राजस्थान में चलती बस में आग लगने से 24 लोगों की मौत हो गई. मामले में जांच रिपोर्ट ने हैरतअंगेज़ ख़ुलासा किया है. जेस जैनम बस कंपनी की बनाई जिन बस में आग लगी थी, उसकी 66 बसों की जांच की परिवहन विभाग के अफ़सरों के साथ मिली भगत पाई गई.
अपनी मर्जी से होती मोडिफिकेशन
जांच में पता चला कि पूरी बस के बजाय केवल चेसिस का ही रजिस्ट्रेशन करवाया जाता थी. जिसके बाद अपनी मर्ज़ी से बस का मोडिफिकेशन किया जाता था. परिवहन विभाग के अधिकारी मिलीभगत कर इन्हें सड़कों पर चलने देते हैं क्योंकि इन 66 बसों में से किसी की जांच न तो बस बॉडी बनाने से पहले की गई और न ही ये चेसिस को सड़क पर उतरने से पहले की गई.
अलग-अलग जगह मिला रजिस्ट्रेशन
इन बसों का रजिस्ट्रेशन राजस्थान के बजाय 10 बसों का अरुणाचल प्रदेश, 5 का नागालैंड, 5 बिहार और 4 असम में कराया गया है. जैनम कंपनी की 66 में से 26 बसों का जैसे रजिस्ट्रेशन बिना बॉडी तैयार करवाए हीं कर दी गई है. यानी बस के चेसिस को हीं सड़क पर चलाने की इजाज़त बस के रूप में दे दी गई. नियम के अनुसार तैयार बस को चलाने का सर्टिफ़िकेट दिया जाता है. यह ख़ुलासा ख़ुद परिवहन विभाग की जांच में हुआ है.
प्रशिक्षित कारीगरों की कमी
जैसलमेर अग्निकांड के बाद परिवहन विभाग ने जांच कमेटी बनाई थी. जानम कोच कंपनी का मालिक मनीष जैन पाले ख़ुद जैन ट्रेवल्स के नाम से बस चलाता था. दो तीन साल पहले इसने बस की बॉडी बनाने की फ़ैक्ट्री डाली थी. हादसे में बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की वजह यह भी रही कि बस में इमरजेंसी गेट नहीं थे. इसकी जगह इसने दो सीट एक्स्ट्रा बना रखी थी.
बस बॉडी फ़ैक्ट्री में वायरिंग करने के लिए कोई भी प्रशिक्षित इलेक्ट्रिशियन नहीं था. बस के पीछे एसी में शॉट सर्किट होने की वजह से आग लगी थी. वायरिंग में सस्ते वायर इस्तेमाल किए गए थे. ये बस तो नॉन एसी खरीदता था फिर उसे एसी बस में बदलता था. एक्सपोर्ट ने एसी के लोड और वायरिंग पर भी सवाल उठाए हैं. बस में सीट और स्लीपर बढ़ाने के लिए बस के साइज़ को भी बढ़ा दिया गया था.
-शरत शर्मा की रिपोर्ट