Booker Prize Winner Banu Mushtaq: साहित्य की दुनिया में भारत का नाम रोशन करने वालीं बानू मुश्ताक बोलीं... मैं कहानियां रिसर्च नहीं, इमोशंस से लिखती हूं... देश की हिफाजत कर रहे सिपाहियों को समर्पित है ये बुकर पुरस्कार

Banu Mushtaq: बानू मुश्ताक ने प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार जीतकर पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन किया है. उनकी इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है. कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक का कहना है कि उनकी कहानियां किसी डेटा या रिसर्च की उपज नहीं हैं, बल्कि वे सीधे दिल से निकलती हैं. वह कहती हैं, जो दिल से लिखा जाता है, वो दूर तक पहुंचता है.

Booker Prize Winner Banu Mushtaq
मयंक प्रताप सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 22 मई 2025,
  • अपडेटेड 10:28 PM IST
  • बानू मुश्ताक ने हार्ट लैंप के लिए जीता है अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 
  • कहानी की ताकत उसकी सच्चाई में नहीं, उसकी संवेदनाओं में होती है

साहित्य की दुनिया में जब कोई नई आवाज उभरती है, जो दिल से लिखती है, आत्मा से बोलती है और जिंदगी के कड़वे-मीठे सच को इमोशन्स के रास्ते परोसती है, तो वह पाठकों के दिलों में जगह बना लेती है. बानू मुश्ताक ऐसी ही एक लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी किताब हार्ट लैंप के लिए प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार जीता है.

यह जीत सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय मुस्लिम महिला लेखिकाओं की आवाज को एक नया मुकाम देने जैसा है. बानू मुश्ताक ने बातचीत में अपनी किताब, अपने लेखन के पीछे छिपे भाव, समाज, राजनीति और सोशल मीडिया पर बेबाक अंदाज में अपने विचार साझा किए.

मेरा मकसद है दिल से लिखना 
बानू मुश्ताक ने शुरुआत में ही यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी कहानियां किसी डेटा या रिसर्च की उपज नहीं हैं, बल्कि वे सीधे दिल से निकलती हैं. उन्होंने कहा कि मैं ज्यादा रिसर्च नहीं करती. मुझे जितना मालूम है, उसी के आधार पर लिखती हूं. इमोशन्स को मैं फैक्ट्स से ज्यादा तरजीह देती हूं. मेरा मकसद है दिल से लिखना ताकि वो दिल तक पहुंचे. बानू का मानना है कि कहानी की ताकत उसकी सच्चाई में नहीं, उसकी संवेदनाओं में होती है. इसी वजह से उन्होंने बुकर पुरस्कार के लिए नामांकन का भी कभी सपना नहीं देखा था. मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मेरी किताब बुकर तक पहुंचेगी लेकिन शायद जो दिल से लिखा जाता है, वो दूर तक पहुंचता है.

मुस्लिम जीवन और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण
बानू की कहानियों में मुस्लिम समाज की आम दिनचर्या की झलक मिलती है. अजान से दिन की शुरुआत, रिश्तों की बुनावट, घर की महिलाएं... ये सब उनके लेखन में बेहद सहजता से आते हैं. बानू मुश्ताक कहती हैं कि अजान से एक आम मुस्लिम आदमी या औरत का दिन शुरू होता है. यही रूटीन मैंने अपनी कहानी में दिखाया. किसी और लेखक की किताब से तुलना नहीं कर सकती क्योंकि मैंने वो पढ़ी ही नहीं है. मैं अपने 'हार्ट लैंप' से रोशनी लेती हूं.

ताजमहल से शाहिस्ता महल तक... प्रेम की विडंबना
बानू मुश्ताक की कहानी में 'शाहिस्ता महल' नाम का एक प्रतीकात्मक महल आता है, जो ताजमहल की तरह प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि धोखे का निशान है. बानू कहती हैं कि ताजमहल एक बीवी के लिए बनाए गए प्यार का प्रतीक है लेकिन मेरी कहानी में शाहिस्ता महल एक ऐसे धोखे का प्रतीक है, जिसमें पत्नी का शोषण हुआ. वो एक प्यार नहीं था, एक धोखा था.

