Rajasthan: जमवारामगढ़ में ड्रोन से आर्टिफिशियल बारिश का टेस्ट, सूखा से निजात दिलाने की दिशा में ऐतिहासिक पहल

राजस्थान के सूखा प्रभावित इलाकों में स्थाई समाधान खोजने की दिशा में ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हुई. जमवारामगढ़ में ड्रोन से क्लाउड सीडिंग परीक्षा की शुरुआत की गई. मौसम की परिस्थितियों के आधार पर अगले दो महीनों में करीब 60 टेस्ट ड्राइव की जाएंगी. महीने में 4 से 5 बार ड्रोन को उड़ाकर प्रयोग किया जाएगा और प्रत्येक प्रयास के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव का भी अध्ययन होगा.

Cloud seeding using drone
रिदम जैन
  • जयपुर,
  • 13 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST

राजस्थान में जल संकट को कम करने और सूखा प्रभावित इलाकों में स्थायी समाधान खोजने की दिशा में मंगलवार को एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हुई. कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के अथक प्रयासों और मार्गदर्शन में जमवारामगढ़ बांध क्षेत्र में ड्रोन के जरिए क्लाउड सीडिंग का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया. इस अत्याधुनिक तकनीक का मुख्य उद्देश्य रामगढ़ झील को पुनर्जीवित करना, भूमिगत जल भंडार को रिचार्ज करना और क्षेत्र की पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बहाल करना है. कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर हजारों लोग मौजूद रहे, जिससे भीड़ का आकार अनुमान से कहीं अधिक था. वैज्ञानिक, तकनीकी विशेषज्ञ, कृषि विभाग के अधिकारी और स्थानीय लोग इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने. डॉ. मीणा ने उद्घाटन अवसर पर कहा कि यह अनुसंधान एवं विकास आधारित पायलट प्रोजेक्ट भारत में अपनी तरह का पहला प्रयास है जिसमें ड्रोन बेस्ड क्लाउड सीडिंग तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का समन्वय किया गया है. यह तकनीक ‘हाइड्रो ट्रेस’ नामक एआई पावर्ड प्लेटफॉर्म पर आधारित है, जो रियल टाइम डेटा, सैटेलाइट इमेजिंग और सेंसर नेटवर्क का इस्तेमाल कर सही समय और सही बादलों को निशाना बनाकर कृत्रिम वर्षा करवाने में मदद करता है. इस 60 दिनों के मिशन में ड्रोन को बादलों के पास भेजकर सोडियम क्लोराइड या अन्य सुरक्षित सीडिंग एजेंट छोड़े जाएंगे, जिससे बादलों में मौजूद नमी के कण आपस में मिलकर पानी की बूंदों में बदल जाएंगे और बारिश होगी.

भीड़ की वजह से बाधित हुआ जीपीएस सिग्नल-
हालांकि पहले दिन का परीक्षण उम्मीद के अनुसार सफल नहीं हो सका. उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान भीड़ के अधिक होने से जीपीएस सिग्नल बाधित हो गया, जिसके कारण ड्रोन अपेक्षित ऊंचाई तक नहीं उड़ पाया. पहले प्रयास में ड्रोन ने पंखे चलाए, लेकिन जमीन से ऊपर नहीं उठा, जबकि दूसरे प्रयास में वह थोड़ी ऊंचाई पर उड़कर बांध के नीचे झाड़ियों में अटक गया. इस दौरान वहां मौजूद लोग ड्रोन के पास पहुंचकर वीडियो बनाने लगे, जिससे भीड़ और बढ़ गई और पुलिस के साथ हल्की झड़प भी हुई, जिसे बाद में शांत कराया गया. तकनीकी टीम ने बताया कि भीड़ और नेटवर्क जाम होने से जीपीएस सिग्नल लॉस हुआ, जिसके कारण ड्रोन ऑटो-लैंडिंग मोड में आ गया. अब अगली बार प्रयास के दौरान भीड़ को सीमित किया जाएगा और मल्टी नेटवर्क जैमर लगाए जाएंगे, ताकि सिग्नल बाधित न हो और ड्रोन आसानी से बादलों तक पहुंच सके.

