डिजिटल इंडिया की मुहीम को 'सशक्त' अंदाज दे रही गांव की इन महिलाओं की ये तस्वीरें

लखनऊ के गणेशपुर गाँव की ये महिलाएं माउस से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं, लेकिन माउस को चलाना सीख रही हैं, और यही बदलते भारत की सबसे खूबसूरत तस्वीर है. गणेशपुर गाँव में लगने वाले इस क्लास में आस पास के 12 गाँव की महिलाएँ और बेटियां कम्प्यूटर सीखने आती हैं

कंप्यूटर चलाती गांव की औरतें
शिल्पी सेन
  • लखनऊ,
  • 26 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 6:10 PM IST
  • गांवों में घरों से निकलकर कंप्यूटर सीख रही बहु-बेटियां
  • ‘जन शिक्षण संस्थान' की बदौलत हुआ मुमकिन

आजादी के 75 साल बाद आजाद हिंदुस्तान में ये सवाल उठते ही रहते हैं कि हमारी आधी-आबादी यानी महिलाएं कितनी आजाद  हुई हैं. ये स्थिति तब भी आती है जब मंदिर और मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश को लेकर समाज में तना-तनी हो जाती है फिर हमारी नज़र पड़ती है पुलिस की वर्दी पहने बेटियों पर, पत्रकारिता के शिखर पर अपनी अलग पहचान बनाती छोटे शहर से आई लड़कियों पर या तमाम तरह की सेवाएं जिनमें लड़कियां बढ़ चढ़ कर सामने आ रही हैं. अब एक ऐसी ही तस्वीर  लखनऊ के गणेशपुर गाँव से आई है. जो इन आधी आबादी की बदलती सच्चाई हम सब के सामने बड़े ही गर्व से पेश करती हुई मालूम पड़ती है. हाथों में चूड़ियाँ, माथे पर आँचल और मन में कुछ नया सीखने की जिज्ञासा लिए  गाँव की ये महिलाएँ न सिर्फ़ कम्प्यूटर सीख रही हैं बल्कि इसके ज़रिए ऊँचा लक्ष्य भी हासिल करने का ख़्वाब उनकी आँखों में है.

कंप्यूटर की खिड़की से दुनिया देखने को तैयार ये बेटियां 

लखनऊ के गणेशपुर गाँव की ये महिलाएं माउस से बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं, लेकिन माउस को चलाना सीख रही हैं, और यही बदलते भारत की सबसे खूबसूरत तस्वीर है. गणेशपुर गाँव में लगने वाले इस क्लास में आस पास के 12 गाँव की महिलाएँ और बेटियां कंप्यूटर सीखने आती हैं.  हाल ही में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के तहत संचालित ‘जन शिक्षण संस्थान’ ने जब गाँव में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग अलग पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन माँगे तो गाँव की वो महिलाएँ भी घर से निकालीं जो अकेले कभी बाहर नहीं निकलीं थीं. अब यही लड़कियाँ और महिलाएँ कंप्यूटर की खिड़की से दुनिया देखना चाहती हैं.

 

कामयाबी की इबारत लिखने की ऐसी है तैयारी 

दरअसल पूरे देश की तरह ही इन गाँव में भी लॉकडाउन का असर ये हुआ कि लोगों ने कम्प्यूटर की ज़रूरत  को समझा. इनमें घरों में रहने वाली महिलाएँ भी थीं और वो लड़कियाँ भी जो या तो पढ़ाई अधूरी होने की वजह से घर पर रह गयीं या आगे पढ़ने का मौक़ा नहीं मिला इसलिए अपने लिए तरक़्क़ी का ऊँचा ख़्वाब नहीं देख पायीं. पर अब वो कम्प्यूटर से दोस्ती करना चाहती हैं , वो इसकी ज़रूरत भी जानती हैं . वो कहती हैं कि घर पर रहना हो या कोई काम करना उन्हें पता है कि कम्प्यूटर के बिना आगे बढ़ना मुश्किल नहीं नामुमकिन सा है.

कंप्यूटर  के अलावा इन कोर्सेज की भी है सुविधा

वैसे तो गाँव की महिलाओं के लिए अलग अलग कई कोर्स भी यहाँ कराए जा रहे, पर सबसे ज़्यादा उत्साह कम्प्यूटर कोर्स को लेकर है. यहाँ तक कि सीटें भर जाने की वजह से महिलाओं को मौक़ा नहीं मिल पाया तो वो आगे कम्प्यूटर सीखने के लिए इंतज़ार कर रही हैं. इस कार्यक्रम को संचालित करने वाली स्टडी हॉल एजूकेशनल फ़ाउंडेशन(SHEF)संस्था की प्रातिनिधि कहती हैं कि लॉकडाउन की वजह से गाँव की इन महिलाओं ने भी कम्प्यूटर के महत्व को समझा. इन महिलाओं को पता है कि कम्प्यूटर नहीं आने पर वो बाक़ी की दुनिया से पीछे रह जाएँगी.

कंप्यूटर चलाती ये वही लड़कियां हैं जो कभी स्कूल तक लाने के लिए तरसती थी, अब भी पढ़ाई जारी रखना ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिए एक चुनौती है. ऐसे में खुद घर से बाहर कदम रखकर महिलाएँ और लड़कियाँ डिजिटल साक्षर बन कर बाक़ी की दुनिया से जुड़ना चाहती हैं. ये बदलाव वाक़ई सूकुन देने वाला है.


 

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