार्ट अटैक कुछ ऐसे विषय हैं जो लोवर बैक पेन से ही जुड़े हुए हैं.

वॉकिंग और बैक पेन का संबंध
2024 की एक ऑस्ट्रेलियन स्टडी में सामने आया कि 10 में से 9 बैक पेन ट्रीटमेंट उतनी कारगर नहीं जितनी वॉकिंग की आदत है. इससे लोगों को उन दवाइयों को टाटा-बाय बाय बोलने का मौका मिला, जिन्हें वह काफी समय से खाते आ रहे थे. साथ ही यह दवाइयां कुछ हद तक शरीर के लिए साइड इफेक्ट भी पैदा कर रही थीं.

 

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