scorecardresearch

अब मेंढक और छिपकली से होगा कैंसर का इलाज? जापानियों की इस रिसर्च के बारे में जान उड़ जाएंगे होश!

जापान के वैज्ञानिकों ने मेंढक, भेक (toad) और छिपकली की आंतों में पाए जाने वाले एक खास बैक्टीरिया की पहचान की है, जो इंसानों में होने वाले खतरनाक कोलोरेक्टल कैंसर को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज भविष्य में कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी से भी ज्यादा सुरक्षित और असरदार इलाज का रास्ता हो सकती है.

मेंढ़क से कैंसर का इलाज मेंढ़क से कैंसर का इलाज

कैंसर को आज भी दुनिया की सबसे गंभीर और जानलेवा बीमारियों में गिना जाता है. विज्ञान और मेडिकल टेक्नोलॉजी में लगातार तरक्की के बावजूद अब तक कैंसर का पूरी तरह और स्थायी इलाज नहीं मिल पाया है. लेकिन अब जापान के वैज्ञानिकों की एक नई खोज ने उम्मीद की एक नई किरण जगा दी है. यह खोज सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन आने वाले वर्षों में यह लाखों जिंदगियां बचा सकती है.

दरअसल, जापान के वैज्ञानिकों ने मेंढक, भेक (toad) और छिपकली की आंतों में पाए जाने वाले एक खास बैक्टीरिया की पहचान की है, जो इंसानों में होने वाले खतरनाक कोलोरेक्टल कैंसर को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज भविष्य में कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी से भी ज्यादा सुरक्षित और असरदार इलाज का रास्ता हो सकती है.

क्या कहती है रिसर्च
यह रिसर्च जापान की नागोया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने की है और इसे करीब 7 दिन पहले प्रकाशित किया गया. शोधकर्ताओं ने एक बैक्टीरिया की पहचान की है, जिसका नाम Ewingella americana है. यह बैक्टीरिया आमतौर पर मेंढक और छिपकली जैसे जीवों की पाचन प्रणाली में पाया जाता है. पहले इसे एक सामान्य और नुकसान रहित बैक्टीरिया माना जाता था, लेकिन अब यह कैंसर के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार बनकर उभरा है.

रिसर्च टीम ने जापानी ट्री फ्रॉग, जापानी फायर-बेली न्यूट और जापानी ग्रास लिजर्ड की आंतों से कुल 45 अलग-अलग बैक्टीरियल स्ट्रेन अलग किए. इनमें से 9 स्ट्रेन में कैंसर विरोधी गुण पाए गए, लेकिन Ewingella americana सबसे ज्यादा प्रभावी साबित हुआ.

कैसे काम करता है यह बैक्टीरिया?
लैब में किए गए परीक्षणों के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि यह बैक्टीरिया सीधे कैंसर ट्यूमर पर हमला करता है. यह ट्यूमर के अंदर घुसकर शरीर की इम्यून सिस्टम को उसी जगह सक्रिय कर देता है. इसके बाद शरीर की T-Cells कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर उन पर हमला करती हैं और उन्हें खत्म करने लगती हैं. इस प्रक्रिया से न सिर्फ ट्यूमर की बढ़त रुकती है, बल्कि समय के साथ उसका आकार भी छोटा होने लगता है. यानी शरीर खुद ही कैंसर से लड़ने लगता है.

क्या कीमोथेरेपी से मिलेगी राहत?
आज के समय में कीमोथेरेपी कैंसर का सबसे आम इलाज है, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स बेहद दर्दनाक होते हैं. बालों का झड़ना, कमजोरी, उल्टी और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं मरीजों की जिंदगी को मुश्किल बना देती हैं. अगर यह जापानी रिसर्च आगे के क्लिनिकल ट्रायल्स में सफल रहती है, तो भविष्य में बैक्टीरियल थेरेपी एक नया और सुरक्षित विकल्प बन सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, अब तक के परीक्षणों में इस बैक्टीरिया के गंभीर साइड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं.

वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले समय में इस बैक्टीरिया पर और रिसर्च की जाएगी. भविष्य में इसे ब्रेस्ट कैंसर, पैंक्रियाटिक कैंसर जैसे अन्य गंभीर कैंसर के इलाज में भी आजमाया जा सकता है. 

ये भी पढ़ें: