Seat Sharing Clash in NDA and Mahagathbandhan: बिहार विधानसभा कि कुल 243 सीटों पर अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं. हालांकि चुनाव आयोग ने अभी आधिकारिक तारीखें घोषित नहीं की हैं लेकिन अभी से सीट शेयरिंग को लेकर गतिविधियां तेज हो गई हैं. बिहार की राजनीति हमेशा से गठबंधनों की जटिल ज्योमेट्री पर टिकी रही है, जहां सीट बंटवारा न केवल जीत-हार तय करता है, बल्कि सत्ता के समीकरणों को भी बदल देता है.
इस बार चुनाव में एनडीए और इंडिया एलायंस में जोरदार मुकाबला देखने को मिलेगा. नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (NDA) में जहां 5 पार्टियां शामिल हैं तो वहीं इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव एलायंस (INDIA) में 8 दल हैं. दोनों ही गठबंधनों में कौन सा दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा यह अभी तक साफ नहीं हुआ. सीटों को लेकर खींचतान जारी है. एनडीए में बीजेपी और जेडीयू के बीच तो लगभग सहमति बन चुकी है, लेकिन चिराग पासवान की एलजेपी और जीतन राम मांझी की हम पार्टी ज्यादा सीटें पाने के लिए जोर लगा रही है. उधर, इंडिया एलायंस में शामिल आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच सीटों के लिए जोड़तोड़ जारी है. कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव में 70 विधानसभा सीटों की मांग की है. लालू की पार्टी राजद शायद ही इतनी सीटें कांग्रेस को देने को राजी हो. अब सवाल उठ रहा है कि दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला कैसे तय होगा.
एनडीए में कहां फंस रहा पेच
एनडीए में पांच दल भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा शामिल हैं. एनडीए की अगुवाई बीजेपी कर रही है. सीट बंटवारे को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच तो लगभग सहमति बन चुकी है. भाजपा और जदयू में 200 से 205 सीटों पर लड़ने पर सहमति है. जदयू जहां 100 सीटों पर लड़ सकती है तो वहीं बीजेपी अपने पास 100+ सीटें रखेगी. लेकिन एनडीए की छोटे सहयोगी पार्टियां ज्यादा सीटें मांग रही हैं. लोजपा (रा) के प्रमुख चिराग पासवान 40 से अधिक सीटें मांग रहे हैं तो वहीं जीतन राम मांझी की हम पार्टी को 15-20 सीटों से कम मंजूर नहीं.
मांझी तो यहां तक कह चुके हैं कि यदि उन्हें उम्मीद के मुताबिक के सीटें नहीं मिलीं तो उनकी पार्टी बिहार चुनाव में काम से कम 100 सीटों पर उम्मीदवार देगी. पिछले चुनाव 2020 में भी जीतन मांझी की (हम) एनडीए की पार्टनर थी. मांझी की पार्टी तब 7 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उस समय चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए के पार्टनर नहीं थे, अब दोनों हैं तो मांझी के लिए बारगेनिंग चैलेंज थोड़ा बढ़ गया है.एनडीए के अंदर सीट बंटवारे पर फंसे पेंच को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा चिराग की ही हो रही है. एनडीए के अंदर सीट शेयरिंग को लेकर जिस फॉर्मूले की चर्चा है उसके मुताबिक चिराग पासवान की पार्टी को 20 के आसपास सीटें दी जा सकती हैं. यह चिराग की पार्टी को स्वीकार नहीं है. ऐसे में इतनी सीटों पर चिराग को राजी करवाने के लिए बीजेपी कोई और ऑफर भी दे सकती है.
