मल्हार राव होल्कर, भारत में मराठा साम्राज्य के एक कुलीन थे. मल्हार राव को विशेष रूप से मध्य भारत में मालवा के पहले मराठा सूबेदार के रूप में जाना जाता है. वह होल्कर परिवार से पहले राजकुमार थे जिन्होंने इंदौर राज्य पर शासन किया था. उन्होंने मराठा शासन को उत्तरी राज्यों में फैलाने में मदद की. और उनकी काबिलियत से खुश होकर पेशवाओं ने उन्हें इंदौर का शासन दिया था.
मल्हार राव होल्कर को उनकी वीरता और साहस के साथ-साथ स्त्रियों को समान अधिकार देने के लिए भी जाना जाता है. आपको बता दें कि मशहूर मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर, जिन्हें मातोश्री कहा जाता है, मल्हार राव की बहू थीं. अहिल्याबाई की शिक्षा से लेकर उनके सत्ता संभालने तक, मल्हार राव ने उनके जीवन में अहम भूमिका निभाई.
सामान्य परिवार से थे मल्हार राव होल्कर
बताया जाता है कि मल्हार राव होल्कर, होल्कर साम्राज्य के संस्थापक थे. उन्हें राजपाट विरासत में नहीं मिला था बल्कि वह एक पशुपालक समुदाय, धनगर से आते थे. लेकिन समय के साथ मल्हार एक योद्धा के रूप में उभरे. पहले वह पेशवा की सेना में सैनिक तैनात हुए और फिर अपनी काबिलियत के दम पर सूबेदार बने.
धनगर की पशुपालक जाति में, परिवार की संपत्ति का एक चौथाई हिस्सा महिलाओं के लिए निजी संपत्ति के रूप में आरक्षित करने की पुरानी परंपरा थी. और मराठा साम्राज्य के सूबेदार बनने के बाद, जब मल्हार राव की संपत्ति बढ़ी तो भी उन्होंने इस प्रथा को जीवित रखा. उन्होंने पेशवाओं से मिलने वाले धन को (सरंजम) को दो हिस्सों में बांटने का फैसला किया - दौलत (कमाई) और खज्जी (महिलाओं के लिए निजी संपत्ति).
कहते हैं कि मल्हार राव के परिवार की सभी स्त्रियों को खज्जी मिलती थी. और इस दौलत का प्रयोग स्त्रियां अपनी इच्छानुसार कर सकती थीं. हालांकि, होल्कार परिवार की रानियों ने अपनी इस निजी संपत्ति से बहुत से मंदिरों, किलों और बावड़ी आदि का निर्माण कराया.
बने अहिल्याबाई के मार्गदर्शक
अगर बात होल्कर परिवार की सबसे मजबूत और लोकप्रिय रानी, अहिल्याबाई की करें तो आपको समझ आएगा कि मल्हार राव होल्कर अपने जमाने के फेमिनिस्ट थे. उन्होंने एक आम सी लड़की को पहले अपने घर की बहू बनाया और फिर मालवा की शासक. यह मल्हार राव थे जिन्होंने अहिल्याबाई के स्त्री शिक्षा अभियान को सफल करने में अहम भूमिका निभाई.
उन्होंने सबके विरुद्ध जाकर अहिल्या को पढ़ाया और साथ ही, शस्त्र शिक्षा भी दी. किशोरावस्था तक आते-आते अहिल्या राज-काज के कामों में पूरी तरह दक्ष हो गई थीं. मल्हार राव को मार्गदर्शन में अहिल्या बाई एक आम लड़की से कुशल राजनितिज्ञ बन गई थीं. यहां तक कि साल 1754 में जब अहिल्या बाई के पति खंडेराव की मृत्यू हुई तब अहिल्या को सती होने से रोकने वाले भी मल्हार राव थे.
बहू के हाथों में सौंपी सत्ता
मल्हार राव ने अहिल्या बाई को न सिर्फ सती होने से रोका बल्कि उन्हें अहिल्या की आंखों में होल्कर वंश की उम्मीद दिखी. उन्होंने अहिल्या को सत्ता सौंपने का फैसला किया. अहिल्याबाई को उन्होंने आगे बढ़कर राज्य और अपनी प्रजा को संभालने का हौसला दिया. उन्होंने अहिल्या को दिशा दी. यहां तक कि जब मल्हार राव राज्य के भ्रमण पर होते थे जब अहिल्याबाई ही राजधानी में कामकाज संभालती थीं.
अहिल्याबाई के राज्य में सुख-संपदा और समृद्धि थी और वह हमेशा अपनी प्रजा के बारे में सोचती थीं. उन्होंने जगह-जगह बहुत से मंदिरों, तालाबों और बावड़ियों का निर्माण कराया. मल्हार राव की विरासत को अहिल्याबाई ने अपना अंतिम सांस तक संभाला. इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि अहिल्याबाई की कामयाबी के पीछे मल्हार राव थे. वह सही मायनों में फेमिनिस्ट या कहें कि स्त्री सत्ता के हिमायती थे.