
ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एग्जियोम-4 (Axiom-4) से उड़ान भरकर 14 दिन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (International Space Station) पहुंच गए हैं. वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जाने वाले भारत के पहले एस्ट्रोनॉट हैं. इंटरनेशन स्पेस स्टेशन में उनका अनुभव इंसानों को अंतरिक्ष ले जाने वाले भारत के पहले स्पेसक्राफ्ट गगनयान (Gaganyaan) के लिए बहुत अहम साबित होगा.
शुभांशु खुद तो गगनयान में भारत के लिए अंतरिक्ष की यात्रा करेंगे ही, लेकिन उनके साथ अंतरिक्ष जाने के लिए तीन और नामों को चुना गया है. ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर, ग्रुप कैप्टन अजीत कृष्णन और ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप.
अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुने गए चार कैंडिडेट
गगनयान भारत का पहला ह्यूमन स्पेस फ्लाइट मिशन होगा. यानी अंतरिक्ष में इंसानों को ले जाने वाला भारत का पहला मिशन. 27 फरवरी को केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के आधिकारिक दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मिशन के लिए इन चार नामों की घोषणा की थी.
सबसे पहले बात करते हैं ग्रुप कैप्टन नायर की. ग्रुप कैप्टन नायर केरल के रहने वाले हैं. उनका जन्म 26 अगस्त 1978 को हुआ था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नायर ने पलक्कड़ के एन.एस.एस. इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की और फिर महाराष्ट्र के खड़कवासला में नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) में दाखिला लिया.
एनडीए से डिग्री लेने के बाद उन्हें 1998 में वायुसेना ने लड़ाकू पायलट के रूप में नियुक्त किया. वह एक उड़ान ट्रेनर और बाद में एक टेस्टिंग पायलट बन गए. वायु सेना अकादमी में उन्हें 'स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर' मिला, जो सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले कैडेट के लिए आरक्षित एक सम्मान है. एक टेस्ट पायलट के तौर पर भी उन्होंने 3,000 घंटे से ज्यादा उड़ान भरी है. वह Su-30 विमान के एक स्क्वाड्रन की कमान भी संभाल चुके हैं.
अगर बात अजीत कृष्णन की करें तो उनका सफर भी ऐसा ही रहा है. चेन्नई के रहने वाले कृष्णन का जन्म 19 अप्रैल, 1982 को हुआ. उन्होंने 2002 में एनडीए से डिग्री हासिल की और वायु सेना अकादमी में 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' से भी सम्मानित हुए. आखिर 2003 में वायु सेना से कमीशन मिला. वह भी एक टेस्ट पायलट हैं. कृष्णन आसमान में 2,900 घंटे बिता चुके हैं और सुखोई, मिग, जगुआर, हॉक, डोर्नियर और एंटोनोव एएन-32 विमान उड़ाने में सक्षम हैं.
कृष्णन के एनडीए से पास आउट होने के एक साल बाद अंगद प्रताप भी उनके नक्श-ए-कदम पर चलते हुए आगे आए. प्रयागराज में 17 जुलाई 1982 को जन्मे अंगद को 2004 में 22 साल की उम्र में वायुसेना में कमीशन मिला. वह टेस्ट पायलट भी बने और चयन से पहले लगभग 2,000 घंटे की उड़ान का अनुभव हासिल किया. बात अगर अंतरिक्ष पहुंच चुके शुभांशु की करें तो वह खुद भी एक टेस्ट पायलय हैं और उनका अनुभव भी अंगद जैसा ही है.
पहले ही हो चुकी है ट्रेनिंग
केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से 2018 में मिशन को मंजूरी दिए जाने के तुरंत बाद ही गगनयान के लिए उम्मीदवारों के चयन और ट्रेनिंग का काम शुरू हो गया था. चारों एस्ट्रोनॉट्स ने बेंगलुरु में भारतीय वायु सेना के एयरोस्पेस मेडिसिन संस्थान (IAM), रूस में गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर (GCTC) और बेंगलुरु के ही अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण सुविधा में ट्रेनिंग ली है. चारों अभ्यर्थियों ने जीसीटीसी में 13 महीने तक प्रशिक्षण लिया.