इस साल मानसून केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में समय से पहले पहुंच गया है. मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में भी मानसून सोमवार को ही पहुंच गया है, जो तय समय से करीब दो हफ्ते पहले है. इस साल दो कारक काफी महत्वपूर्ण हैं. पहला यह कि देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून का एक से दो हफ्ते पहले पहुंचना, जबकि दूसरा यह कि इसने 24 मई को एक ही दिन में केरल से लेकर महाराष्ट्र तक के बड़े क्षेत्र को कवर कर लिया.
क्या अकसर जल्दी आता है मानसून?
भारत के जलवायु इतिहास में मानसून का पहले ही दिन एक बड़े क्षेत्र को कवर करना असामान्य नहीं है. सन् 1971 में भी इसी तरह की घटना हुई थी, जब मानसून ने कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को कवर किया था, जो शुरुआती दौर में जोरदार बारिश का संकेत था. इसलिए ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. लेकिन यह आम भी नहीं है क्योंकि इसे दोहराने में 54 साल लग गए.
मौजूदा सक्रिय मानसून की स्थिति कम से कम दो जून तक जारी रहने की उम्मीद है. यह निरंतर गतिविधि मानसून को महाराष्ट्र और पूर्वी क्षेत्रों में आगे बढ़ने में मदद करेगी. हालांकि, मानसून की इस शुरुआती हलचल के बाद जून की शुरुआत में प्रगति धीमी होने की उम्मीद है. मानसून की प्रगति में इस तरह की मंदी असामान्य नहीं है और हाल के वर्षों में भी देखी गई है.
यह अंतराल अवधि मध्य अक्षांश शुष्क वायु द्रव्यमानों (Mid latitude dry air masseS) के घुसपैठ के कारण होती है. ये शुष्क हवा घुसपैठ नमी से भरी मानसून धाराओं को रोकती है जिससे बारिश में रुकावट आती है और इसकी प्रगति रुक जाती है. हाल के वर्षों में यह घटना और भी अधिक बार घटने लगी है. इससे मानसून का समग्र स्वरूप और परिवर्तनशीलता प्रभावित हो रही है.
कैसे प्रभावित हो रही मानसून की गति?
मानसून की शुरुआत और प्रगति एक या सिर्फ़ कुछ कारकों पर निर्भर नहीं करती है. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए जलवायु संबंधी कारक और मानवजनित कारक जिम्मेदार होते हैं. दोनों ही कारक मौसम की स्थिति को प्रभावित करते हैं. हालांकि, आईएमडी का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों का मानसून जैसे बड़े सिस्टम पर सीमित प्रभाव पड़ता है.
तो ऐसे जल्दी आया मानसून
मानसून में बदलाव एक नहीं बल्कि कई कारणों से हुआ है. वायुमंडलीय, समुद्री और स्थलीय कारण विशाल मानसून प्रणाली को लाने और आगे बढ़ाने में योगदान देते हैं. मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (MJO) के अनुकूल चरण के कारण मानसून जल्दी आया. MJO एक 30-60 दिन की पूर्व दिशा में फैलने वाला सिस्टम है जो मानसून के सक्रिय (गीले) और ब्रेक (शुष्क) चरणों को प्रभावित करता है.
MJO को 8 चरणों में विभाजित किया जा सकता है. नॉर्मफ़ेज़ दो और तीन मानसून प्रणाली की प्रगति का समर्थन करते हैं. इस साल मई के मध्य में MJO चरण-3 में था. इससे दक्षिणी भारत में संवहन और वर्षा में इजाफा. 25 मई तक यह चरण 4 में परिवर्तित हो गया. इसने हिंद महासागर से नमी के परिवहन को मजबूत करके मानसून की शुरुआत का समर्थन किया. चरण-3 और चरण-4 की शुरुआती गतिविधि ने मानसूनी हवाओं के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाईं. इसका मुख्य कारण मानसूनी सिस्टम का जल्दी और व्यापक आगमन है.
इसके अलावा अल नीनो का प्रभाव भी रहा. मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में असामान्य रूप से गर्म सतह के तापमान से चिह्नित जलवायु पैटर्न को 'अल नीनो' कहा जाता है. यह समुद्र की सतह के औसत तापमान (SST) से अधिक गर्म होने का संकेत देता है.
इस वर्ष मई में ENSO (अल नीनो दक्षिणी दोलन) जून से सितंबर के मानसून के मौसम के दौरान तटस्थ अवस्था में रहने की संभावना है. अल नीनो की उपस्थिति दक्षिण-पश्चिम मानसून को कमजोर करती है और इसलिए न्यूट्रल ENSO स्थिति अच्छे मानसून में मदद कर रही है.
हिंद महासागर डिपोल (IOD) ने भी मानसून के आगमन में एक अहम भूमिका निभाई है. हिंद महासागर का पश्चिमी भाग सामान्य रूप से गर्म होता है, जबकि महासागर का पूर्वी भाग सामान्य रूप से ठंडा होता है. इन दोनों के बीच तापमान का अंतर मानसून की प्रगति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अगर महासागर का डिपोल पॉजिटिव होगा तो यह आमतौर पर नमी से भरी हवाओं को मजबूत करके मानसून को बढ़ावा देगा. जबकि नकारात्मक डिपोल मानसून को दबा देता है.
वर्तमान पूर्वानुमान यह है कि इस वर्ष के मानसून के मौसम के लिए डिपोल न्यूट्रल रहेगा. कुछ मॉडल यह भी कहते हैं कि अगस्त और सितंबर में यह पॉजिटिव हो सकता है.