Shibu Soren Political Career: तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक बार भी पूरा नहीं हुआ कार्यकाल.... जानिए कैसा रहा शिबू सोरेन का राजनीतिक करियर

एक कद्दावर आदिवासी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के संस्थापक सदस्य, शिबू सोरेन 38 वर्षों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष रहे. शिबू ने 1987 में पार्टी की बागडोर संभाली और अप्रैल 2025 तक लगभग 38 वर्षों तक इसके निर्विवाद अध्यक्ष रहे.

एक रैली में स्पीच देते हुए शिबू सोरेन
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 04 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:13 PM IST

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया. उनकी उम्र 81 वर्ष थी. वह लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे. शिबू सोरेन के बेटे और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन की घोषणा की. सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं. आज मैं शून्य हो गया हूं." 

सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जिले के नेमरा में पिता शोबरन सोरेन और माता सोनूमुनी सोरेन के घर हुआ था. शिबू सोरेन उन नेताओं में से हैं जिन्होंने झारखंड को एक राज्य बनाने की लड़ाई लड़ी. वह इस राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री भी बने, लेकिन एक बार भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. 

एक कद्दावर आदिवासी नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के संस्थापक सदस्य, शिबू सोरेन 38 वर्षों तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष रहे. शिबू ने 1987 में पार्टी की बागडोर संभाली और अप्रैल 2025 तक लगभग 38 वर्षों तक इसके निर्विवाद अध्यक्ष रहे. वृद्ध शिबू सोरेन ने औपचारिक रूप से झामुमो नेतृत्व की बागडोर अपने बेटे और वर्तमान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सौंप दी. 

आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ी लड़ाई
शिबू सोरेन ने झारखंड के राजनीतिक धरातल पर अपना नाम आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़कर बनाया. अगर सोरेन के राजनीतिक करियर पर नज़र डाली जाए तो उन्हें झारखंड को राज्य का दर्जा दिलाने वाले आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाएगा. उनका राजनीतिक करियर ज़मीनी आंदोलनों से शुरू हुआ जहां उन्होंने मुख्य रूप से आदिवासियों के लिए जल-जंगल-ज़मीन की मांग की. 

सामंतवाद के कट्टर विरोधी सोरेन ने 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की शुरुआत की. सोरेन की अगुवाई में जेएमएम ने आदिवासियों की स्वायत्तता और उत्थान के लिए आवाज़ उठाई. सन् 2000 में झारखंड राज्य बनने में सोरेन और जेएमएम की अहम भूमिका रही. सोरेन इस नए राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे. हालांकि एक बार भी उनका कार्यकाल पूरे पांच साल का नहीं रहा. 

कैसा रहा राजनीतिक करियर?
सोरेन सबसे पहली बार दो मार्च 2005 को मुख्यमंत्री बने लेकिन बहुमत न होने के कारण सिर्फ नौ दिन बाद सत्ता हाथ से चली गई. दूसरी बार अगस्त 2008 में सत्ता सोरेन के हाथ लगी लेकिन जनवरी 2009 में उन्हें एक बार फिर कुर्सी से उतरना पड़ा. सोरेन आखिरी बार दिसंबर 2009 में मु्ख्यमंत्री बने और इस बार उनका कार्यकाल पांच महीने का रहा. इसके अलावा सोरेन तीन बार कोयला मंत्री भी बने. 

सोरेन छह बार लोकसभा सांसद बने, हालांकि सिर्फ एक बार ही उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. वह तीन बार राज्यसभा सांसद भी रहे. जून 2020 में उन्हें तीसरी और आखिरी बार राज्यसभा के लिए चुना गया था. 

समर्थकों के बीच गुरुजी कहलाए सोरेन
इन चुनौतियों के बावजूद सोरेन की विरासत राज्य की पहचान और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई से गहराई से जुड़ी हुई है. अपने समर्थकों के बीच "गुरुजी" के नाम से मशहूर, सोरेन का प्रभाव उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के बाद भी जारी रहा, जहां उनके बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान में इस पद पर हैं. 

सोरेन का करियर विवादों से अछूता नहीं रहा. उन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें एक हत्या के मामले में दोषी ठहराया जाना और बाद में बरी होना भी शामिल है. इन असफलताओं के बावजूद, शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बने हुए हैं, जिन्हें आदिवासी कल्याण और राज्य के दर्जे में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है. 

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