शारीरिक और मानसिक चुनौतियों को पार करके मात्र 13 साल की उम्र में बनीं 'भारत की रबर गर्ल,' मिला प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार

'रबर गर्ल' के नाम से मशहूर अन्वी विजय झांझरूकिया को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये सूरत के कलेक्टर की उपस्थिति में प्रदान किया. पीएम मोदी ने 'रबर गर्ल' अन्वी और उनके माता-पिता से भी ऑनलाइन बातचीत की.

Anvi Vijay Zanzarukia (Image: DSFI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 25 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 8:02 AM IST
  • जन्म से शारीरिक और मानसिक चुनौतियों से घिरी थीं अन्वी
  • तीन सालों से कर रही हैं कठिन योगाभ्यास
  • अब तक जीत चुकी हैं 51 से ज्यादा पदक

'रबर गर्ल' के नाम से मशहूर अन्वी विजय झांझरूकिया को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये सूरत के कलेक्टर की उपस्थिति में प्रदान किया. पीएम मोदी ने 'रबर गर्ल' अन्वी और उनके माता-पिता से भी ऑनलाइन बातचीत की.

13 साल की अन्वी ने अपनी शारीरिक और मानसिक अक्षमताओं के बावजूद योग में अपनी पहचान बनाई है. जी हां, अन्वी एक ऐसी बच्ची है जो जन्म से ही कई तरह की बिमारियों से ग्रस्त हैं. उन्हें जन्म से ही दिल की बीमारी थी, जिसके कारण उनकी ओपन-हार्ट सर्जरी हुई. 

इसके अलावा उन्हें "ट्रिसोमी 21" है और इस स्थिति के कारण उन्हें 75% बौद्धिक विकलांगता है. और अन्वी को हिर्शस्प्रुंग रोग है, जिसके कारण बड़ी आंत (कोलन) प्रभावित होती है. और आपका पेट ढंग से साफ नहीं हो पाता है. 

चुनौतियों को पार कर बनी रबर गर्ल: 

अन्वी ऐसी कई समस्याओं के बावजूद योग की अद्भुत कला जानती है और वह अपने शरीर को अलग-अलग तरीकों से मोड़ सकती हैं. और इसलिए उन्हें रबर गर्ल के नाम से जाना जाता है. वह पिछले तीन साल से योग सीख रही हैं. 

अन्वी ने अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से योग में विभिन्न राज्य और राष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते हैं. उन्होंने पिछले तीन वर्षों में राष्ट्रीय स्तर की योग प्रतियोगिताओं में तीन स्वर्ण पदक और दो कांस्य पदक जीते हैं. उन्होंने अब तक 42 से ज्यादा योग प्रतियोगिताओं में भाग लिया है और अब तक 51 पदक जीते हैं. 

मां के साथ ने दी राह: 

अन्वी आज सभी दिव्यांग बच्चों के लिए एक आदर्श हैं. और खास बात ये है कि ये सारे अवॉर्ड उन्होंने सामान्य बच्चों यानी स्वस्थ बच्चों से प्रतिस्पर्धा करके जीते हैं. क्योंकि योग में मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए अलग से कोई कैटेगरी नहीं है.

अन्वी की उपलब्धि के लिए अथक प्रयास करने वाली उनकी मां, अवनि का कहना है कि उन्होंने अपनी बेटी पर गर्व है. कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं के बावजूद अन्वी ने हार नहीं मानी. शुरुआत में अन्वी अपने दैनिक काम भी नहीं कर पाती थीं. 

लेकिन जब अन्वी 10 साल की थी तो उनकी मां ने देखा कि अपने सिर पर पैर रखकर सो रही हैं. योगासन जैसी मुद्रा को देखकर उनकी मां ने उन्हें योग क्षेत्र में भेजने का विचार किया और उन्हें योग प्रशिक्षण दिलाने लगीं. 

अन्वी के पिता विजय का कहना है कि अन्वी की इच्छा योग का अभ्यास करके देश का नाम रोशन करते रहने की है और साथ ही वह पीएम मोदी के साथ एक मंच पर योग और सूर्य नमस्कार करना चाहती है. 

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