क्या उनकी कहानियां उनकी अपनी जिंदगी से जुड़ी हैं?
क्या उनकी कहानियां उनकी अपनी जिंदगी से जुड़ी हैं? इस सवाल पर बानू मुश्ताक कहती हैं, बिल्कुल नहीं, मेरी जिंदगी बहुत खुशहाल है. मैंने अपनी पसंद से शादी की. मेरे बच्चे वेल-एजुकेटेड और सेटल्ड हैं. मुझे पूरी आजादी मिली है. बावजूद इसके, बानू आराम की जिंदगी में रहकर भी समाज से जुड़ने का फैसला करती हैं. वह कहती हैं कि मैं आराम से रह सकती थी, लेकिन रहना नहीं चाहती. मैं आम लोगों के बीच रहना चाहती हूं, उनके साथ रोना और हंसना चाहती हूं.

मुस्लिम औरत और राजनीति... एक दूरी या नई पहचान?
समाज में यह धारणा बन चुकी है कि मुस्लिम महिलाएं राजनीति से दूर रहती हैं, लेकिन बानू इस बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. राजनीति से मुस्लिम औरत का कोई लेना-देना नहीं. यह एक गलत स्टेटमेंट है. एक औरत घर भी चलाती है और बाहर भी काम करती है. राशन लाइन में लगना, प्लॉट के लिए एप्लिकेशन देना, यह सब पॉलिटिक्स है. पॉलिटिक्स से दूर रहना मुमकिन नहीं है. बानू का मानना है कि हर आम आदमी की जिंदगी राजनीति से जुड़ी होती है, मुस्लिम महिलाएं भी इससे अछूती नहीं.

ऑटोबायोग्राफी... एक औरत की जद्दोजहद
बानू इस समय अपनी आत्मकथा पर भी काम कर रही हैं, जिसमें न सिर्फ उनकी निजी जिंदगी बल्कि उनके सामाजिक संघर्षों की भी झलक मिलेगी. औरत की आत्मकथा में रिश्तों पर ज्यादा जोर होता है. वह कहती हैं मैंने भी अपनी फैमिली के साथ अपने इमोशनल बॉन्ड को बखूबी दिखाया है, लेकिन इसमें सोशल मूवमेंट्स और जद्दोजहद भी हैं. यह आत्मकथा बिल्कुल अलग होगी. वह अभी तक आधी किताब लिख चुकी हैं और कहती हैं कि यह पाठकों का ध्यान खींचेगी.

सोशल मीडिया... एक शक्ति, एक खतरा
सोशल मीडिया को बानू महिला सशक्तिकरण का एक जरिया मानती हैं लेकिन साथ ही इसके खतरों से भी आगाह करती हैं. वह कहती हैं कि सोशल मीडिया से औरतों को एक्सपोजर मिला है. एक बटन दबाकर दुनिया भर की खबरें मिलती हैं. मगर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स, डिवोर्स, सुसाइड जैसी घटनाएं भी इसी की देन हैं. उनका मानना है कि लड़कियों को डिजिटल मीडिया की जानकारी दी जानी चाहिए और इसके सही और गलत इस्तेमाल की समझ होनी चाहिए.

बुकर पुरस्कार देश को समर्पित
बुकर पुरस्कार को बानू मुश्ताक ने अपने देश को समर्पित किया है. वह कहती हैं मैं इस पुरस्कार को अपने मुल्क के हर बाशिंदे को, जो देश की हिफाजत कर रहे हैं सिपाहियों को, आर्टिस्टों को, आम आदमी को, अपने देश को समर्पित करती हूं.

 

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