Indian Railways: 1200 करोड़ रुपये के फालतू खर्च को बचाने के लिए रेलवे लाया जबरदस्त प्लान...अब ऐसे बचेंगे पैसे

रेलवे ने यात्रियों की सुख सुविधा को ध्यान में रखते हुए काफी कुछ नए बदलाव करने की कोशिश की है. रेलवे ने स्टेशन और ट्रेनों को साफ-सुथरा रखने के लिए एक शानदार प्लान तैयार किया है. कोरोना संकट में सख्ती के बावजूद रेलवे स्टेशनों और प्लेटफॉर्म या किसी सार्वजनिक स्थान पर लोगों के थूकने की आदत पर काबू नहीं पाया जा सका है.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 17 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST
  • 42 स्टेशनों पर लगाई जाएगी मशीन
  • हर साल 1200 करोड़ रुपये खर्च करता है रेलवे

रेलवे ने यात्रियों की सुख सुविधा को ध्यान में रखते हुए काफी कुछ नए बदलाव करने की कोशिश की है. रेलवे ने स्टेशन और ट्रेनों को साफ-सुथरा रखने के लिए एक शानदार प्लान तैयार किया है. कोरोना संकट में सख्ती के बावजूद रेलवे स्टेशनों और प्लेटफॉर्म या किसी सार्वजनिक स्थान पर लोगों के थूकने की आदत पर काबू नहीं पाया जा सका है. लेकिन अब रेलवे ने इन आदतों पर काबू पाने का एक नया तरीका ढूंढ निकाला है.

हर साल 1200 करोड़ रुपये खर्च करता है रेलवे
इस आदत पर काबू पाने के लिए रेलवे ने बहुत ही नया तरीका निकाला है. आपको यह जानकर हैरानी होगी रेलवे हर साल पान और तंबाकू खाने वालों के थूकने से होने वाले दाग-धब्बों को साफ करने के लिए 1200 करोड़ रुपये खर्च करता है. मतलब कि हम कह सकते हैं कि रेलवे हर साल बेवजह एक बुरी आदत को हटाने के लिए 1200 करोड़ रुपये खर्च करता है. 

42 स्टेशनों पर लगाई जाएगी मशीन
रेलवे ने हर साल बर्बाद होने वाले इस 1200 करोड़ रुपये को बचाने के लिए अब एक शानदार योजना तैयार की है. इसके तहत रेलवे परिसर में लोगों को थूकने से रोकने के लिए अब 42 स्टेशनों पर वेंडिंग मशीन और कियोस्क लगाए जाएंगे. खबर के मुताबिक इस वेंडिंग मशीन में रेलवे की ओर से 5 रुपये और 10 रुपये तक के स्पिटून पाउच दिए जाएंगे. इसके लिए रेलवे के तीन जोन पश्चिम, उत्तर और मध्य रेलवे ने नागपुर स्थित स्टार्टअप इजीपिस्ट को ठेका दिया है. इस स्पिटून की खासियत यह है कि इसे कोई भी व्यक्ति अपनी जेब में आसानी से ले जा सकता है. इन पाउच की मदद से यात्री बिना किसी दाग ​​के कहीं भी, कभी भी थूक सकता है. मतलब अब 1200 करोड़ रुपये बर्बाद नहीं होंगे.

कैसे करेंगे काम?
इन बायोडिग्रेडेबल पाउच को 15-20 बार इस्तेमाल किया जा सकता है. दरअसल, ये थूक को ठोस पदार्थ में बदल देता है. एक बार पूरी तरह से इस्तेमाल करने के बाद इन पाउचों को मिट्टी में डाल दिया जाता है, जिसके बाद ये पूरी तरह से घुल जाते हैं. यानी इससे प्रदूषण का खतरा भी नहीं राहत है.


 

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