कौन चला रहा ये प्रोजेक्ट?
यह प्रोजेक्ट अमेरिका और बेंगलुरु की तकनीकी कंपनी ‘जेन एक्स एआई’ के सहयोग से चलाया जा रहा है. कंपनी के फाउंडर और एमडी राकेश अग्रवाल के अनुसार, देश में अब तक क्लाउड सीडिंग बड़े पैमाने पर हवाई जहाज के जरिए की जाती रही है, लेकिन यह पहला मौका है जब ड्रोन के जरिए सीमित दायरे में प्रिसीजन बेस्ड तकनीक से कृत्रिम बारिश का प्रयास किया जा रहा है. इस तकनीक की खासियत यह है कि यह पिन-पॉइंट लोकेशन पर बारिश करवाने में सक्षम है, जबकि पारंपरिक तरीकों में बड़े इलाके को टारगेट किया जाता है और परिणाम कम नियंत्रित होते हैं. इस प्रयास के लिए केंद्र और राज्य सरकार के सभी आवश्यक विभागों से मंजूरी प्राप्त हो चुकी है, जिसमें डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA), कृषि विभाग, मौसम विभाग और जिला प्रशासन की अनुमति शामिल है. मौसम विभाग से प्राप्त डेटा को एआई के माध्यम से प्रोसेस कर एक्सेल-1 और जेन एक्स एआई के वैज्ञानिक क्लाउड मूवमेंट की सटीक जानकारी हासिल करेंगे, ताकि सही समय पर सीडिंग की जा सके.

20 दिनों से रिसर्च में जुटी वैज्ञानिकों की टीम-
वैज्ञानिकों की टीम पिछले 20 दिनों से जयपुर में रहकर यहां के मौसम और बादलों के पैटर्न का अध्ययन कर रही है. एक्सेल-1 कंपनी के चीफ क्लाइमेट इंजीनियर ऑफिसर डॉ. एन. साई भास्कर रेड्डी ने बताया कि आज ड्रोन को 400 फीट तक उड़ाने की योजना थी, लेकिन एक बड़ी तकनीकी चुनौती यह है कि इस समय बादलों की रेंज 400 फीट से अधिक ऊंचाई पर है. पहले यह परीक्षण 31 जुलाई को होना था, लेकिन भारी बारिश की चेतावनी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. अब इसे दोबारा शुरू किया गया है और मौसम की परिस्थितियों के आधार पर अगले दो महीनों में करीब 60 टेस्ट ड्राइव की जाएंगी. महीने में 4 से 5 बार ड्रोन को उड़ाकर प्रयोग किया जाएगा और प्रत्येक प्रयास के दौरान पर्यावरणीय प्रभाव का भी अध्ययन होगा.

पूरी तरह से सुरक्षित है तकनीक- डॉ. मीणा
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने कहा कि यह तकनीक पूरी तरह सुरक्षित है और इसमें उपयोग किए जाने वाले सीडिंग एजेंट्स अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल किए जाते हैं, जो मानव, पशु और फसलों के लिए हानिकारक नहीं हैं. इस मिशन से तत्काल प्रभाव के रूप में बारिश के रूप में परिणाम देखने को मिल सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक लाभ झील के जलस्तर में वृद्धि, भूमिगत जलस्तर में सुधार और कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के रूप में सामने आएंगे. यदि यह पायलट प्रोजेक्ट सफल होता है, तो इसे राजस्थान के अन्य सूखा प्रभावित इलाकों और देश के विभिन्न हिस्सों में भी लागू किया जाएगा, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा, फसलों की पैदावार में वृद्धि होगी और सूखे का असर कम होगा.

2 महीने बाद सरकार को दिया जाएगा डाटा-
जेन एक्स एआई के एमडी राकेश अग्रवाल ने बताया कि कंपनी यह पूरा प्रयोग अपने खर्च पर कर रही है और दो महीने के बाद सभी डेटा और रिपोर्ट राजस्थान सरकार से साझा की जाएगी. उनका मानना है कि यदि यह प्रयोग सफल रहा तो राजस्थान के बड़े हिस्से को इसका सीधा लाभ मिलेगा, खासकर उन इलाकों को जहां मानसूनी बादल होने के बावजूद बारिश नहीं हो पाती. इस प्रिसीजन बेस्ड तकनीक से ऐसे क्षेत्रों में कृत्रिम बारिश करवाकर फसलों को सूखने से बचाया जा सकता है. वरिष्ठ वैज्ञानिक कल्याण चक्रवर्ती ने कहा कि यह प्रयोग पहली बार भारत में किया जा रहा है, हालांकि अमेरिका में पहले इस तरह की तकनीक सफलतापूर्वक लागू की जा चुकी है. उन्होंने बताया कि ड्रोन के जरिए सीमित इलाके में क्लाउड सीडिंग का यह प्रयोग मौसम नियंत्रण के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखेगा.

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