उत्तर प्रदेश सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों के लिए नई व्यवस्था लागू कर दी है, जिसमें अब जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों को हटाने के लिए सामान्य अविश्वास प्रस्ताव पत्र पर्याप्त नहीं होगा. ऐसे में ब्लॉक प्रमुखों और जिला पंचायत अध्यक्ष को हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत से सदस्यों का प्रस्ताव पारित होना जरूरी होगा. साथ ही 2 साल से पहले अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा, जिसके चलते अबजिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी कम से कम 1 साल और सुरक्षित हो जाएगी और इनके खिलाफ अगले एक वर्ष तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा.
1 साल तक कुर्सी सुरक्षित
मौजूदा सरकार द्वारा बदली गई नीति के तहत अब अविश्वास प्रस्ताव 50 फीसदी से ज्यादा वोटों के आधार पर पास नहीं किया जा सकेगा. मिली जानकारी के मुताबिक पिछले कई दिनों में 25 से ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के खिलाफ मिल चुके हैं. ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव पत्र को स्वीकार करने का मतलब यह होगा कि जिलों में विकास के काम काज में बाधा लाना क्योंकि पिछले साल ही पंचायत चुनाव संपन्न हुए हैं और इसी को देखते हुए सरकार ने नई नीति व्यवस्था लागू करते हुए प्रस्ताव लाने की अवधि को 2 साल कर दिया है. ऐसे में अब 1 साल तक जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों की सूची सुरक्षित मानी जा रही है.
संशोधन अध्यादेश जल्द होगी लागू
जानकारी के मुताबिक मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की तरफ से निर्देश जारी किया गया है. साथ ही लखनऊ स्थित पंचायती राज विभाग के डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर को जानकारी देते हुए बताया गया है जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लॉक प्रमुखों के खिलाफ मिल रहे अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ नए नियम अधिसूचित किए गए हैं. जिसके चलते क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत संशोधन अध्यादेश के निर्देशों को अमल में लाया जाए. इतना ही नहीं अपर मुख्य सचिव की तरफ से जिलों के सभी जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, राज्य निर्वाचन आयोग, मंडलायुक्त और पंचायती राज अधिकारी को भी संशोधन अध्यादेश की सूचना दी गई है और उसे अमल में लाए जाने की बात कही गई है.
कुर्सी की स्थिरता बनाए रखने के लिए लाई गई गई नीति
वहीं वरिष्ठ पत्रकार विजय उपाध्याय ने बताया कि अक्सर अविश्वास प्रस्ताव पत्र लाकर दबाव बनाया जाता है, जिसमें रूलिंग पार्टी और विपक्ष की पार्टी अपने-अपने अध्यक्षों के लिए लड़ाई लड़ते हैं, अगर रूलिंग पार्टी का अध्यक्ष है तो विपक्ष वाले प्रस्ताव लाते हैं और यदि विपक्ष का अध्यक्ष है तो रूलिंग पार्टी प्रस्ताव लाती है, इस प्रक्रिया से असर पड़ता है और अस्थिरता बनी रहती है क्योंकि जो पैसा गांव के विकास के लिए मिला होता है, वह ठीक से खर्च नहीं हो पाता है. ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव पत्र खारिज करने का कारण यह है कि सरकार ने दांव खेलते हुए नई नीति लाई है ताकि कुर्सी की स्थिरता बनी रहे क्योंकि जो टेंडर होते हैं जो गांव के विकास के कार्यों के लिए पैसा मिलता है, उसका सही इस्तेमाल हो सके और क्षेत्रों में विकास किया जा सके. पत्रकार विजय उपाध्याय ने बताया कि अगर स्थिर व्यवस्था बनी रहेगी तो पंचायत अध्यक्षों की कुर्सी भी स्थिर बनी रहेगी ऐसे में काम भी स्थिर और तेज होगा.
अब होगा स्थिर अध्यक्ष
एक और वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि यह चुनाव जो होते हैं, यह अप्रत्यक्ष रूप से होते हैं जिसमें जनता बीडीसी चुनती है और बीडीसी ब्लॉक प्रमुख को चुनते हैं. ठीक इसी तरह जनता जिला पंचायत सदस्यों को चुनती है और जिला पंचायत सदस्य जिला पंचायत अध्यक्ष चुनते हैं. हेमंत तिवारी ने बताया कि यह चुनाव पैसे और राज सत्ता की ताकत का होता है, जिसमें धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल किया जाता है. हेमंत तिवारी ने उदाहरण देते हुए बताया कि जिसकी सरकार सत्ता में होती है उसी का जिला पंचायत अध्यक्ष भी होता है. ठीक उसी तरह जिस तरीके से अखिलेश यादव सत्ता में थे और उन्होंने 70 में से 12 पंचायत सदस्य जीते थे लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष उन्हीं का हुआ था. हेमंत तिवारी ने आगे बताया कि 1989 के बाद से यूपी में सरकारें बदलती रही हैं. कोई भी सरकार लगातार रिपीट नहीं की. कभी 3 साल की सरकार रही तो कभी 5 साल किसी की सरकार रही, ऐसे में जब सरकारें बदलती रहीं तो अविश्वास प्रस्ताव पत्र आता रहा और जिला पंचायत अध्यक्ष बदलते रहे लेकिन इस बार सरकार रिपीट कर दी गई है जब सरकार ही नहीं बदली तो जिला पंचायत अध्यक्ष क्यों बदला जाएगा. अब अपना स्थिर अध्यक्ष मिलेगा जो स्थाई रहेगा और कामकाज भी सुचारू रूप से चलेगा जो पैसे आवंटित किया जाता था, अब उनका दुरुपयोग नहीं होगा क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने से अब कोई यह नहीं कह सकेगा जिले की उन्नति इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव पत्र पारित हो जाने से अध्यक्ष अपनी कुर्सी पर नहीं बनी रह सके.
लखनऊ से सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट