वाराणसी के लिए इस बार का स्वतंत्रता दिवस बेहद खास है. शहर के हृदय में स्थित बंगाली टोला इंटर कॉलेज सिर्फ एक शैक्षणिक संस्था नहीं, बल्कि आजादी के आंदोलन का एक ऐतिहासिक गढ़ रहा है. यहां वह मिट्टी है, जहां कभी क्रांतिकारियों ने बैठकर ब्रिटिश राज के खिलाफ बड़े-बड़े फैसले लिए, और जहां से काकोरी कांड जैसी ऐतिहासिक घटना की रणनीति तैयार हुई.
9 अगस्त 1925- यही वह दिन था जब हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के वीर सपूतों ने अंग्रेज़ी हुकूमत की नाक में दम कर दिया. लखनऊ के पास काकोरी और आलमनगर के बीच चल रही ट्रेन से सरकारी खजाना लूट लिया गया. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस साहसिक घटना की योजना वाराणसी के इसी बंगाली टोला इंटर कॉलेज में बनी थी.
1854 में स्थापित, 1857 की क्रांति का गुप्त ठिकाना
बंगाली समाज द्वारा 1854 में स्थापित इस विद्यालय ने आजादी की लड़ाई में कई अनकही कहानियों को जन्म दिया. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तक यह विद्यालय क्रांतिकारियों की गुप्त बैठकों का ठिकाना बन गया. कॉलेज के एक कमरे में रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने साथियों के साथ मिलकर काकोरी कांड की पूरी योजना बनाई थी.
यहां के शिक्षक और छात्र सिर्फ पढ़ाई में नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी अव्वल थे. शिक्षक सुशील कुमार लाहिड़ी और उनके शिष्य राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को काकोरी कांड में मृत्युदंड दिया गया. राजेंद्रनाथ ने ही उस दिन ट्रेन की चेन पुलिंग कर ऑपरेशन को अंजाम दिलाया था. छात्र शचीन्द्रनाथ सान्याल ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई थी.
काकोरी कांड के शहीदों की स्मृति में बनी शहीद वेदी
आज भी कॉलेज में प्रवेश करते ही एक शहीद वेदी दिखाई देती है, जिस पर स्वर्ण अक्षरों में उन वीरों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया.
इस शिला पट्ट पर लिखा है: “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी- बंगाली टोला इंटर कॉलेज, काशी के उन छात्रों तथा शिक्षकों की पावन स्मृति में जिन्होंने मातृभूमि को स्वतंत्र करने में अपना जीवन उत्सर्ग किया.”
सूची में शामिल हैं:
… और कई अन्य नाम, जिन्होंने बनारस कांड, लाहौर षड्यंत्र और काकोरी कांड में भाग लिया.
गर्व से भरे शिक्षक और छात्र
कॉलेज के वर्तमान प्रधानाचार्य बृजेश मणि पांडेय बताते हैं, "हमारे लिए गर्व की बात है कि जिस विद्यालय में हम पढ़ा रहे हैं, वही कभी देश की आजादी की रणनीति का केंद्र था."
उपप्रधानाचार्य शैलेंद्र कुमार जायसवाल कहते हैं, "यहां पढ़ने वाला हर बच्चा इन शहीदों की कहानियों से प्रेरित होता है."
छात्र अनमोल बिंद और सात्विक पोद्दार कहते हैं कि यहां की हवा में ही देशभक्ति घुली है.
स्वतंत्रता संग्राम में अनोखी भूमिका
इतिहासकार मानते हैं कि काकोरी कांड सिर्फ एक डकैती नहीं थी, बल्कि यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक राजनीतिक संदेश था कि हिंदुस्तान के युवा अब डरने वाले नहीं हैं. और इस संदेश की शुरुआत वाराणसी के इसी स्कूल से हुई थी.
आज जब काकोरी कांड को 100 साल पूरे हो चुके हैं, बंगाली टोला इंटर कॉलेज अब भी उसी जोश और गर्व के साथ अपने इतिहास को संजोए हुए है. यहां हर स्वतंत्रता दिवस पर शहीदों के नाम पुकारे जाते हैं और उनकी कहानियां नई पीढ़ी को सुनाई जाती हैं.
(रोशन कुमार की रिपोर्ट)