Malegaon blast verdict: साध्वी प्रज्ञा समेत मालेगांव ब्लास्ट केस में सभी आरोपी बरी! कोर्ट ने कहा- सबूत नाकाफी, शक से परे साबित नहीं कर पाई अभियोजन पक्ष

2008 का मालेगांव ब्लास्ट केस भारत के कानूनी इतिहास में एक लंबा और पेचीदा मुकदमा रहा. 17 वर्षों के बाद आए इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि कानून की नजर में केवल आरोप नहीं, सबूत जरूरी होते हैं.

Malegaon blast verdict
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:47 AM IST

2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए विस्फोट मामले में आज विशेष अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया गया है, जिनमें भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, और समाजसेवी समीऱ कुलकर्णी सहित अन्य शामिल हैं.

मालेगांव ब्लास्ट में क्या हुआ था?
29 सितंबर 2008 की शाम मालेगांव शहर के भीड़भाड़ वाले भिकू चौक इलाके में एक मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटक से धमाका हुआ था. इस हादसे में 6 लोगों की मौत और 101 लोग घायल हुए थे. यह समय रमजान का पवित्र महीना था और इलाका मुस्लिम बाहुल्य था, जिससे यह हमला सांप्रदायिक दृष्टिकोण से ज्यादा संवेदनशील बन गया.

घटना के बाद पुलिस ने एक बजाज मोटरसाइकिल को घटनास्थल से जब्त किया, जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर साध्वी प्रज्ञा से जुड़ा हुआ था. इसके बाद एक के बाद एक गिरफ्तारियां हुईं, और मामला एक "हिंदू आतंकवाद" की थ्योरी में तब्दील हो गया.

कोर्ट में क्या हुआ?
मामले की सुनवाई मुंबई की एनआईए कोर्ट में चल रही थी, जिसकी अध्यक्षता स्पेशल जज ए.के. लाहोटी कर रहे थे. अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि विस्फोट में आरडीएक्स का इस्तेमाल हुआ, जिसे कथित तौर पर लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित कश्मीर से लाए थे और सुधाकर चतुर्वेदी के घर में रखा गया था.

जज ए.के. लाहोटी ने फैसले में क्या कहा?

  1. कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं: कोर्ट ने पाया कि कोई प्रत्यक्ष सबूत मौजूद नहीं है कि पुरोहित आरडीएक्स लाए और बम तैयार किया.
  2. वाहन का स्वामित्व साबित नहीं: मोटरसाइकिल पर लगे चेसिस नंबर को मिटा दिया गया था, जिससे यह साबित नहीं हो पाया कि वह गाड़ी वास्तव में साध्वी प्रज्ञा की थी.
  3. संवेदनशील परिस्थितियां, लेकिन सबूत नहीं: कोर्ट ने माना कि विस्फोट एक गंभीर अपराध था, परंतु केवल नैतिक आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता.
  4. UAPA और MCOCA पर सवाल: अदालत ने कहा कि यूएपीए (UAPA) के तहत दी गई मंजूरी उचित नहीं थी, और MCOCA की मंजूरी को पहले ही सुप्रीम कोर्ट खारिज कर चुका है.
  5. फोन इंटरसेप्शन अवैध: अभियुक्तों की फोन कॉल रिकॉर्डिंग (जो पुलिस अधिकारी परमबीर सिंह द्वारा कराई गई थी) कोर्ट ने अमान्य करार दी क्योंकि इसकी पूर्व स्वीकृति नहीं थी.

इसपर जज ने टिप्पणी करते हुए कहा, “सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अभियोजन पक्ष को अपराध को संदेह से परे साबित करना होता है.”

कौन-कौन थे आरोपी?

  • प्रज्ञा सिंह ठाकुर- भाजपा सांसद, पूर्व संन्यासिनी
  • ले. कर्नल प्रसाद पुरोहित- सेवारत सेना अधिकारी
  • मेजर रमेश उपाध्याय- रिटायर्ड सेना अधिकारी
  • समीर कुलकर्णी- समाजसेवी
  • अजय राहिरकर- व्यवसायी
  • सुधाकर चतुर्वेदी- सैन्य खुफिया से जुड़ा व्यक्ति
  • सुधाकर धरद्विवेदी- शंकराचार्य के नाम से भी पहचाने जाते हैं

कोर्ट परिसर में क्या हुआ?
आज जब फैसला सुनाया गया तो साध्वी प्रज्ञा भगवा कपड़ों में कोर्ट में मौजूद थीं. उनके वकील ने उन्हें गवाह बॉक्स के पास बैठने की अनुमति मांगी, जिसे कोर्ट ने मान लिया. समीर कुलकर्णी भगवा कुर्ता पहने सबसे आगे बैठे थे. ले. कर्नल पुरोहित सिविल ड्रेस में थे और कहा, "मैं हमेशा तैयार हूं."

मुआवजा और आगे की कार्रवाई

  1. मृतकों के परिजनों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 का मुआवजा देने का आदेश
  2. पुलिस को स्वतंत्र रूप से अन्य आरोपियों पर चार्जशीट दाखिल करने की छूट
  3. सभी सात आरोपी पूरी तरह बरी किए गए

2008 का मालेगांव ब्लास्ट केस भारत के कानूनी इतिहास में एक लंबा और पेचीदा मुकदमा रहा. 17 वर्षों के बाद आए इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि कानून की नजर में केवल आरोप नहीं, सबूत जरूरी होते हैं. इस केस से यह संदेश भी गया कि धार्मिक और राजनीतिक नैरेटिव्स के बावजूद न्याय प्रक्रिया केवल प्रमाणों के आधार पर चलती है.

(इनपुट- विद्या)
 

 

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