Monsoon Trough: बदलने वाला है उत्तर और मध्य भारत का मानसून पैटर्न... जानिए अगले हफ्ते किन राज्यों में होगी बारिश, कहां-कहां मिलेगी राहत

भारत के मानसून तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक मानसून गर्त अब उत्तर की ओर स्थानांतरित हो गया है. यह बदलाव उत्तरी और मध्य भारत के लिए क्या संकेत लेकर आया है, आइए समझते हैं.

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कुमार कुणाल
  • नई दिल्ली,
  • 28 जून 2025,
  • अपडेटेड 7:04 AM IST

भारत के मानसून तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण घटकों में से एक माना जाने वाला मानसून गर्त अब उत्तर की ओर स्थानांतरित हो गया है. यह बदलाव उत्तरी और मध्य भारत में बारिश के वितरण में संभावित बदलाव का संकेत देता है. मौसम विज्ञानियों का अनुमान है कि इस बदलाव के कारण आने वाले सप्ताह में इन हिस्सों में बारिश में इज़ाफा होगा. आने वाले सप्ताह में कहां बारिश होगी और इससे किसे फायदा होगा, आइए समझते हैं.

मानसून गर्त क्या है?
मानसून गर्त (Monsoon Trough) उत्तर-पश्चिम भारत से बंगाल की खाड़ी तक फैला एक लम्बा कम दबाव वाला क्षेत्र है. यह नमी के अभिसरण और संवहनीय गतिविधि को बढ़ावा देकर मानसून की वर्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मानसून गर्त बादल निर्माण और बारिश को भी बढ़ावा देता है. यह गर्त स्थिर नहीं है, बल्कि मानसून के मौसम के दौरान उत्तर और दक्षिण की ओर घूमता रहता है. यह पूरे देश में बारिश के समय और तीव्रता को भी प्रभावित करता है.

बारिश पर क्या पड़ने वाला है असर?
उत्तर की ओर मौजूदा गति ने नमी के प्रवाह और साथ आने वाले तूफानों को तेज कर दिया है. नतीजतन, अगले सात दिनों तक उत्तर-पश्चिम, मध्य, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में भारी बारिश का पूर्वानुमान है. बारिश में यह उछाल कृषि के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तर भारत का अधिकांश भाग बारिश पर आधारित कृषि तकनीकों में पानी के लिए मानसून की बारिश पर निर्भर है. 

पंजाब, हरियाणा, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को बढ़ी हुई बारिश से फायदा होने की उम्मीद है. बढ़ी हुई मिट्टी की नमी फसल की वृद्धि का समर्थन करेगी और संभावित रूप से कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देगी. यह भारी बारिश बाढ़ और जलभराव का खतरा भी पैदा करती है. खासकर ऐसे निचले इलाकों में जहां जल निकासी की पर्याप्त जगह नहीं है. 

कैसे हुआ मानसून गर्त में बदलाव?
मानसून के गर्त में इस बदलाव के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं. अरब सागर पर लगातार कम दबाव वाले क्षेत्र बनना और विदर्भ में एक गर्त के कारण मानसून की शुरुआत ने नमी के प्रवाह को बढ़ाया है.

इसके अलावा, पश्चिमी हिमालय में कम बर्फ कवर और मजबूत मस्कारेन हाई जैसे व्यापक क्लाइमेट प्रभावों ने भी मानसून को हरी झंडी दी है. नज़र अगर बंगाल की खाड़ी के ऊपर डालें तो यहां एक कम दबाव वाले क्षेत्र ने उत्तर-पूर्वी भारत की ओर नमी और वायुमंडलीय ऊर्जा को आकर्षित करके गर्त को उत्तर भारत की ओर खींचा है. 

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