कर्ज के जाल में फंसाकर छीनी किडनी, वादे के पैसे भी नहीं मिले… नामक्कल जिले के पीड़ितों की दर्दनाक कहानी... सरगना फरार, जांच जारी  

किडनी निकालने के बाद पीड़ितों की सेहत पर गंभीर असर पड़ा. मल्लिगा जैसे कई लोग अब स्थायी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं. सामाजिक कलंक और डर के कारण अधिकांश पीड़ित शिकायत दर्ज करने से हिचकते हैं.

Kidney Racket
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 12:54 PM IST

तमिलनाडु का एक छोटा-सा जिला, आज एक भयावह किडनी तस्करी रैकेट के कारण सुर्खियों में है. यहां गरीब और कर्ज में डूबे लोगों को निशाना बनाकर उनकी किडनी निकालने का सनसनीखेज मामला सामने आया है. इस रैकेट ने न केवल लोगों की जिंदगियां तबाह की हैं, बल्कि मानवता पर भी सवाल उठाए हैं. 

कर्ज के बदले किडनी की सौदेबाजी  
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, पल्लिपलायम की रहने वाली 38 वर्षीय मल्लिगा की कहानी दिल दहलाने वाली है. मल्लिगा ने अपने परिवार के लिए एक महिला स्वयं सहायता समूह से 1.5 लाख रुपये का कर्ज लिया था. जब वह इसे चुका नहीं पाई, तो दलालों ने उसे बहलाया कि उसकी किडनी बेचने से न केवल कर्ज माफ हो जाएगा, बल्कि उसे 3 लाख रुपये भी मिलेंगे.

मल्लिगा को चेन्नई के एक निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी किडनी निकाल ली गई. लेकिन न तो कर्ज माफ हुआ और न ही वादा किया गया पैसा मिला. मल्लिगा बताती हैं, "मुझे सिर्फ 50 हजार रुपये दिए गए. अब न मेरी सेहत ठीक है, न ही कर्ज खत्म हुआ. मैं अपने बच्चों के लिए क्या करूं?"  

पुलिस जांच में पता चला कि मल्लिगा अकेली नहीं हैं. नामक्कल के पल्लिपलायम, अग्रहारम, वेप्पोडाई, और कुमारपालायम जैसे इलाकों में पावरलूम और डाइंग मिल में काम करने वाले मजदूरों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया. इनमें ज्यादातर महिलाएं थीं, जो गरीबी, बेरोजगारी, और कर्ज के दबाव में थीं. दलालों ने इनकी मजबूरी का फायदा उठाया और उन्हें 5 से 10 लाख रुपये के वादे के साथ चेन्नई, बेंगलुरु, और कोच्चि के निजी अस्पतालों में ले गए.  

रैकेट का खुलासा और सरकारी कार्रवाई  
यह मामला तब सामने आया जब एक पीड़ित महिला ने सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती साझा की. उसने बताया कि उसे 5 लाख रुपये का वादा किया गया था, लेकिन ऑपरेशन के बाद उसे सिर्फ 50 हजार रुपये मिले. इस खुलासे के बाद तमिलनाडु स्वास्थ्य विभाग ने तुरंत कार्रवाई शुरू की. नामक्कल के संयुक्त स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉ. राजमोहन की अगुवाई में एक जांच कमेटी गठित की गई. इस कमेटी ने पल्लिपलायम और कुमारपालायम में छानबीन की और 12 पीड़ितों की पहचान की. इनमें से एक पीड़ित ने स्वीकार किया कि उसने एक निजी अस्पताल में किडनी दान दी थी.  

द हिन्दू की रिपोर्ट की मानें, तो स्वास्थ्य विभाग ने दो निजी अस्पतालों- पेरंबलूर के धनलक्ष्मी श्रीनिवासन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल और त्रिची के सेथर अस्पताल के किडनी ट्रांसप्लांट लाइसेंस को निलंबित कर दिया. यह कार्रवाई मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 की धारा 16(2) के तहत की गई. जांच में पाया गया कि इन अस्पतालों में जाली आधार कार्ड और मेडिकल दस्तावेजों का इस्तेमाल कर अवैध प्रत्यारोपण किए गए. मुख्य सरगना मुरुगन उर्फ द्रविड़ा आनंदन, जो कथित तौर पर डीएमके का स्थानीय कार्यकर्ता है, अभी भी फरार है. पुलिस ने अब तक 9 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें 3 डॉक्टर, एक नर्स, और एक दलाल शामिल हैं.  

कैसे काम करता था यह रैकेट?  
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जांच से पता चला कि यह रैकेट सुनियोजित तरीके से काम करता था. दलाल पहले कर्ज में डूबे मजदूरों की पहचान करते थे. ये लोग अक्सर माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से भारी ब्याज पर कर्ज ले चुके होते थे. दलाल इनसे संपर्क करते और कर्ज चुकाने के लिए किडनी बेचने का प्रस्ताव देते. पीड़ितों को जाली दस्तावेजों के साथ चेन्नई, बेंगलुरु, या कोच्चि के अस्पतालों में ले जाया जाता. वहां उनकी किडनी निकाल ली जाती थी, लेकिन वादे के मुताबिक पैसा नहीं दिया जाता. कई मामलों में, पीड़ितों को और लोगों को लाने के लिए कमीशन का लालच दिया जाता, जिससे यह दुष्चक्र और बढ़ता गया.  

स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव  
किडनी निकालने के बाद पीड़ितों की सेहत पर गंभीर असर पड़ा. मल्लिगा जैसे कई लोग अब स्थायी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं. सामाजिक कलंक और डर के कारण अधिकांश पीड़ित शिकायत दर्ज करने से हिचकते हैं. 2001 में चेन्नई में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 96% लोग कर्ज चुकाने के लिए अपनी किडनी बेचते हैं, लेकिन इसके बाद उनकी आय में एक-तिहाई की कमी आती है और गरीबी बढ़ जाती है.  

सरकार और समाज के सामने चुनौती  
तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री एम. सुब्रमण्यम ने कहा, "केवल स्वैच्छिक अंग दान कानूनी है. अंग बेचना गंभीर अपराध है, और इसमें शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा." सरकार ने जांच तेज कर दी है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बुनियादी ढांचा मजबूत नहीं होगा, निजी अस्पतालों पर निर्भरता बनी रहेगी, जिससे ऐसे रैकेट पनपते रहेंगे.  
 

 

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