कहते हैं बेटे मां -बाप के बुढ़ापे का सहारा होते हैं. लेकिन वृंदावन के एक वृद्धा आश्रम को देखकर आप ये समझ जाएंगे कि जरूरी नहीं कि बुढ़ापे का सहारा कोई बेटा ही बने.. इस बात की तसदीक देती हैं इस आश्रम में रहने वाली अनगिनत माएं... जो आज अपने बेटों से दूर तो हैं लेकिन उनके चेहरे पर एक इतमिनान है उनके शब्दों में तसल्ली है और ये तसल्ली की वजह एक बेटी है ये बेटी आज ना जाने कितनी माओं का सहारा बनी हुई है. कहने को ये बेटी इन माओं की कोख से नहीं पैदा हुई लेकिन ये अपने कोख जन्मे बच्चों से भी बढ़ कर है. बता दें कि इस आश्रम में कुल 85 बुजुर्ग रहती हैं , इन सभी माओं की एक ही बेटी है जिसका नाम श्यामा दासी है.
'कोलकाता में जन्मी, मामा को ढूंढ़ते हुए वृंदावन पहुंची'
श्यामा दासी ही इस आश्रम को चलाती हैं. श्यामा यूं तो कोलकाता में पैदा हुई थी बचपन में उनका कोई मामा नहीं था जब वह मां से पूछती कि उनके मामा कहां है तो वह कहती श्री कृष्ण ही तुम्हारे मामा है, वह वृंदावन में रहते हैं. ऐसे में उन्हें हमेशा से मथुरा वृंदावन आने की तलब लगी रहती और एक बार उन्हें मौका मिल गया. 7 साल की उम्र में वो अपने चाचा और दादी के साथ वृंदावन आईं और फिर यहां से कभी वापस नहीं गईं. श्यामा कहती हैं कि जब वह वृंदावन पहुंचे तब उनको मालूम हुआ तो उनके मामा कोई आदमी नहीं बल्कि खुद श्री कृष्ण है एक दुकान पर तो श्री कृष्ण की फोटो बिक रही थी तो उन्होंने उस दुकानदार को टोक दिया कि तुम मेरे मामा की फोटो क्यों बेच रहे हो. बाद में वह वृंदावन में ही रुकने की जिद करने लगी. हारकर चाचा और दादी को उन्हें वृंदावन में ही छोड़कर लौटना पड़ा बाद में पिता बुआ को लेकर श्यामा को समझाने आए लेकिन श्यामा ने बुआ को भी कृष्ण की भक्ति में रमा दिया इस बार पिता को अकेले घर लौटना पड़ा.
'मरते-मरते बची'
कोई आश्रम लड़की होने के नाते और कम उम्र को वजह करार देकर श्यामा को अपने पास रखने को तैयार नही था. इस बीच उन्होंने अपनी बुआ के साथ रहते हुए बहुत सारी दिक्कतों का सामना किया. श्यामा बताती है एक बार तो उनकी ऐसी हालत हो गई डॉक्टर ने यहां तक कह दिया कि जान बचना मुश्किल है लेकिन एक बार फिर से श्री कृष्ण ने चमत्कार किया एक बाबा ने उनको दवा खिलाए जिससे उनकी जान बच गई लेकिन अगले ही दिन बाबा की मौत हो गई. ये सबकुछ बताते हुए श्यामा की आंखों में आंसू आ जाते हैं.
'किराए पर चलाती हैं आश्रम
श्यामा बताती है कि वृद्ध आश्रम शुरू करना आसान नहीं था पहले कुछ महिलाएं भीक्षा मांगती थी कुछ सब्जी मंडी जाकर फेंकी हुई सब्जियों से चुनकर सब्जियां लाती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे कुछ लोगों की मदद मिलने लगी है हालांकि श्यामा बताती हैं कि अभी भी उनके तीनों आश्रम किराए के मकान में चल रहे हैं एक बार एक बुजुर्ग महिला बीमार होने पर आईसीयू में एडमिट कराना पड़ा 80 हजार से ज्यादा का खर्चा आया ऐसे में श्यामा एक आश्रम का किराया नहीं दे पाई उस आश्रम का मकान मालिक पुलिस लेकर आश्रम खाली करवाने के लिए पहुंच गया.तब श्यामा की मदद किसी ने नहीं की थी.
हर मां की कहानी एक
श्यामा के साथ रहने वाली 85 बुजुर्गों में हर एक की कहानी लगभग एक जैसी ही है ज्यादातर महिलाओं के बच्चों ने उन्हें इस आश्रम में लाकर छोड़ दिया है. जबलपुर की रहने वाली लल्ला बाई बताती हैं कि उन्होने सबकुछ बेचकर अपने बेटे को सब इंस्पेक्टर बनाया लेकिन फिर उसने घर से निकाल दिया. आत्महत्या करने नदी के पास गई लेकिन हिम्मत नहीं हुई आखिर में भटकते हुए यहां आ गई.
ग्वालियर की रहने वाली राजश्री बताती हैं कि मेरे बेटे ने भी मुझे घर से निकाल दिया. वो कहती हैं एक दिन मेरे बेटे ने कहा कि मां तुम्हें देखकर मेरा सिर दुखता है, मुझे घुटन होती है, यहां से चली जाओ. मैने उसी दिन घर छोड़ दिया. हालांकि अब ये सभी बुजुर्ग श्यामा दासी के साथ खुश रहती हैं, वो कहती हैं कि उम्र भले ही हमारी ज्यादा हो लेकिन श्यामा हमारे लिए मां जैसी है.