सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधानसभाओं के पारित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय किया है. इस फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सवाल उठाया है. राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को 14 सवाल भेजे हैं और कोर्ट की राय मांगी है. राष्ट्रपति ने इस फैसले को संवैधानिक मूल्यों और सिस्टम के विपरीत बताया है और इसे संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण बताया है. राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 200 के तहत 3 महीने की समय सीमा तय कर सकता है, जबकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है.
राष्ट्रपति के 14 सवाल-
राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है. यह प्रावधान राष्ट्रपति क कानून या तथ्य के प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने की अनुमति देता है. चलिए आपको बताते हैं कि राष्ट्रपति ने 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है.
क्या सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए बाध्य है?
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक संविधान विशेषज्ञ ने बताया कि राम मंदिर विवाद पर नरसिम्हा राव सरकार के रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के मामलों में राय देना अनुच्छेद 142 के दायरे में नहीं आता. साल 1993 में कावेरी जल विवाद पर भी कोर्ट ने इनकार कर दिया था. साल 2002 में गुजरात चुनावों के मामलों में कोर्ट ने कहा था कि अपील या पुनर्विचार याचिका की बजाय रेफरेंस भेजने का विकल्प गलत है.
राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट राय मानने को बाध्य है?
रिपोर्ट के मुताबिक संविधान विशेषज्ञ ने बताया कि संविधान के प्रावधान और कई फैसलों से यह भी साफ है कि अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय राष्ट्रपति और केंद्र सरकार पर बाध्यकारी नहीं है.
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