कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के एक बयान के बाद वायनाड की नीली हल्दी एक बार फिर चर्चा में आ गई है. प्रियंका गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड की इस दुर्लभ हल्दी का जिक्र करते हुए बताया कि यह गले की खराश दूर करने में मदद करती है. उनके इस बयान के बाद हर कोई इस नीली हल्दी के बारे में जानना चाहता है. क्योंकि ज्यादातर लोगों को तो पता ही नहीं है कि नीली हल्दी भी होती है.
क्या है नीली हल्दी?
नीली हल्दी को आयुर्वेद में काली हल्दी के नाम से जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम Curcuma caesia है. देखने में यह सामान्य हल्दी से बिल्कुल अलग होती है. बाहर से इसका रंग हल्का भूरा होता है, जबकि अंदर से ये नीली और बैंगनी रंग की होती है. यही वजह है कि इसे नीली हल्दी कहा जाता है. यह आमतौर पर रोजमर्रा के खाने में इस्तेमाल नहीं होती. इसका उपयोग दवाइयों में किया जाता है.
कहां पाई जाती है नीली हल्दी?
नीली हल्दी मुख्य रूप से केरल के वायनाड क्षेत्र में पाई जाती है, जहां की जलवायु और मिट्टी इसे उगाने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसके अलावा ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तर-पूर्व भारत के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती होती है. हालांकि, यह पीली हल्दी की तुलना में काफी दुर्लभ है, इसी कारण इसकी कीमत ज्यादा होती है.
औषधीय गुणों से भरपूर होती है नीली हल्दी
नीली हल्दी में एसेंशियल ऑयल्स, करक्यूमिनोइड्स और कई बायोएक्टिव कंपाउंड्स पाए जाते हैं. कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों में इसे एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर बताया गया है. आयुर्वेद में इसका उपयोग गले की खराश, एलर्जी, सूजन और कुछ त्वचा संबंधी समस्याओं में सहायक माना जाता है. निमोनिया, ब्रोंकाइटिस,अस्थमा जैसी फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों के लिए इस हल्दी का सेवन फायदेमंद होता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में नीली हल्दी का सेवन मददगार माना जाता है. इस हल्दी में सूजन रोधी यानी एंटी इंफ्लेमेटरी गुण भी पाए जाते हैं.
किसानों के लिए फायदे का सौदा
बाजार में नीली हल्दी की कीमत 500 से 3000 प्रति किलो तक बताई जाती है, जो सामान्य हल्दी से कहीं ज्यादा है. इसकी अधिक कीमत का कारण इसका औषधीय महत्व और सीमित उत्पादन है. एक एकड़ जमीन में नीली हल्दी की उपज 12 से 15 क्विंटल तक हो सकती है. जो कि मुनाफे का सौदा है. आयुर्वेदिक दवाओं और हर्बल प्रोडक्ट्स की बढ़ती मांग के चलते नीली हल्दी की मांग भी लगातार बढ़ रही है. यही वजह है कि कई किसान अब इसे उगा रहे हैं.