चिराग पासवान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि जैसे सब्जी में नमक होता है, वैसे ही मैं भी हूं. उन्होंने यहां तक कहा कि मेरी पार्टी का हर सीट पर 20 हजार से 25 हजार वोटों पर प्रभाव है. चिराग पासवान के इस बयान में बड़ा मैसेज छिपा है. चिराग अपने इस बयान से एनडीए और सूबे की सत्ता में अपनी अहमियत बता रहे हैं. आपको मालूम हो कि विधानसभा चुनाव 2020 में चिराग अकेले चुनाव लड़े थे. उन्होंने 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और सिर्फ एक पर जीत मिली थी. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग की पार्टी 5 सीटों पर लड़ी और सभी पर जीत मिली. इस प्रदर्शन ने चिराग का हौसला बढ़ाया. उधर, चिराग पासवान हो या फिर जीतन राम मांझी इन दोनों के बयानों पर फिलहाल जेडीयू और बीजेपी ने चुप्पी साथ रखी है. उधर, एनडीए में शामिल उपेंद्र कुशवाहा अभी चुप हैं, लेकिन उनकी नजर भी 8 से 10 सीटों पर लगी है.
इंडिया एलायंस में कहां फंस रहा पेच
इंडिया एलायंस में कुल आठ पार्टियां शामिल हैं. इसमें पहले आरजेडी और कांग्रेस के साथ तीन लेफ्ट पार्टियां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) थीं. मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और पशुपति पारस की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के आने से महागठबंधन का संख्याबल आठ पहुंच चुका है. महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच सीटों के लिए जोड़तोड़ जारी है. कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव में 70 विधानसभा सीटों की मांग की है.
सीपीआई (एमएल) 40-45 सीटों पर दावेदारी ठोक रही है. इससे महागठबंधन के सीट बंटवारे का मामला और उलझ गया है. महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख भूमिका निभा रहा है, लेकिन सहयोगी पार्टियां अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए हर हथकंडे अपना रही हैं. आरजेडी कम से कम 150 सीटें अपने लिए चाहती है, जबकि बाकी पार्टियां अपनी मजबूती के आधार पर दबाव बना रही हैं. सीपीआई (एमएल) के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने स्पष्ट कहा कि पार्टी दक्षिण बिहार के 12 जिलों में मजबूत है और उत्तर बिहार (मिथिला, चंपारण) में फैलना चाहती है. वाम दलों (CPI, CPM, CPI-ML) ने मिलकर 75 सीटें मांगी हैं. विकासशील इंसान पार्टी ने 60 सीटों के साथ उपमुख्यमंत्री पद पर दावा जताया है.
राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी 10 तो झामुमो 5 सीटें मांग रही है. ऐसे में राजद सभी दलों के सम्मान की मांग मान लेता है उसके हिस्से महज 58 सीटें रह जाएंगी. मुश्किल यह है कि कांग्रेस और राजद दोनों दूसरे सहयोगी दलों को सीट आवंटन के मामले में एक दूसरे से ज्यादा से ज्यादा त्याग की उम्मीद कर रहे हैं. राजद सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व चाहता है कि कांग्रेस 70 की जगह अधिकतम 40 सीटों पर चुनाव लड़े. इसके बाद उसके हिस्से की बची 30 सीटों को वीआईपी, झामुमो और राष्ट्रीय एलजेपी में बांट दिया जाए. उधर, कांग्रेस चाहती है कि इन सहयोगियों के लिए त्याग करने की जिम्मेदारी राजद की है. जानकार बता रहे हैं कि बिहार विधानसभा की 'जंग' में कांग्रेस उप-मुख्यमंत्री पद की डिमांड के साथ उतरेगी तो सीटों की संख्या को लेकर थोड़ा ज्यादा लिबरल होगी. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान का टारगेट 60 से 50 सीटों के बीच होगा. इन सीटों में पिछली विधानसभा चुनाव में जीती हुई 19 सीटें तो रहेंगी ही, इस पर कोई समझौता नहीं होगा. हालांकि महागठबंधन में अब तक सीट शेयरिंग से जुड़ी कई बैठकें हुई लेकिन, महागठबंधन अभी ठोस नतीजे से दूर है.